बीमा धारक सामान में हुए नुकसान को सत्यापित करने में विफल रहा, बीमा कंपनी उत्तरदायी नहीं : एनसीडीआरसी
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission-NCDRC) के जस्टिस सी. विश्वनाथ, पीठासीन सदस्य और राम सूरत राम मौर्य, सदस्य, राष्ट्रीय आयोग की पीठ ने देखा कि बीमा पॉलिसी के अनुसार केवल दाल और कच्चे माल के स्टॉक का बीमा किया गया था, लेकिन बीमाधारक ने गलत तरीके से मशीनरी और भवन के नुकसान का दावा किया है।
आयोग ने पाया कि बीमाधारक अपने दावे को साबित करने में विफल रहा है। वह न तो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त स्टॉक दिखा सका और न ही यह बता सका कि मिल के अंदर कितना पानी आ गया था।
इस मामले में शिकायतकर्ता (प्रतिवादी-एक) दाल मिल चलाने के धंधे में लगा हुआ है। बीमा धारक ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (अपीलकर्ता) से स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी प्राप्त की। बारिश के साथ तेज आंधी आई, जिससे मिल परिसर की दक्षिणी दीवार गिर गई और अन्य दो पक्षों की दीवारें टूट गईं। मिल में रखी मशीनरी, निर्माण सामग्री और कच्चा माल बेकार हो गया। विपक्षी दलों ने आज तक परिवादी का दावा लम्बित रखा। आर्थिक तंगी से जूझ रही शिकायतकर्ता को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था। उक्त घटना के कारण शिकायतकर्ता की दाल मिल बंद हो गई और विपक्षी द्वारा दावे के निपटारे में देरी के कारण शिकायतकर्ता द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज भुगतान का बोझ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। बीमा कंपनी के कृत्य से व्यथित शिकायतकर्ता ने राज्य आयोग के समक्ष अपील दायर की। राज्य आयोग ने अपील की अनुमति दी और अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी-एक के नुकसान की प्रतिपूर्ति 12% प्रति वर्ष ब्याज के साथ करने का निर्देश दिया।
राज्य आयोग उत्तर प्रदेश के निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी (बीमा कंपनी) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 19 के तहत राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील दायर की।
विश्लेषण:
राष्ट्रीय आयोग के समक्ष विचार का मुद्दा यह है कि क्या बीमा कंपनी शिकायतकर्ता को हुए नुकसान के लिए उत्तरदायी है या नहीं।
आयोग ने पाया कि राज्य आयोग ने कोई भी निष्कर्ष दर्ज नहीं किया कि प्रतिवादी -एक का दावा किसी दस्तावेजी साक्ष्य से साबित हुआ और न ही सर्वेक्षक की रिपोर्ट की अनदेखी करने का कोई कारण बताया।
आयोग ने श्री वेंकटेश्वर सिंडिकेट बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले पर भरोसा किया, जहां एससी ने माना कि हालांकि सर्वेक्षक की रिपोर्ट नहीं है, लेकिन इसे खंडन करने के लिए मजबूत सबूत की आवश्यकता है।
आयोग ने आगे खटीमा फाइबर्स लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया कि सर्वेयर की ओर से दुर्भावना और कदाचार के अभाव में इसकी रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आयोग ने कहा कि राज्य आयोग का आक्षेपित आदेश मनमाना और बिना किसी कारण के है।
आयोग ने नोट किया कि बीमाधारक ने आरोप लगाया कि 11.05.2007 को भारी तूफान और बारिश की घटना हुई, जिससे नुकसान हुआ। बीमाधारक ने घटना की सूचना 04.06.2007 को बीमाकर्ता को स्थानीय पुलिस को 08.06.2007 को और अनुमंडल पदाधिकारी, सुल्तानपुर को 29.06.2009 को दी।
पीठ ने कहा कि बीमाकर्ता को जानकारी देने में इस अत्यधिक देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं है। राज्य आयोग ने गलत तरीके से नोट किया कि दावा प्रपत्र 11.05.2007 को बीमाकर्ता को प्रस्तुत किया गया। हालांकि इसे 05.06.2007 को प्रस्तुत किया गया और दावा प्रपत्र में किसी तिथि का उल्लेख नहीं है।
आयोग ने पाया कि सर्वेक्षक के अनुसार, मिल मशीन वाले हिस्से के पास कच्चे माल का कोई स्टॉक नहीं है। सर्वेयर ने नुकसान की तारीख से 23-24 दिनों के बाद मिल का दौरा किया। बीमा धारक व्यक्ति न तो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त स्टॉक दिखा सकता है और न ही यह बता सकता है कि मिल के अंदर कितनी मात्रा में पानी प्रवेश कर सकता है। सर्वेयर को दीवारों पर पानी जमा होने का कोई निशान/चिह्न नहीं मिला।
पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता क्षतिग्रस्त सामग्री को सर्वेयर को मौके पर ही सत्यापित करने में विफल रहा। शिकायतकर्ता ने यह दिखाने के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की कि उसने किस प्रकार क्षतिग्रस्त सामग्री का निपटान किया था।
बीमा पॉलिसी की जांच के बाद आयोग ने पाया कि केवल दाल और कच्चे माल के स्टॉक का बीमा किया गया था, लेकिन शिकायतकर्ता ने गलत तरीके से मशीनरी और भवन के नुकसान का दावा किया है। सर्वेयर ने पाया कि जो भी नुकसान हुआ, वह मशीनरी और भवन के कारण हुआ है न कि दाल और कच्चे माल के स्टॉक का।
पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता किसी भी विश्वसनीय सबूत से शिकायत में अपने दावे को साबित करने में विफल रहा है। वह अपनी रिपोर्ट में सर्वेक्षक की विभिन्न टिप्पणियों का खंडन करने में विफल रहा। यह दर्शाता है कि पूरा दावा वास्तविक नहीं है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी की ओर से सेवा में कमी सिद्ध नहीं होती है। राज्य आयोग का आदेश पूरी तरह से अवैध है और अपास्त किए जाने योग्य है।
राष्ट्रीय आयोग ने अपील की अनुमति दी और उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, लखनऊ दिनांक 14.03.2016 के आदेश को अपास्त कर दिया।
केस का नाम: प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और 2 अन्य बनाम एम/एस. अग्रहरी दल और अन्य।
केस नं.: प्रथम अपील नंबर 2016 का 479
कोरम: जस्टिस सी. विश्वनाथ, पीठासीन सदस्य और राम सूरत राम मौर्य, सदस्य
निर्णय लिया गया: 1 जून, 2022
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