[इंटरफेथ मैरिज] केरल हाईकोर्ट ने पत्नी को अपने माता-पिता की ओर से दुर्व्यवहार की आशंका के कारण पति द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका खारिज की
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पति द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका खारिज कर दिया, जिसमें एक अंतरधार्मिक विवाह में अपनी पत्नी को पेश करने की मांग की गई थी, जिसमें पाया गया था कि पत्नी को याचिकाकर्ता के आवास पर अपनी सुरक्षा के बारे में गंभीर आशंकाएं थीं।
जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने पति द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी को उसके पिता ने अवैध रूप से कैद कर रखा है।
आगे कहा,
"कथित कॉर्पस ने कहा कि उसे किसी भी तरह की यातना नहीं दी गई थी। यहां तक कि जब कथित कॉर्पस यह व्यक्त करेगी कि वह याचिकाकर्ता के साथ रहने की इच्छुक है, तो उसे डर है कि याचिकाकर्ता के माता-पिता उसके साथ बुरा व्यवहार करेंगे।"
अदालत ने यह भी पाया कि पत्नी 'अपने रुख में अस्पष्ट' थी और वह याचिकाकर्ता के साथ रहने की अपनी इच्छा और उसकी गंभीर आशंका और उसके माता-पिता द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के डर के बीच भ्रमित थी।
याचिकाकर्ता के अनुसार, वह और कथित कॉर्पस अलग-अलग धर्मों के हैं, और उन्होंने अपने माता-पिता को बताए बिना विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी का पंजीकरण कराया था।
उन्होंने आरोप लगाया कि शादी के एक महीने से भी कम समय में उनकी पत्नी ने उनसे संपर्क करना बंद कर दिया। उसके पिता द्वारा अवैध कस्टडी पर संदेह करते हुए, उसने पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने यह रिट याचिका दायर की।
जब मामला शुरू में विचार के लिए आया, तो अदालत ने स्टेशन हाउस अधिकारी को एक महिला सिविल पुलिस अधिकारी द्वारा उसके माता-पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य की अनुपस्थिति में कथित कॉर्पस का बयान प्राप्त करने का निर्देश दिया था।
उसके द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, पत्नी ने कहा कि वह शादी के एक महीने बाद याचिकाकर्ता के साथ उसके आवास पर रहने की योजना बना रही थी क्योंकि उसकी मां उसके घर पर अकेली थी। हालांकि, जल्द ही उनकी शादी की खबरें आ गईं और दोनों परिवार इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।
उसने अपने बयान में कहा कि उसके पति का परिवार उन्हें एक साथ रहने की अनुमति कभी नहीं देगा और वह अपने घर पर अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित है। पत्नी ने यह भी स्वीकार किया कि उसके माता-पिता ने उसे किसी भी अवैध कस्टडी में नहीं रखा था और न ही उसे प्रताड़ित किया गया था।
बेंच ने कहा कि उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपने माता-पिता की किसी भी अवैध कस्टडी में नहीं है।
इसलिए, उसने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह याचिकाकर्ता के साथ रहने के लिए कथित कॉर्पस को सक्षम करने वाला कोई आदेश पारित करने की स्थिति में नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट पीटी शेजिश, पार्वती एस कृष्णन, पी.के. पुरुष, हरिकिरन, प्रवीणकुमार पी, स्टेफी ग्रेस राज, अखिला श्रीधरन और ए अब्दुल रहमान पेश हुए। प्रतिवादियों की ओर से लोक अभियोजक ई.सी. बिनीश पेश हुए।
केस टाइटल: शराफुद्दीन वी.टी. बनाम केरल राज्य एंड अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 260
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