'अगर भ्रूण को एक विकल्प दिया जाए, तो वह निश्चित रूप से यह स्वीकार करेगा कि उसकी जन्म लेने की इच्छा नहीं है': मद्रास हाईकोर्ट ने 15 साल की लड़की को गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी
मद्रास हाईकोर्ट (मदुरै बेंच) ने पिछले महीने विरुधुनगर जिले की एक 15 वर्षीय लड़की की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा था कि यदि नाबालिग के गर्भ में पल रहे भ्रूण को इस समय कोई विकल्प दिया जाए, तो वह निश्चित रूप से यह घोषणा करेगा कि वह पैदा होने की इच्छा नहीं रखता है।
न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन की खंडपीठ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपनी भांजी (जे) की गर्भावस्था को समाप्त करवाने की अनुमति देने की मांग की थी। 'जे' के पिता की मृत्यु वर्ष 2012 में हो गई थी और उसकी मां मानसिक रूप से अस्थिर हैं और इसलिए उसकी देखभाल उसकी मामी और मामा द्वारा की जा रही है।
न्यायालय के समक्ष मामला
कथित तौर पर, एक सुंदर नामक व्यक्ति ने जे को बहलाया और उसका अपहरण कर लिया और उसके बाद जे के साथ कई बार शारीरिक संबंध स्थापित किए। जिस वजह से जे गर्भवती हो गई थी। इसलिए अब याचिकाकर्ता ने अदालत से संपर्क किया है ताकि प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया जा सकें कि वह जे की गर्भावस्था को समाप्त करवा दें।
मामले की तात्कालिकता को देखते हुए, न्यायालय ने विरुधुनगर सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सहायक सर्जन को नोटिस जारी किया था। जिन्होंने नाबालिग लड़की की जांच करने के बाद स्पष्ट रूप से कहा था कि उसकी गर्भावधि की उम्र लगभग 10-11 सप्ताह है और गर्भावस्था जारी रखने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
रिपोर्ट में गर्भावस्था को जारी रखने में शामिल जोखिमों का हवाला दिया गया और इस अदालत से आह्वान किया गया कि चिकित्सा आधार पर गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जाए।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 के अनुसार, नाबालिग लड़की के गर्भ को उसके अभिभावक द्वारा लिखित रूप में दी गई सहमति के बिना समाप्त नहीं किया जा सकता है।
''जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति''
दिलचस्प बात यह है कि शुरुआत में ही अदालत ने तमिल ऋषि-कवि तिरुवल्लुवर के हवाले से कहा कि - ''यदि कुछ भी वांछित है, तो वह जन्म से मुक्ति पाना ही होना चाहिए।''("if anything is to be desired, it should be freedom from birth")
कोर्ट ने आदि शंकर द्वारा ''भज गोविंदम'' में व्यक्त किए गए विचारों को भी ध्यान में रखा, जिसमें उन्होंने गाया था,
" Again, and again, one is born, and again and again one dies, and again and again one sleeps in the mother's womb, help me to cross, this limitless sea of life, which is uncrossable, my Lord".
इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने कहा कि,
''जबकि हम जीवन का जश्न मनाते हैं, सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रार्थना यह है कि जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति होनी चाहिए।''
''अदालत को खुद को अजन्मे बच्चे के जूतों में रखना चाहिए''
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि उसे अपने आप को अजन्मे बच्चे के जूतों में या उसकी जगह पर रखकर सोचना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि अगर वह इस दुनिया में आ रहा है तो क्या यह उसका सबसे अच्छा हित होगा?
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग की उम्र 15 साल है और वह खुद को बनाए रखने की स्थिति में नहीं है,इसलिए कोर्ट ने कहा कि,
''एक अजन्मा बच्चा भी एक व्यक्ति है। वर्तमान मामले में, बच्चे के पिता को आपराधिक मामलों में शामिल दिखाया गया है, जिनमें से कुछ गंभीर प्रकृति के हैं ... यदि भ्रूण को इस समय नाबालिग के पेट में ही एक विकल्प दिया जाता है,तो वह निश्चित रूप से घोषणा करेगा कि वह पैदा होने की इच्छा नहीं रखता है।''
इस प्रकार, चिकित्सा राय और नाबालिग द्वारा दी गई सहमति को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने तीसरे प्रतिवादी को निर्देश दिया है कि वह नाबालिग जे के गर्भ को समाप्त कर दें।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि,
''बेशक, पीड़ित की सुरक्षा और स्वास्थ्य सर्वोपरि है और डॉक्टर्स को यह ध्यान में रखना होगा। आपराधिक मामले के उद्देश्य से चिकित्सीय परीक्षण करने के लिए भ्रूण के नमूनों को संरक्षित रखा जाए।''
'' यह इस मामले का अंत नहीं हो सकता''
यह देखते हुए कि यह इस मामले का अंत नहीं हो सकता है, कोर्ट ने मामले की तेजी से सुनवाई पूरी करने का आह्वान किया।
न्यायालय ने कहा,
''मैंने कई मामलों में देखा है कि आरोपी वैधानिक जमानत पर बाहर आ जाते हैं क्योंकि अंतिम रिपोर्ट जानबूझकर समय पर दायर नहीं की जाती है। इसलिए जांच अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि मामले में अंतिम रिपोर्ट वैधानिक अवधि के भीतर दायर कर दी जाए।''
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि जब प्रतिवादी नंबर-4 अंतिम रिपोर्ट दायर कर दे तो संज्ञान लेने के संबंध में निर्णय विशेष न्यायालय द्वारा तीन दिनों के भीतर ले लिया जाए,जैसा कि वैधानिक नियमों में अनिवार्य है और यदि संज्ञान लिया जाता है, तो ट्रायल को केस की मैरिट व कानून के अनुसार तीन महीने की अवधि के भीतर निस्तारित करने का निर्देश दिया गया है।
अंत में, न्यायालय ने कहा,
''हालांकि एक सामान्य दृष्टिकोण से, कोई टिप्पणी कर सकता है कि जे सुंदर के साथ दोस्ती में पड़ गई थी, परंतु कानून की नजर में वह एक बच्ची है। वह परिस्थितियों की शिकार है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में मुआवजे के भुगतान के लिए लाभकारी प्रावधान शामिल किए गए हैं।''
जांच अधिकारी को इस प्रकार विशेष अदालत के समक्ष अंतरिम मुआवजे के भुगतान के लिए एक आवेदन दायर का निर्देश दिया गया और विशेष अदालत को उचित आदेश पारित करने के लिए निर्देशित किया गया था, ताकि हर महीने 5000 रुपये (पांच हजार रुपए) की राशि जे के रख-रखाव के उद्देश्य के लिए थिरु वेलुचामी (पीड़िता के मामा) के बैंक खाते में जमा की जा सकें।
अदालत ने आगे कहा, ''इस तरह का प्रेषण 36 महीने के लिए किया जाएगा। यह न्यायालय विशेष अदालत द्वारा संवितरण किए जाने वाले आवश्यक धन को उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेगा।''
इन निर्देशों के साथ, रिट याचिका की अनुमति दी गई।
(नोटः तत्काल मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने लाइव लॉ की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया था,जिसमें केरल हाईकोर्ट का एक निर्णय [(W.P. (C) No.29209 of 2020)] हमारे द्वारा रिपोर्ट किया गया था।)
केस का शीर्षक - महालक्ष्मी बनाम जिला कलेक्टर [W.P.(MD)No.659 of 2021]
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