"निष्क्रियता का बचाव कमजोर बहानों से किया जा रहा है": अदालती कामकाज संबंधित गंभीर मुद्दों पर यूपी सरकार के रवैये पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने असंतोष व्यक्त किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह अदालतों के कामकाज संबंधित गंभीर मुद्दों पर उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों द्वारा की जा रही प्रगति पर कड़े शब्दो में अपना असंतोष व्यक्त किया।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी, जस्टिस प्रिंकर दिवाकर, जस्टिस नाहिद आरा मूनिस, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस श्रीमती सुनीता अग्रवाल, जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता की सात सदस्यीय पीठ उत्तर प्रदेश में न्यायालयों के कामकाज से संबंधित एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।
कुछ उपद्रवी वकीलों द्वारा हाईकोर्ट के कामकाज में बाधा डालने के बाद कोर्ट ने वर्ष 2015 में मौजूदा जनहित याचिका दर्ज की थी, और राज्य सरकार को जिला न्यायालयों सहित राज्य के सभी न्यायालयों में सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की उचित व्यवस्था करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।
हालिया सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि वह अदालत में कजााार बहाने बनाकर अपनी निष्क्रियता का बचाव कर रही है।
न्यायालय द्वारा जांच किए गए मुद्दे
राज्य सरकार ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के लिए सुरक्षा उपायों को अपग्रेड करने के संबंध में वह सैद्धांतिक रूप से सहमत है कि सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और उनके रखरखाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को शामिल किया जाएगा।
यह भी कहा गया कि सुरक्षा व्यवस्था और संबंधित मुद्दों की नियमित निगरानी के लिए विशेषज्ञों की एक विशेष टीम की प्रतिनियुक्ति की जाएगी। इस संबंध में, न्यायालय को उम्मीद थी कि राज्य द्वारा सहमति के अनुसार शीघ्रता से उचित कार्रवाई की जाएगी।
हाईकोर्ट के बुनियादी ढांचे या अधीनस्थ न्यायालयों के लिए न्यायालयों और आवासीय भवनों के निर्माण के लिए भूमि आवंटन के मुद्दे पर न्यायालय ने रेखांकित किया कि अधीनस्थ न्यायालयों के प्रभावी कामकाज के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं कमी के कारण वादियों को शीघ्र और समय पर न्याय प्रदान करने में हस्तक्षेप होता है।
इस संबंध में न्यायालय ने आगे कहा, "जिले के रेकर्ड्स के संरक्षक होने के नाते जिला मजिस्ट्रेटों को न्यायिक अधिकारियों के लिए न्यायालय परिसर और आवासीय आवास दोनों के लिए अधीनस्थ न्यायालयों को उनके आवंटन के लिए स्थानीय स्तर पर भूमि की पहचान करने की आवश्यकता होती है। इस न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने जिला न्यायाधीशों को ऐसी भूमि की पहचान करने के लिए जिलाधिकारियों के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया था जो अधीनस्थ न्यायालयों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए आवश्यक और उपलब्ध कराई जा सकती हैं। बार-बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद इस मामले में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है। कई जिलों में अधिग्रहण की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, जबकि काफी समय बीत चुका है।"
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि यह राज्य सरकार का दायित्व है कि वह अधीनस्थ न्यायालयों को पेश आ रही समस्याओं को हल करने के लिए प्रभावी कार्रवाई करे। पॉक्सो न्यायालयों की स्थापना में संवेदनशीलता की कमी के मुद्दे पर कोर्ट ने पोक्सो कानून, 2012 का उल्लेख किया। कोर्ट ने राज्यव्यापी पॉक्सो अदालतों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे की अनुपलब्धता के मुद्दे पर जोर दिया।
इस संबंध में, न्यायालय ने रेखांकित किया कि बुनियादी ढांचे की कमी के लिए, जिसके लिए न्यायपालिका राज्य सरकार पर निर्भर है, न्यायालय की कार्यवाही की प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को कुछ लाभ प्रदान करने के लिए नियमों की अधिसूचना से संबंधित मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि तेलंगाना हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दिए गए लाभ इस न्यायालय द्वारा प्रस्तावित लाभों की तुलना में कहीं बेहतर हैं, फिर भी इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
हाईकोर्ट की ओर से उठाए गए मुद्दों के संबंध में महाधिवक्ता ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि उक्त मुद्दों पर तत्काल निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया जाएगा। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि नोडल अधिकारी की नियुक्ति की सूचना न्यायालय को अगली नियत तिथि को दी जायेगी।
इसे देखते हुए कोर्ट ने मामले को स्थगित करते हुए 27 अक्टूबर को मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
मामला- In Re v. Zila Adhivakta Sangh Allahabad