हाईकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार के तहत पुलिस द्वारा अनुचित जांच के मुद्दे का निर्णय नहीं किया जा सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि रिट याचिका में पुलिस द्वारा दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में निष्क्रियता का फैसला नहीं किया जा सकता। बस, निजी शिकायत दर्ज करनी होगी।
जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने कहा:
"दिन-प्रतिदिन कई रिट याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिसमें कहा गया है कि पुलिस उचित जांच नहीं कर रही है, आरोप पत्र दाखिल नहीं कर रही है और न ही वे आरोपियों को गिरफ्तार कर रहे हैं। इन मुद्दों पर इस न्यायालय द्वारा निर्णय नहीं किया जा सकता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकारिता का प्रयोग करते हुए निजी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।"
याचिकाकर्ता को आरोपी के साथ मामले से समझौता करने के लिए मजबूर करने में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए रिट याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने पुलिस को शिकायत दी और इसे दर्ज कर लिया गया है। याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रतिभा बेज्जरराम ने कहा कि कथित अपराध की जांच करने के बजाय पुलिस याचिकाकर्ता को अनौपचारिक उत्तरदाताओं के साथ मामले को समझौता करने के लिए मजबूर कर रही है और वे उचित जांच नहीं कर रहे हैं और आरोप पत्र दायर नहीं कर रहे है। इसलिए, वह इस न्यायालय के समक्ष आई।
एस. राममोहन राव, सहायक गवर्नमेंट प्लीडर फॉर होम ने कहा कि जांच के दौरान सात गवाहों से पूछताछ की गई और उनके विस्तृत बयान दर्ज किए गए। पुलिस अनुमति का इंतजार कर रही है।
कोर्ट का मानना है कि इसमें कोई शक नहीं कि जब शिकायत दी जाती है और एक संज्ञेय अपराध बनता है तो पुलिस को अपराध दर्ज करना होता है, पूरी जांच करनी होती है और चार्जशीट दाखिल करनी होती है। हालांकि, जाँच अधिकारी की ओर से कोई चूक याचिकाकर्ता के लिए इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का आधार नहीं हो सकती है।
न्यायालय ने कहा कि यदि वह जांच अधिकारी की कार्रवाई/निष्क्रियता से व्यथित है तो न्यायालय के समक्ष उक्त अधिकारी के खिलाफ निजी शिकायत दर्ज करने के लिए उपयुक्त और प्रभावी उपाय उपलब्ध है।
इस प्रकार याचिकाकर्ता को उचित उपायों का लाभ उठाने की स्वतंत्रता के साथ रिट याचिका का निपटारा किया गया।
केस शीर्षक: के.साव्या बनाम स्टेशन हाउस ऑफिसर
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