हाईकोर्ट ने दिल्ली में वैध वीजा या पासपोर्ट के बिना कथित रूप से रह रहे अफ्रीकी नागरिकों के निर्वासन की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी में वैध वीजा या पासपोर्ट के बिना कथित तौर पर रह रहे अफ्रीका, बांग्लादेश और अन्य विदेशी नागरिकों के तत्काल निर्वासन की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने वकील सुशील कुमार जैन द्वारा दायर याचिका को वापस लेते हुए खारिज कर दिया।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि विदेशी नागरिक बिना किसी उचित सत्यापन के दिल्ली में किरायेदारों के रूप में रह रहे हैं।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई रिसर्च नहीं किया गया और जनहित याचिका में की गई टिप्पणियों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि वह किसी के खिलाफ किसी भी नस्लवादी बयान को स्वीकार नहीं करेगी।
पीठ ने कहा,
"ये लोग भी हमारी तरह इंसान हैं और आप बिना किसी आधार के उन पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं।"
जनहित याचिका में विदेशी नागरिकों के पासपोर्ट और वीजा के पुलिस सत्यापन और अवैध रूप से रहने वालों के निर्वासन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। ऐसे विदेशी नागरिकों को वीजा जारी करने और उन्हें ब्लैक लिस्ट में डालने के खिलाफ भी दिशा-निर्देश मांगा गया था। याचिका में विदेशियों को "अवैध आश्रय" प्रदान करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया कि जमींदारों की आदतें (बिना सत्यापन के विदेशियों को अवैध आश्रय प्रदान करना) आतंकवादियों को हमारे देश में कार्य करने के आसान साधन और तरीके प्रदान कर सकती हैं और वे आसानी से दिल्ली और देश भर में अपनी नापाक योजना में सफल हो सकते हैं।
आगे कहा,
"छात्र वीजा और मेडिकल वीजा लेने वाले कई विदेशी अवैध कार्यों, नशीली दवाओं की तस्करी, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी और साइबर धोखाधड़ी जैसे अपराध में शामिल हैं।"
दलील में यह भी दावा किया गया कि ऐसे विदेशी नागरिक देश की सामाजिक और आर्थिक संरचना को सीधे तौर पर खराब कर रहे हैं और साथ ही राष्ट्रीय राजधानी भी उन्नति को प्रभावित कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है,
"याचिकाकर्ता दृढ़ता से प्रस्तुत करता है कि यह स्थिति मुगलों, अंग्रेजों आदि के अतीत में हमारे देश पर आक्रमण करने और 500 से अधिक वर्षों तक शासन करने के तरीके के अनुरूप है।"
केस टाइटल: सुशील के.आर. जैन (वकील) बनाम भारत सरकार और अन्य।