हाईकोर्ट ने हिंदी को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हिंदी को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया।
चीफ जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका का विषय पूरी तरह से कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
जनहित याचिका एक जगदेव सिंह की ओर से दायर की गई थी जिसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 और 251 के तहत जनादेश के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग की गई थी।
मामले में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को सक्षम प्राधिकारी से संपर्क करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा,
"जनहित याचिका का विषय पूरी तरह से कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए हम याचिकाकर्ता को इस निर्देश के साथ इस जनहित याचिका का निपटारा करते हैं कि वह याचिका में दावा किए गए राहत के लिए सक्षम प्राधिकारी/फोरम से संपर्क करे।"
यह उल्लेख करना उचित है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के पारित होने से पहले, तत्कालीन राज्य की आधिकारिक भाषा उर्दू थी और विधान सभा द्वारा बनाए गए राजस्व, पुलिस, अधिनियम और नियमों सहित सभी आधिकारिक रिकॉर्ड या तो उर्दू में थे या अंग्रेजी में।
केस टाइटल: जगदेव सिंह बनाम भारत सरकार एंड अन्य।
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