'धारा 153-ए लागू करने के लिए अशांति पैदा करने का इरादा आवश्यक': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता को जमानत दी

Update: 2022-12-18 07:00 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि धारा 153-ए के तहत अपराध के लिए अव्यवस्था पैदा करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा अनिवार्य है, एक कांग्रेसी नेता करमजीत सिंह गिल को जमानत दे दी है। गिल को गोल्डन टेंपल में 1984 के दंगों के आरोपी जगदीश टाइटलर की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहनने के आरोप में अगस्त में गिरफ्तार किया गया था। अमृतसर पुलिस द्वारा धारा 153-ए के तहत दर्ज मामले में गिल पर अपने कार्यों से सिख भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया है।

जस्टिस संदीप मोदगिल ने गिल को जमानत देते हुए कहा, ''कि 'HAPPY BIRTHDAY TO OUR BELOVED GOD FATHER' के शब्दों के साथ अपने पसंदीदा व्यक्ति की एक तस्वीर वाली टी-शटर्न पहनना... मामले को आईपीसी की धारा 153-ए के दायरे में लाने के लिए याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी आपत्तिजनक सामग्री या उत्तेजक कार्य को नहीं दर्शाता है।''

अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ चालान में भी कोई ऐसा शब्द या अन्य माध्यम से कोई सबूत सामने नहीं आया है, जिससे किसी समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचे।

यह देखते हुए कि ''अपनी ही पार्टी के एक नेता की तस्वीर'' वाली टी-शर्ट पहनने के अलावा, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष कृत्य करने का आरोप नहीं लगाया गया है, अदालत ने कहा कि ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि याचिकाकर्ता कथित रूप से किसी पूर्व-उन्मुख योजना के तहत काम कर रहा था या यह सुझाव देने के लिए कि बोले गए या लिखित शब्दों से या किसी अन्य माध्यम से जैसा कि आईपीसी की धारा 153-ए के तहत बताया गया है, उसने किसी को भी हिंसा पैदा करने या सांप्रदायिक घृणा को बढ़ावा देने के लिए उकसाया था।

पीठ ने कहा,''अव्यवस्था पैदा करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध के लिए अनिवार्य है और अभियोजन के सफल होने के लिए कोई आपराधिक मनःस्थिति नहीं है।''

पीठ ने पेट्रीसिया मुखिम बनाम मेघालय राज्य व अन्य, एआईआर 2021 एससी 1632 और बलवंत सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य, (1995) 3 एससीसी 214 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत के संबंध में दिए गए फैसलों पर भी भरोसा किया।

यह देखते हुए कि आईपीसी की धारा 153-ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए प्रथम दृष्टया कोई सामग्री मौजूद नहीं है, अदालत ने कहा कि आरोपी को जमानत का लाभ दिया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि मामले में चालान पहले ही दायर किया जा चुका है और आरोपी तीन महीने और 23 दिनों तक हिरासत में रहा है।

इस मामले में सुलखान सिंह, प्रबंधक, सच खंड श्री हरमंदिर साहिब, श्री दरबार साहिब, अमृतसर द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी,जिसके आधार पर 17 अगस्त को एफआईआर दर्ज की गई थी।

एफआईआर के अनुसार, आवेदक ने स्वर्ण मंदिर में पवित्र जल में डुबकी लगाने के बाद ''1984 के सिख नरसंहार के आरोपी जगदीश टाइटलर की तस्वीर वाली एक टी-शर्ट पहनी थी,'' इसे पहने हुए एक तस्वीर ली और मंदिर में बिना मत्था टेके ही चला गया।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अनमोल रतन सिद्धू ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को मामले में झूठे और निराधार आरोपों में फंसाया गया है।

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य,(2014) 8 एससीसी 273 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए,सिद्धू ने तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए के पार्ट-1 और पार्ट-2 के तहत अपराधों में क्रमशः(1) तीन साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों, और (2) पांच साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस दिया जाना चाहिए था और आवेदक को जांच में शामिल होने का अवसर दिया जाना चाहिए था।

एफआईआर को राजनीति से प्रेरित बताते हुए, सिद्धू ने यह भी तर्क दिया कि धारा 153ए के तहत अपराध नहीं बनता है क्योंकि इसमें दी गई कोई भी सामग्री पूरी नहीं होती है। इतना ही नहीं प्रथम दृष्टया तो एफआईआर की भाषा को पढ़ने से भी कोई ऐसा अपराध नहीं बनता है।

दूसरी ओर, शिकायतकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील पी.एस.हुंदल ने तर्क दिया कि जगदीश टाइटलर 1984 के सिख नरसंहार के आरोपी थे। याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को अच्छी तरह से जानते हुए ''जानबूझकर सिखों की भावनाओं को आहत करने के इरादे से'' टी-शर्ट पहनी और पवित्र तालाब में डुबकी लगाने के बाद उसकी तस्वीर क्लिक की। अदालत को बताया गया कि आरोपी का ऐसा कृत्य ''शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने के लिए एक सुनियोजित साजिश''का हिस्सा था।

उप महाधिवक्ता राजीव वर्मा ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता जमानत की रियायत के लायक नहीं है क्योंकि उसने आईपीसी की धारा 153ए के तहत एक गंभीर अपराध किया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि एफआईआर केवल संदेह के आधार पर नहीं, बल्कि सीसीटीवी फुटेज के आधार पर दर्ज की गई थी।

डीएजी ने तर्क दिया,''उसकी भूमिका इस तथ्य से स्पष्ट थी कि उसने 1984 के सिख नरसंहार के मुख्य आरोपी जगदीश टाइटलर की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहनी हुई थी। इसके अलावा, उसने अपने मोबाइल फोन से अपनी तस्वीर भी किसी व्यक्ति को इसी तरह के इरादे से भेजी थी ताकि उसे वायरल किया जा सके।''

केस टाइटल- करमजीत सिंह गिल बनाम पंजाब राज्य

साइटेशन-सीआरएम-एम-45796-2022 (ओ एंड एम)

कोरम-न्यायमूर्ति संदीप मोदगिल

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