बच्चे को जन्म न दे पाना शादी खत्म करने का वैध आधार नहीं: पटना हाईकोर्ट

Update: 2023-07-26 11:08 GMT

"बच्चे को जन्म न दे पाना शादी को खत्म करने का वैध आधार नहीं है।"

पटना हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी पति की ओर से दायर तलाक की याचिका खारिज करते हुए की। दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ पति ने रिवीजन पिटिशन पटना हाईकोर्ट में दायर किया।

अदालत ने कहा- महिला के गर्भाशय में सिस्ट है। इसलिए वो बच्चा पैदा नहीं कर पा रही है। महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट होने पर पेट में सूजन, दर्द, यौन संबंध बनाने के दौरान दर्द होना, उल्टी जैसे लक्षण हो सकते हैं। पति उसे तलाक देकर दूसरी महिला से शादी करना चाहता है ताकि वो बच्चा पैदा कर सके।

जस्टिस जितेंद्र कुमार और जस्टिस पी.बी. बजंथरी की डिवीजन बेंच ने कहा कि पति पत्नी के रूप में रहने के दौरान किसी को कोई भी बिमारी हो सकती है। इस पर किसी का कंट्रोल नहीं है।

आगे कहा, ऐसी स्थिति में, दूसरे पति या पत्नी का वैवाहिक कर्तव्य है कि वो अपने पार्टनर की सहायता करे, साथ रहे। बच्चे को जन्म देने में असमर्थता न तो नपुंसकता है और न ही विवाह को समाप्त करने का कोई आधार है। ऐसी परिस्थितियों में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का प्रावधान नहीं है।"

फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की तालक की याचिका इस आधार पर खारिज की थी कि वो पत्नी के खिलाफ लगाए गए क्रूरता के आरोप को साबित करने में विफल रहा।

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उससे और ससुराल वालों से दुर्व्यवहार करती है। उसकी पत्नी ने शादी खत्म करने के लिए भी कहा था। पत्नी कभी फैमिली शुरू नहीं करना चाहती थी, सिर्फ वर्जिनिटी तोड़ना चाहती थी। परिवार की ओर से मना किए जाने के बावजूद उसने गांव में लोगों के साथ मिटिंग की।

पति ने ये भी कहा- पत्नी अपने माता-पिता के साथ रहती है। कई बार उसने वापस लाने की कोशिश की, लेकिन उसने इनकार कर दिया। जब उसने को अपने खराब स्वास्थ्य के बारे में बताया और इलाज के लिए वित्तीय सहायता मांगी, तो वो उसे डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर की सलाह पर अल्ट्रासोनिक टेस्ट से पता चला कि पत्नी के गर्भाशय में सिस्ट है। अंडे नहीं हैं। उसके गर्भधारण करने और मां बनने की संभावना नहीं है।

अदालत ने कहा, पति 24 साल का युवा व्यक्ति है। वो पिता बनना चाहता है, लेकिन पत्नी के मां बनने की कोई संभावना नहीं है।

कोर्ट ने नोट किया कि तलाक की याचिका शादी के दो साल के भीतर दायर की गई और पत्नी केवल दो महीने तक पति के साथ रही थी। ऐसे में परित्याग का आधार नहीं बनता है। क्योंकि परित्याग कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए होना चाहिए।"

अदालत को पत्नी के साथ रहने से कथित इनकार के अलावा व्यवहारिक कदाचार का कोई सबूत नहीं मिला जो क्रूरता की कैटेगरी में आता हो।

अदालत ने कहा,

"हालांकि, पत्नी द्वारा अपीलकर्ता-पति के साथ रहने से इनकार करने के संबंध में इस तरह के आरोप और बयान विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते हैं, इस निष्कर्ष के मद्देनजर कि प्रतिवादी-पत्नी के अपने माता-पिता के घर लौटने के बाद भी, अपीलकर्ता-पति उसके संपर्क में था और यही कारण है कि जब वह बीमार पड़ गई, तो उसने अपीलकर्ता-पति को सूचित किया और अपीलकर्ता-पति उसे इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गया।"

अदालत ने आगे कहा कि पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाया है, जो दर्शाता है कि साथ रहने से इनकार करने के दावे में आधार का अभाव है।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा,

“रिकॉर्ड पर मौजूद दलीलों और सबूतों से ये भी प्रतीत होता है कि जब पति-अपीलकर्ता को पत्नी-प्रतिवादी की चिकित्सा जांच के बाद पता चला कि प्रतिवादी-पत्नी के गर्भाशय में सिस्ट है और वो बच्चे को जन्म देने में असमर्थ है, तो पति उसे तलाक देकर किसी अन्य महिला से पुनर्विवाह करना चाहता है ताकि वह बच्चा पैदा कर सके। अपीलकर्ता-पति का ऐसा मकसद दलीलों और सबूतों से स्पष्ट है। ”

केस टाइटल: एसके बनाम आरडी

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