विदेश में घटी घेरलू हिंसा पर भारतीय अदालतें संज्ञान ले सकती हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2023-04-20 12:07 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मसले पर अहम फैसला सुनाया है। बेंच ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत विदेश में घटी घरेलू हिंसा पर भारत में न्यायिक मजिस्ट्रेट संज्ञान ले सकते हैं। इसक मतलब ये है कि भारत में कोई अदालत घरेलू हिंसा के किसी मामले पर संज्ञान ले सकती है, भले ही कथित अपराध दूसरे देश में हुआ हो।

जस्टिस जीए सनप की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि अधिनियम एक सामाजिक लाभकारी कानून है। कानून निर्माताओं ने भारत के बाहर हुई घरेलू हिंसा को ध्यान में रखते हुए अधिनियम की धारा 27 को परिभाषित किया है।

अदालत ने एक भारतीय व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। उसने दावा किया गया था कि नागपुर में एक मजिस्ट्रेट कोर्ट उससे अलग रह रही पत्नी की तरफ से दायर घरेलू हिंसा की शिकायत पर कार्रवाई नहीं कर सकती है क्योंकि कथित घटनाएं जर्मनी में हुई थीं।

दरअसल, कपल ने 2020 में शादी की थी। साल के अंत में पति जर्मनी चला गया था। बाद में उसकी पत्नी जर्मनी चली गई। पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने जर्मनी में कुछ दिनों तक उसके साथ ठीक से व्यवहार किया, लेकिन बाद में उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी।

आगे आरोप लगाया कि उसे अपने माता-पिता से बात तक नहीं करने दिया जाता था। पत्नी अपने पति पर गर्भपात के लिए दबाव डालने का भी आरोप लगाया।

पत्नी ने जर्मनी छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ नागपुर में रहने लगी। नागपुर में ही पत्नी ने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई। पति ने शिकायत रद्द करने के लिए याचिका दायर की। एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने पति की याचिका खारिज कर दी। ऐसे में पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

पति ने तर्क दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, धारा 1 के तहत जम्मू और कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है। इसलिए भारतीय अदालतों के पास जर्मनी में हुई कथित घरेलू हिंसा पर अधिकार क्षेत्र नहीं है।

आगे तर्क दिया कि डीवी अधिनियम की धारा 27(2) के तहत आदेश पूरे भारत में लागू होता है। ये आदेश भारत के बाहर लागू नहीं होगा।

अधिनियम की धारा 27(1)(a) में प्रावधान है कि अगर पीड़ित व्यक्ति अस्थायी या स्थायी निवासी है या व्यवसाय करता है या अपनी स्थानीय सीमा के भीतर कार्यरत है तो मजिस्ट्रेट के पास अधिकार क्षेत्र है।

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा कि सुसराल वालों और पति ने शिकायतकर्ता को मानसिक और शारीरिक रुप से प्रताड़ित किया है। ये आधार पति की दलीलें खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं।

आगे कहा कि चूंकि घरेलू हिंसा अधिनियम के दायर में केवल भारत में हुई घटनाएं आती हैं, जिन पर घरेलू हिंसा अधिनियम के भाग 1 के तहत कार्रवाई की जाती है। अब विदेश में घटी घेरलू हिंसा पर भी भारतीय अदालतें संज्ञान ले सकती हैं।

साथ ही कोर्ट ने पति के आवेदन को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखा है।

मामला संख्या - क्रिमिनल एप्लीकेशन (एपीएल) नंबर 1576 ऑफ 2022

केस टाइटल - S v. H

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