वर्दीधारी अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना महत्वपूर्ण हैः कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 41ए का दुरुपयोग करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए का दुरुपयोग करके एक नागरिक को परेशान करने का प्रयास करने के मामले में पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने का निर्देश दिया है।
हाईकोर्ट एक रंजीत डे की तरफ से दायर अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर रही थी, जिसे एक अपराध के संबंध में अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए धारा 41 ए के तहत नोटिस दिया गया था।
यह मामला तीन व्यक्तियों द्वारा साजिश रचने से संबंधित है,जिसमें नकदीकरण के लिए फर्जी चेक प्रस्तुत किया जाना था। केस के रिकॉर्ड को देखने के बाद, अदालत ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता का षड्यंत्रकारियों के साथ दूरस्थ लिंक भी नहीं था।
जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस अनिरुद्ध रॉय की खंडपीठ ने शुरुआत में ही कहा कि,
''यह जांच अधिकारी द्वारा उत्पीड़न या जबरन वसूली का मामला प्रतीत होता है और इस अनियंत्रित आचरण के खिलाफ तत्काल उचित अनुशासनात्मक कदम उठाए जाने चाहिए।''
कोर्ट ने तब तीखी टिप्पणी की और कहा किः
''अन्य आपराधिक गतिविधियों की जाँच करने से पहले वर्दीधारी अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है।''
न्यायालय ने कहा कि 100 पृष्ठों से अधिक के इस मामलों के रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता की किसी भूमिका के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। न्यायालय ने अनुमान लगाया कि कि याचिकाकर्ता को धारा 41 ए के तहत नोटिस ''बाहरी विचारों के लिए और संभवतः, आपराधिक मामलों में नागरिकों को अनावश्यक रूप से उलझाकर पैसे निकालने के लिए पुलिस की सक्रियता'' के चलते जारी किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि,
''यह कल्पना भी करना मुश्किल है कि प्रासंगिक बयान में किसी भी गलत काम के लिए याचिकाकर्ता को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने एक व्यक्ति को बयान देने वाले से मिलवाया था,जिसने एक तीसरे व्यक्ति को बयान देने वाले से मिलवाया और इस तरह से उस तीसरे व्यक्ति ने बयान देने वाले के साथ मिलकर एक साजिश रची। सिर्फ इस आधार पर किसी भी सूरत में, यह स्वीकार करना मुश्किल है कि याचिकाकर्ता भी इस साजिश में शामिल था।''
राज्य की तरफ से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई सामग्री नहीं है। जिसके बाद अदालत ने आदेश दिया कि '' अब किसी भी तरह से वर्तमान मामले के संबंध में याचिकाकर्ता को परेशान नहीं किया जा सकता है।''
न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि,
''पुलिस महानिदेशक इस मामले में एक उचित जांच शुरू करें और यदि जरूरी हो तो जांच अधिकारी के इसी तरह के पुराने आचरण को देखने के लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी शुरू की जाए।''
याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता सौम्यजीत दास महापात्रा और धनंजय बनर्जी उपस्थित हुए।
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ ट्वीट करने के मामले में दिल्ली की एक महिला को धारा 41 ए के तहत नोटिस जारी करने के लिए कोलकाता पुलिस की आलोचना की थी।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने रोहिणी बिस्वास बनाम बनाम पश्चिम बंगाल मामले में जारी किए गए नोटिस पर रोक लगाते हुए कहा था कि '' यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि धारा 41 ए के तहत शक्ति का इस्तेमाल धमकाने,भयभीत और उत्पीड़न के लिए न किया जाए।''
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