''यदि कंपनियों/एलएलपीएस को पंजीकृत करने के लिए पेशेवर के रूप में वकीलों के लिए एमसीए पोर्टल में कोई फील्ड नहीं है तो यह भेदभावपूर्ण होगा'': दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को उस याचिका पर हलफनामा दायर करने को निर्देश दिया है कि जिसमें वर्तमान कारपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) के पोर्टल में अपने मुविक्कलों की ओर से कंपनियों और एलएलपी को पंजीकृत करने के लिए अधिवक्ताओं के लिए कोई फील्ड प्रदान न करने के मामले को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की एकल पीठ ने कहा कि यदि यह सही है कि एमसीए के पोर्टल में उन अधिवक्ताओं के लिए कोई प्रावधान नहीं है जो बार काउंसिल के सदस्य हैं और बार काउंसिल की काउंसिल की सूची में एक विकल्प प्रदान नहीं किया गया है तो यह वकीलों के प्रति भेदभावपूर्ण है और इसको ठीक करने की जरूरत है।
न्यायालय ने उचित प्राधिकारी से इस मुद्दे पर निर्णय लेने और फिर इसे न्यायालय के समक्ष रखने को कहा है।
बेंच ने कंपनी एक्ट, 2013 की धारा 7 (1) (बी) के अनुसार उल्लेख करते हुए कहा कि अधिवक्ता किसी कंपनी के इनकाॅरपोरेशन के लिए दस्तावेज दाखिल कर सकते हैं और यह एलएलपी के मामले में भी सही होगा। इसलिए यदि पोर्टल में अधिवक्ताओं के लिए प्रावधान नहीं है, तो इसे ठीक करने की आवश्यकता है।
अदालत ने स्टैंडिंग काउंसल अजय दिग्पोल को मामले पर निर्देश लेने और दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है और मामले को अगली सुनवाई के लिए 23 मार्च 2021 को सूचीबद्ध किया गया है।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि एमसीए टूल किट में संशोधन की जरूरत है ताकि उन अधिवक्ताओं को अनुमति दी जा सके जो बार काउंसिल के साथ पंजीकृत हैं और एमसीए पोर्टल में पेशेवरों के रूप में पंजीकृत होना चाहते हैं।
याचिकाकर्ता इस तथ्य से व्यथित है कि कंपनी एक्ट में संशोधन के बाद वकीलों को कंपनी इनकाॅरपोरेशन के लिए दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति दे दी गई है। परंतु उसके बावजूद भी वे अभी भी खुद को एक प्रैक्टिसिंग प्रोफेशनल के रूप में पंजीकृत नहीं कर सकते हैं क्योंकि संशोधन को टूल किट में लागू नहीं किया गया है।
वर्तमान दलील अधिवक्ताओं के पंजीकरण और सुविधा के लिए एमसीए पोर्टल में पेशेवरों के रूप में अधिवक्ताओं के नाम और पेशेवरों की फर्मों के रूप में लॉ फर्मों को शामिल करने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग करते हुए दायर की गई है। इस याचिका में, एक पेशेवर के रूप में पंजीकरण करवाने के लिए एमसीए पोर्टल पर अपनाई जाने वाली ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया के तरीके, पेशेवरों के रूप में अधिवक्ताओं के डीएससी को अपलोड करना और कंपनियों व एलएलपी के इनकाॅरपोरेशन के लिए संबंधित दस्तावेजों को इस तरह से दाखिल करना कि एक वकील पेशेवर के रूप में अपने वैध कर्तव्य का प्रदर्शन करने में असमर्थ है, को भी चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, एमसीए ऑनलाइन पोर्टल में अधिवक्ता के लिए प्रावधान की अनुपस्थिति के कारण एक वकील पेशेवर के रूप में वहां पंजीकरण नहीं कर सकता है। हालांकि, नए कंपनी एक्ट 2016 और सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के अनुसार एक वकील कंपनी इनकाॅरपोरेशन के दस्तावेजों को सत्यापित करने के लिए अधिकृत है।
याचिका में कहा गया है कि,
''कंपनी एक्ट 2006 की धारा 7 सहित एक्ट के विभिन्न प्रावधानों के तहत, एक अधिवक्ता उसी वर्ग में है जहां दस्तावेजों के सत्यापन के लिए एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, कॉस्ट अकाउंटेंट या कंपनी सेक्रेटरी हैं, लेकिन एमसीए पोर्टल में जो तरीका इस्तेमाल किया गया है वह प्रपत्रों के सत्यापन के उद्देश्य के लिए वकीलों को अन्य से अलग कर रहा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत एक वकील को मिले मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।''
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि एमसीए पोर्टल उसे और अन्य अधिवक्ताओं को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी), अधिवक्ता अधिनियम 1961, कंपनी एक्ट 2016 व सीमित देयता भागीदारी अधिनियम 2008 के तहत गारंटीकृत अपने पेशे का अभ्यास करने के बहुमूल्य अधिकार का उपयोग करने से वंचित कर रहा है।
याचिकाकर्ता शिखा शर्मा बग्गा की ओर से अधिवक्ता खगेश बी झा ने याचिका दायर की है।
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