'स्पीडी ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन': मद्रास हाईकोर्ट ने प्रॉसिक्यूशन को एक लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया

Update: 2021-02-17 08:42 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (अभियोजन) को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता (अभियुक्त) को 1 लाख रुपये का मुआवजा दे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि, "याचिकाकर्ता के स्पीडी ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन हुआ है और मैं इस चीज (सच्चाई) से अपना हाथ पीछे नहीं खींच सकता हूं।"

कोर्ट, एम. अनंथन की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे एनडीपीएस अधिनियम के तहत निषिद्ध पदार्थ रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की एकल पीठ ने अभियोजन पक्ष की सुनवाई के लिए अभियोजन पक्ष यानी नारकोटिक्स ब्यूरो को पक्ष रखने के लिए बुलाया।

न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त जनवरी 2018 से न्यायिक हिरासत में है। जुलाई 2018 में इस मामले में एक अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी। अगस्त 2018 में अपराधों का संज्ञान लिया गया था। दिसंबर 2018 में आरोप तय किए गए थे। ट्रायल जनवरी 2019 में शुरू होना था, लेकिन पिछले दो वर्षों से ट्रायल भी नहीं हुआ।

खंडपीठ ने  कहा कि ज्यादातर नोटिस की तारीखों पर अभियोजन पक्ष के गवाह अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं थे और इसके साथ ही यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्तों के कारण मुकदमा शुरू होने में देरी हुई।

कोर्ट ने आगे कहा कि,

"आरोपी ने कोई भी डिस्चार्ज याचिका दायर नहीं की थी। वे किसी भी तरह से मुकदमे की शुरुआत के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। इस अदालत ने कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई थी। कोई भी याचिका दायर नहीं की गई थी। समय पर मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं करने का कोई औचित्य नहीं है। याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी की तारीख से पूरे तीन साल बीत चुके हैं।"

इसके अलावा, नवंबर 2019 में उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद ट्रायल में तेजी लाने और छह महीने की अवधि के भीतर योग्यता के आधार पर ही निष्कर्ष निकाला जाए, अभियोजन पक्ष द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया।

इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय का मत था कि याचिकाकर्ता के स्पीडी ट्रायल के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है।

बेंच ने अपने आदेश में कहा कि,

"ध्यान दिया गया कि याचिकाकर्ता के स्पीडी ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन किया गया है और मैं इस चीज (सच्चाई) से अपना हाथ पीछे नहीं खींच सकता हूं। अभियोजन पक्ष को जवाब देने के लिए बुलाया जाना चाहिए। इसे अपनी चूक का भुगतान करना होगा। इसलिए मैं नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड / अभियोजन को चार सप्ताह के भीतर 1 लाख रूपए भुगतान करने का निर्देश देता हूं।"

पंकज कुमार बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2008) 16 SCC 117 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि सभी आपराधिक मुकदमों में स्पीडी ट्रायल का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अक्षम्य अधिकार है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि हर मामले में, जहां अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि किसी अभियुक्त के स्पीडी ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन किया गया है, जैसा कि आरोप या दोष का मामला हो, तब तक खारिज किया जा सकता है जब तक कि अदालत को ऐसा नहीं लगता कि जो अपराध और अन्य प्रासंगिक परिस्थितियों की प्रकृति के संबंध में है, कार्यवाही को रद्द करना न्याय के हित में नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसी स्थिति में, कोर्ट के पास एक उचित आदेश देने का रास्ता खुला है क्योंकि यह ट्रायल के निष्कर्ष के लिए समय के निर्धारण सहित न्यायसंगत हो सकता है।

इस फैसले के आधार पर एकल न्यायाधीश ने कहा कि,

"यह मामला एनडीपीएस अधिनियम के तहत है। इसमें गांजा की व्यावसायिक मात्रा शामिल है। इसलिए, इसे रद्द नहीं किया जा सकता। जमानत भी नहीं दी जा सकती क्योंकि अधिनियम की धारा 37 पूरी नहीं हुई है। यह भी देखा गया कि याचिकाकर्ता के स्पीडी ट्रायल के अधिकार का उल्लंघन किया गया है और मैं इस चीज (सच्चाई) से अपना हाथ पीछे नहीं खींच सकता हूं।"

अभियोजन पक्ष को याचिकाकर्ता-अभियुक्त की पत्नी को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया। इसके साथ ही एकल न्यायाधीश ने यह भी निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट को तीन महीने की अवधि के भीतर ट्रायल समाप्त करना चाहिए।

[नोट: याचिकाकर्ता-अभियुक्त की जमानत अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी गई कि इस मामले में जमानत देने के लिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 पूरी नहीं की गई है।]

केस : एम. अनंथन बनाम राज्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:





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