क्या रेलवे दावा न्यायाधिकरण अधिनियम के तहत दुर्घटना मुआवजे का दावा करने के लिए पहचान प्रमाण पत्र अनिवार्य है? दिल्ली हाईकोर्ट झुग्गी में रहने वालों की याचिका पर विचार करेगा
दिल्ली हाईकोर्ट ने गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर एक दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवाने वाले सड़क किनारे रहने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में रेलवे दावा न्यायाधिकरण को मुआवजे के लिए उसकी याचिका पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
दरअसल मुआवजे के दावे को इस तकनीकी आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था कि याचिकाकर्ता के पास वैध पहचान प्रमाण पत्र नहीं है।
जस्टिस रेखा पल्ली ने यूनियन ऑफ इंडिया, रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल, जीटीबी हॉस्पिटल और जीआरपी लोनी, गाजियाबाद को नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई 9 सितंबर को तय की है।
अंतिम वर्ष के कानून के छात्र श्रीकांत प्रसाद के माध्यम से स्थानांतरित याचिका में कहा गया है कि एम्स अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर रहने वाले पीड़ित को सामान्य श्रेणी के टिकट पर ट्रेन में यात्रा करते समय पैर कट जाने के बाद भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसमें कहा गया है कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अनुसार संबंधित ट्रिब्यूनल के समक्ष दावा आवेदन दायर किया गया था। हालांकि, तकनीकी कारणों के आधार पर इसे खारिज कर दिया गया था।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने आधार कार्ड के लिए आवेदन किया था लेकिन पिछले साल यूआईडीएआई ने इसे खारिज कर दिया था।
याचिका में कहा गया है कि,
"प्रतिवादी संख्या 2 (रेलवे दावा ट्रिब्यूनल) ने ट्रिब्यूनल के बहुत ही प्रशंसनीय उद्देश्य की अनदेखी की है और दावा आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया है और रेलवे दावा न्यायाधिकरण अधिनियम, 1987 में धारा 18 के विपरीत है।"
याचिका में तर्क दिया गया है कि ट्रिब्यूनल तकनीकी आधार पर दावा आवेदन पर विचार करने से इनकार नहीं कर सकता है कि यात्री के पास कोई पहचान प्रमाण पत्र, पता या अन्य दस्तावेज नहीं है।
केस का शीर्षक: उमेश बनाम भारत संघ एंड अन्य।