धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट के निहित क्षेत्राधिकार को पुनर्विचार पर लगी रोक को ओवरराइड करने के लिए लागू नहीं किया जा सकताः दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-02-05 15:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने ही निर्णय को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने ऐसा ना करने के लिए धारा 362 सीआरपीसी के तहत परिकल्पित पुनर्विचार पर रोक का हवाला दिया।

धारा 362 यह निर्धारित करती है कि कोई भी न्यायालय, जब उसने अपने निर्णय या किसी मामले के निस्तारण के अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, लिपिक या अंकगणितीय त्रुटि को ठीक करने के अलावा उसमें परिवर्तन या पुनर्व‌िचार नहीं करेगा।

यह समझाते हुए कि धारा 482 के तहत न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां, संहिता के तहत मौजूदा प्रावधान की बिनाह पर नई शक्तियां प्रदान नहीं करती हैं, न्यायालय ने माना कि प्रावधान असीमित अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं करता।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

"हालांकि यह सच है कि धारा 482 सीआरपीसी इस प्रकार के आदेश देने के लिए हाईकोर्ट को व्यापक शक्तियां प्रदान करती है, जो सीआरपीसी के तहत किसी भी आदेश को प्रभावी करने के लिए या किसी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए या अन्यथा न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिए

आवश्यक हो सकता है, लेकिन अभिव्यक्ति "कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग" या "न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिए" हाईकोर्ट को असीमित अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं करते हैं।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 482 के तहत असाधारण शक्ति केवल तभी लागू की जा सकती है, जब न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हाईकोर्ट को सशक्त बनाने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

धारा 362 के महत्व को दोहराते हुए जस्टिस प्रसाद ने कहा, "धारा 362 सीआरपीसी का उद्देश्य यह है कि एक बार जब कोई अदालत किसी मामले को निपटाने के लिए एक निर्णय या अंतिम आदेश देती है, तो वह निर्णय कार्यात्मक हो जाता है, और उस पर पुनर्विचार या संशोधन नहीं किया जा सकता है"

मौजूदा मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या यह न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आदेश दे सकता है, जो सीआरपीसी की धारा 362 के तहत स्थापित बार को खत्म कर देगा। यह मानते हुए कि धारा 362 के तहत रोक संहिता की धारा 482 पर लागू होता है, अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने धारा 482 के बावजूद, धारा 362 की भावनाओं को कायम रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कई नजीरों पर निर्भरता व्यक्त की था।

उदाहरण के लिए, सिमरिखिया बनाम डॉली मुखर्जी (1990) में सुप्रीम कोर्ट ने माना था-

"धारा 482 के तहत निहित शक्ति का उद्देश्य न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना और न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करना है। ऐसी शक्ति का प्रयोग कुछ ऐसा करने के लिए नहीं किया जा सकता है जो संहिता के तहत स्पष्ट रूप से वर्जित है। यदि पुनर्व‌िचार के माध्यम से तथ्यों पर कोई विचार संहिता के तहत अनुमेय नहीं है और स्पष्ट रूप से वर्जित है, यह न्यायालय पर नहीं है कि वह मामले पर पुनर्विचार करने और परस्पर विरोधी निर्णय दर्ज करने के लिए अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करे।

यदि मामले की परिस्थितियों में कोई परिवर्तन होता तो यह हाईकोर्ट के लिए मौजूदा परिस्थितियों में अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने और न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने या प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए उचित आदेश पारित करने के लिए होता।

जहां ऐसी बदली हुई परिस्थितियां नहीं हैं और उन तथ्यों पर निर्णय लिया जाना है, जो पहले के आदेश की तारीख को मौजूद थे, एक अलग निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए एक ही सामग्री पर पुनर्विचार करने की शक्ति का प्रयोग वास्तव में एक पुनर्विचार है, जो स्पष्ट रूप से धारा 362 के तहत वर्जित है।

इस प्रकार, न्यायालय केवल बदली हुई परिस्थितियों में अपनी धारा 482 शक्ति का प्रयोग कर सकता था। अन्य सभी परिस्थितियों में, धारा 362 के तहत दिया गया निर्णय कार्यात्मक है यानी कोर्ट पुनर्विचार पर लगी रोक को ओवरराइड नहीं कर सकता है।

जस्टिस प्रसाद ने निर्णायक रूप से कहा, "न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कुछ ऐसा करने के लिए नहीं किया जा सकता है जो विशेष रूप से सीआरपीसी द्वारा निषिद्ध है। ऐसा करना संसद द्वारा निर्धारित कानून और सर्वोच्च न्यायालय के उदाहरणों का उल्लंघन होगा।"

केस शीर्षक: डॉ संजीव कुमार रसानिया बनाम सीबीआई और अन्य।

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 87

केस नंबर: CRL.M.C. 878/2021 & CRL.M.A. 4402/2021

कोरम: जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद

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