अगर हत्या के दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी जाती है तो अन्य अपराधों के लिए सजा साथ-साथ चलेगी: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2023-02-24 11:45 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यदि किसी अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा दी जाती है और किसी अन्य आरोप के लिए एक और निश्चित अवधि की सजा दी जाती है तो दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी न कि एक के बाद एक।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने दोषियों रामचंद्र रेड्डी और अन्य की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह स्पष्टीकरण दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को एससी नंबर 02/2007 में 25.11.2010 को पारित दोषसिद्धि के आक्षेपित आदेश के संदर्भ में सजा सुनाई गई है, जो कि साथ-साथ चलेगी।

सत्र न्यायालय ने 09.12.2010 को दिए आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं को दोषी ठहराया और उन्हें आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास दिया और 50,000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई और जुर्माना अदा न करने पर उन्हें छह महीने की अवधि के लिए अतिरिक्त कठोर कारावास से गुजरने की सजा दी गई।

उन्हें धारा 394 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और दस साल की अवधि के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाई गइ और प्रत्येक को 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया थे। अदा न कर पाने पर छह महीने की अवधि के लिए अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि वे 22.09.2002 से जेल में हैं, बीस साल से अधिक की अवधि बीत चुकी है और नियमों और दिशानिर्देशों के संदर्भ में छूट या समय से पहले रिहाई के हकदार हैं।

हालांकि, संबंधित अदालत द्वारा एक निर्देश के अभाव में कि सजा एक साथ चलनी चाहिए, याचिकाकर्ता जेल में बीस साल पूरा करने के बाद भी इस आधार पर छूट पाने के हकदार नहीं हैं कि सजा आईपीसी की धारा 394 के तहत दंडनीय अपराध के लिए है।

पीठ ने रमेश चिलवाल @ बंबय्या बनाम उत्तराखंड राज्य (2012) 11 एससीसी 629, गगन कुमार बनाम पंजाब राज्य, 2 (2019) 5 एससीसी 154 और मुथुरामलिंगमा और अन्य बनाम राज्य, पुलिस इंस्पेक्टर के माध्यम से, (2016) 8 एससीसी 213 मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसलों पर भरोसा किया, जिसमें माना गया है कि "यदि अदालत पहले उम्रकैद की सजा शुरू करने का निर्देश देती है, तो इसका मतलब यह होगा कि सजा की अवधि साथ-साथ चलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार जब कैदी जेल में अपना जीवन बिता देता है, तो उसके लिए आगे की सजा काटने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।”

जिसके बाद पीठ ने कहा, "इस आदेश में कोई संकेत नहीं है कि सजा साथ-साथ चलेगी या एक के बाद एक। इसलिए, इस तरह के निष्कर्ष से संबंधित मुद्दे को संबंधित न्यायालय द्वारा अनअटेंडेड छोड़ दिया जाता है। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शुरू में दी जाने वाली अधिकतम सजा आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास और बाद में आईपीसी की धारा 394 के तहत 10 साल के लिए कारावास है।

इसके बाद कोर्ट ने कहा,

"मैं यह निर्देश देना उचित समझता हूं कि जिला और सत्र न्यायाधीश, चिक्काबल्लापुरा द्वारा पारित 2007 के एससी नंबर 02 में 25.11.2010 के दोषसिद्धि के आदेश द्वारा याचिकाकर्ताओं पर लगाई गई सजा साथ-साथ चलेगी।"

केस टाइटल: रामचंद्र रेड्डी और अन्‍य और कर्नाटक राज्य

केस नंबर: क्रिमिनल पेटिशन नंबर 3359 ऑफ 2022 सी/डब्‍ल्यू क्रिमिनल पेटिशन नंबर 2096 ऑफ 2021

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कर) 80

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