"पीड़िता के शरीर को कुचला गया, व्यक्तित्व को कुचला गया; अमानवीय और घृणित अपराध": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2021-08-16 08:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 2019 के झूंसी सामूहिक बलात्कार मामले में एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने देखा कि आरोपी ने अपनी मर्दानगी का फायदा उठाते हुए गरीब पीड़िता के साथ जबरदस्ती की और यौन उत्पीड़न किया।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने इसे सबसे अमानवीय और घृणित अपराध करार दिया, जहां पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को किसी और ने नहीं बल्कि आरोपी ने कुचल दिया। न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि आरोपी कोई सहानुभूति का पात्र नहीं है।

संक्षेप में मामला

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, जब पीड़िता बस में यात्रा कर रही थी, तो आवेदक ने दो नामजद आरोपियों और 6-7 अज्ञात व्यक्तियों के साथ बस को रोका और लड़की को जबरन बस से उतार दिया।

इसके बाद लड़की को किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया, जहां उन्होंने उसका यौन उत्पीड़न किया और साथ ही सोने के गहने, नकद राशि और मोबाइल भी लूट लिया। इसके बाद नशे की अवस्था में रेप किया और अंत में घटना को किसी और के साथ साझा न करने की धमकी दी कि नहीं तो उसे जान से मार देंगे।

महत्वपूर्ण रूप से सीआरपीसी की धारा 164 के पीड़िता के बयान में कहा गया है कि आवेदकों के चंगुल से बचने के बाद उसने पुलिस को सूचित किया जिसने परिसर में छापेमारी की और आवेदक को नशे की हालत में नग्न अवस्था में पाया।

पीड़िता ने बयान में कहा कि दोनों (लड़की और आवेदक) पिछले एक साल से एक-दूसरे के परिचित थे और पहले भी कई मौकों पर आवेदक ने उसका यौन शोषण किया था और उसके कुछ अश्लील वीडियो भी बनाए थे।

कथित तौर पर उन वीडियो को दिखाने के बाद उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था और आवेदक ने उसके साथ कई बार यौन संबंध स्थापित किए।

पुलिस को दिए गए अपने सीआरपीसी की धारा 161 बयान में उसने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि सभी आरोपी व्यक्तियों ने उसके साथ बार-बार बलात्कार करने के अलावा उसके साथ मारपीट भी की और उसे सिगरेट से जलाया।

कोर्ट की टिप्पणियां

अदालत ने शुरुआत में पीड़िता की मेडिकल और एफ.एस.एल. रिपोर्ट देखा और कहा कि पीड़िता के हाथ, बेल्ट, कोहनी, नाक और गालों पर शारीरिक हिंसा के निशान थे। इसके अलावा सिगरेट से जलने का भी निशान था।

अदालत ने यह भी नोट किया कि उसकी एफएसएल रिपोर्ट ने संकेत दिया कि वह क्रूर और निर्दयी यौन हमले का शिकार हुई है।

गौरतलब है कि अदालत ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज उसके बयानों का गहन विश्लेषण किया।

बेंच ने कहा कि,

"यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि आवेदक वह व्यक्ति है जिसने पहले भी पीड़िता के साथ यह दुस्साहस किया है और उसे ब्लैकमेल करके बार-बार यौन संबंध स्थापित किया है। आवेदक ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं और पीड़िता को चलती बस से उतारकर उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके शरीर और आत्मा पर बेरहमी से हमला किया।"

अदालत ने इस पृष्ठभूमि में कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह आवेदक के साथ सहमति से संबंध में थी और यह गलत पहचान या पीड़िता द्वारा आवेदक को झूठे फंसाने का मामला नहीं था।

अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता को चलती बस से बाहर निकाला गया, उसके बाद जबरन आवेदक द्वारा उसका यौन उत्पीड़न किया गया।

कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा है कि वह मामले में जल्दी से यानी एक से डेढ़ साल के भीतर फैसला करें।

केस का शीर्षक - शिवसागर यादव बनाम यू.पी. राज्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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