हिजाब पर प्रतिबंधः कानूनी शिक्षाविदों और वकीलों का खुला पत्र, मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक आधिकारों के उल्लंघन की कड़ी निंदा

Update: 2022-02-16 11:40 GMT

हिजाब के मसले पर 500 से अधिक लॉ स्टूडेंट्स, कानूनी श‌िक्षाविदों और वकीलों ने एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में हिजाब पहनने के कारण मु‌स्लिम युवतियों को शैक्षणिक संस्‍थानों में प्रवेश करने से रोकने की कड़ी निंदा की गई है। पत्र में ऐसी कार्रवाई को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में अंजना प्रकाश (हाईकोर्ट की पूर्व जज) अमर सरन (हाईकोर्ट के पूर्व जज), सीएस द्वारकानाथ (पूर्व अध्यक्ष, कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग), संजय पारिख (वरिष्ठ अधिवक्ता), मिहिर देसाई (वरिष्ठ अधिवक्ता) अशोक अग्रवाल (वरिष्ठ अधिवक्ता), गायत्री सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), प्रतीक्षा बक्सी (प्रोफेसर और लेखक), वृंदा ग्रोवर (सुप्रीम कोर्ट की वकील), सौम्या उमा (जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में प्रोफेसर), मीरा संघमित्रा (कार्यकर्ता और कानून स्नातक), पूर्णिमा हट्टी (पार्टनर, संवाद पार्टनर्स), शाहरुख आलम (सुप्रीम कोर्ट के वकील), अरुंधति काटजू (सुप्रीम कोर्ट के वकील) डी गीता (श्रम वकील, चेन्नई) मुरलीधर (वरिष्ठ श्रम वकील), अरविंद नारायण (वकील और लेखक) झूमा सेन (प्रोफेसर और कानूनी अकादमिक), और क्लिफ्टन डी'रोज़ारियो (राष्ट्रीय संयोजक, एआईएलएजे) शामिल हैं।

पत्र में लिखा है,

"हम माननीय कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश से समान रूप से चिंतित हैं, जिसमें छात्रों को उनके धर्म की परवाह किए बिना भगवा शॉल (भगवा), स्कार्फ, हिजाब, धार्मिक झंडे या उस जैसी वस्‍तुओं को कक्षा के भीतर पहनने से रोक दिया गया है।"

अंतरिम आदेश के बाद, हम मुस्लिम छात्रों और कर्मचारियों के सार्वजनिक अपमान को देख रहे हैं, जिन्हें कथित तौर पर जिला प्रशासन के निर्देश पर स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश करने से पहले अपना हिजाब हटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं की यह अवहेलना सार्वजनिक दृष्टि से यह अमानवीय, अपमानजनक और संविधान का अपमान है और पूरे समुदाय के सार्वजनिक अपमान के बराबर है। सम्मान के साथ जीवन के उनके मूल अधिकार की रक्षा करने में विफल होने के कारण हमार सिर शर्म से झुक गया है।"

पत्र में आगे कहा गया है, "कानूनी बिरादरी के सदस्यों के रूप में, हम जानते हैं कि किसी मुद्दे का निर्धारण दांव पर लगे अधिकारों की समझ में सर्वोपरि महत्व रखता है। माननीय हाईकोर्ट ने अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार, जो संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित है, से विशेष रूप से जुड़े एक समझौते को विचार के लिए चुना है।"

इसमें आगे कहा गया है, "इस तरह के निर्णय का प्रभाव मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा से बाहर करना और हमारे देश में शिक्षा के संकट को बढ़ाना है। केवल हिजाब पहनने के आधार पर महिलाओं को शिक्षा से वंचित करना उचित नहीं है...। मुस्लिम महिलाओं की स्वायत्तता, निजता और गरिमा के विपरीत पूर्ण एकरूपता लागू करना असंवैधानिक है। इसके आधार पर महिलाओं को हिजाब पहनने का अधिकार है, और समान रूप से, हिजाब नहीं पहनने का भी अधिकार है।"

पत्र में यह भी कहा गया है कि, "अन्य समुदायों के छात्रों ने यू‌निफॉर्म के साथ अपने धर्म के विभिन्न प्रतिकों को पहना है। हालांकि, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर मौजूदा हमला कोई नई या एक अलग घटना नहीं है, बल्कि इसे कर्नाटक और देश भर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए..।"

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कर्नाटक में उन युवा मुस्लिम महिलाओं को पूर्ण और बिना शर्त समर्थन दिया है, जो शिक्षा के अपने अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए आंदोलनरत हैं।

पत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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