हाईकोर्ट कानूनी मुद्दों को मार्गदर्शन या आज्ञा के लिए सुप्रीम कोर्ट को नहीं भेज सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-09-11 07:29 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हाईकोर्ट मार्गदर्शन या आज्ञा के लिए सुप्रीम कोर्ट को कानूनी मुद्दों को संदर्भित करे, ऐसा किसी भी कानून में कोई प्रावधान नहीं है। जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ आपराधिक पुनरीक्षण पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि मामले को उचित कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को भेजा जाए।

संक्षेप में मामला

आपराधिक पुनरीक्षण (व्यक्तिगत रूप से पार्टी द्वारा दायर) एक आपराधिक मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को कम करने के लिए एक आपराधिक अपील में सत्र न्यायाधीश, गाजियाबाद द्वारा 2019 में द‌िए एक आदेश के खिलाफ दायर किया गया था, जिसमें आवेदक को धारा 498-ए, 323, 377 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया था।

अपीलीय न्यायालय (सत्र न्यायाधीश, गाजियाबाद) ने धारा 498-ए, 323, 377 आईपीसी के तहत उसकी दोषसिद्ध‌ि की पुष्टि की थी, उसे दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दोष से मुक्त कर दिया गया था। इसके अलावा, कोर्ट ने जुर्माने की राशि को बनाए रखते हुए धारा 377 आईपीसी के तहत 5 साल की सजा को घटाकर 4 साल कर दिया था।

उच्च न्यायालय के समक्ष, आपराधिक पुनरीक्षण पर उसके गुण-दोष के आधार पर बहस करने के बजाय, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 01.07.2021 के आदेश के तहत निर्देश हैं, आवेदक ने जोर देकर कहा कि उसके आपराधिक विविध आवेदन पर सुनवाई की जाए। उसने दावा किया कि यदि आपराधिक विविध आवेदन की सुनवाई नहीं होगी तो उसके प्रति पूर्वाग्रह होगा।

विरोधी पक्ष के वकील ने प्रस्तुत किया कि यह आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि उच्च न्यायालय के पास संविधान या किसी अन्य कानून के तहत माननीय सुप्रीम कोर्ट को मामले को संदर्भित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

इस पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा, "पुनरीक्षण की मांग कर रहे आवेदक को और विरोधी पक्षों के वकील को सुनने के बाद, मैं इस बात से सहमत हूं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शन या आज्ञा के लिए या किसी भी प्रकार के मुद्दे को संदर्भित करने का कोई प्रावधान नहीं है और आगे प्रथम दृष्टया उसे अब तक कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ है।"

आवेदक के आपराधिक विविध आवेदन खारिज कर दिया गया और आपराधिक पुनरीक्षण के गुण-दोष पर तर्क के लिए मामला 24 सितंबर, 2021 को सूचीबद्ध किया गया।

केस का शीर्षक - संजीव गुप्ता बनाम यूपी राज्य और अन्य।

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