चूंकि चालक ने निर्धारित सीमा से अधिक शराब का सेवन किया है, केवल इसल‌िए बीमा कंपनी को छूट नहीं दी जा सकती, जब तक कि वह अंशदायी लापरवाही नहीं दिखाती : केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-10-21 01:30 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल इसलिए कि एक व्यक्ति ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के दंड प्रावधानों के तहत निर्धारित सीमा से अधिक शराब का सेवन किया है, यह नहीं कहा जा सकता है कि वह 'शराब के प्रभाव में' था, और बीमा कंपनी को दावा देने से छूट नहीं दी जा सकती है जब उस व्यक्ति ने स्वयं किसी भी तरह से दुर्घटना में योगदान नहीं दिया था।

जस्टिस शाजी पी. चाली ने ऐसा मानते हुए 'शराब के प्रभाव' शब्द का अर्थ समझाया और कहा कि,

"इंद्रियों और मन की शक्ति पर शराब का प्रभाव एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है। मेरे विचार में शराब के प्रभाव का अर्थ यह होगा कि शराब के सेवन के कारण, व्यक्ति की सामान्य इंद्रियों और मनःशक्ति को शराब उद्वे‌लित कर देती है और जिससे सामान्य चेतना अस्थायी रूप से खो जाती है; या कि वह खुद को नियंत्रित करने की स्थिति में नहीं था; या व्यक्ति पर नशे की स्थिति बनी हुई है, इस प्रकार मोटरसाइकिल को नियंत्रित करने और सवारी करने की क्षमता, ताकत और फिटनेस खो जाती है और इस तरह पूरी तरह या आंशिक रूप से दुर्घटना में योगदान देत है"।

मामले में मृतक व्यक्ति, जो यहां चौथे प्रतिवादी का पति था, की 19 मई 2009 को एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उसके मोटर साइकिल एक पर्यटक बस से टकरा गई थी।

मृतक को व्यक्तिगत दुर्घटना समूह पॉलिसी के तहत कवर किया गया था, और तदनुसार चौथे प्रतिवादी ने पॉलिसी के तहत मृत्यु लाभ के लिए बीमा कंपनी (यहां याचिकाकर्ता) के समक्ष दावा किया था। हालांकि बीमा कंपनी ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि मौत तब हुई जब मृतक शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में था, जिससे चौथे प्रतिवादी के दावे को खारिज कर दिया गया।

लोकपाल के समक्ष, चौथे प्रतिवादी ने कहा कि दावे को खारिज करना कानूनी और उचित नहीं था और मृतक ने मोटरसाइकिल चलाने में लापरवाही नहीं की थी। यह भी बताया गया कि बस के चालक के खिलाफ एफआईआर और आरोप पत्र दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता ने हालांकि लोकपाल के समक्ष कहा कि अल्कोहल सामग्री की उपस्थिति ने पॉलिसी शर्तों में निहित खंड 5 (बी) के तहत दावे को छूट दी है।

लोकपाल ने पाया कि दुर्घटना उस समय हुई जब पर्यटक बस ने एक कार को ओवरटेक कर लिया और इसी क्रम में मृतक की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी। आगे यह पाया गया कि मृतक सड़क के दाहिनी ओर चल रहा था, जबकि पर्यटक बस गलत साइड पर चली गई थी।

लोकपाल ने आगे देखा कि, "केवल शराब का सेवन उस अवस्‍था से बिल्कुल अलग है कि व्यक्ति शराब के प्रभाव में है", और मौजूदा दुर्घटना पूरी तरह से बस चालक की लापरवाही के कारण हुई थी। तदनुसार, लोकपाल ने बीमा कंपनी को चौथे प्रतिवादी को साल लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।

इसी आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता-बीमा कंपनी ने मौजूदा याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट के समक्ष, याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राजन पी कालियाथ द्वारा यह तर्क दिया गया था कि कंपनी की देयता संविदात्मक थी और लोकपाल का निर्णय स्पष्ट रूप से अनुबंध की शर्तों के विपरीत था।

यह तर्क दिया गया कि बीमा अनुबंध के साथ-साथ समझौता ज्ञापन जिसके आधार पर बीमा का अनुबंध जारी किया जाता है, पार्टियों के अधिकारों और देनदारियों को नियंत्रित करता है, जो विशेष रूप से बीमा अनुबंध में 5 (बी) के बहिष्करण खंड और समझौता ज्ञापन के खंड 4 के तहत नशीली दवाओं या अल्कोहल के 'प्रभाव में रहते हुए' से उत्पन्न होने वाली मृत्यु या विकलांगता के मुआवजे को बाहर करता है।

चूंकि मृतक ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 185 के तहत निर्धारित रक्त के 30 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर की सीमा से अधिक शराब का सेवन किया था, जैसा कि रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट से पता चला था, यह तर्क दिया गया था कि बीमा कंपनी को इसके लिए अपनी देयता से बाहर रखा जाए।

दूसरी ओर, एडवोकेट अजय कुमार जी और वरिष्ठ सरकारी वकील जोबी जोसेफ ने तर्क दिया कि दुर्घटना पूरी तरह से पर्यटक बस चालक के तेज और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुई थी, और मृतक ने किसी भी तरह से इसमें योगदान नहीं दिया था।

वर्तमान मामले में, न्यायालय ने पाया कि दुर्घटना में मृतक की ओर से शराब की उपस्थिति के बावजूद अंशदायी लापरवाही का कोई मामला नहीं था।

कोर्ट ने कहा,

"बीमा कंपनी द्वारा पेश किया गया एकमात्र मामला रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट के आधार पर है कि रक्त में अल्कोहल की मात्रा अधिनियम 1988 की धारा 185 में निर्धारित सीमा से अधिक है, जो अपने आप में बहिष्करण खंड का लाभ पाने के लिए पर्याप्त नहीं है।"

परिणामस्वरूप, न्यायालय को लोकपाल का अवॉर्ड मनमाना, अवैधता, अनुचितता, या किसी अन्य कानूनी दुर्बलताओं से ग्रस्त नहीं लगा, जो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए उचित है, और तदनुसार, रिट खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम केरल राज्य और अन्य

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 531

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