[ज्ञानवापी] ऑर्डर 7 रुल 11 सीपीसी याचिका को खारिज करने के वाराणसी कोर्ट के आदेश को मस्जिद कमेटी की चुनौती: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई 19 अक्टूबर तक के लिए स्थगित की
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हिंदू उपासकों के मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ दायर अपने ऑर्डर 7 रुल 11 सीपीसी याचिका को खारिज करने के वाराणसी कोर्ट के आदेश (12 सितंबर, 2022) को चुनौती देने वाली ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी की रिवीजन याचिका पर सुनवाई आज स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि जस्टिस जे जे मुनीर की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि ऑर्डर 7 रुल 11 के तहत एक आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका का दायरा सीमित है। हालांकि, दोनों पक्षों के सहमत होने के बाद उन्होंने मामले को 19 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस मुनीर ने अंजुमन इस्लामिया मस्जिद समिति (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) की ओर से पेश सीनियर वकील को वाराणसी कोर्ट के समक्ष दायर रिकॉर्ड के प्रासंगिक दस्तावेज (फोटोस्टेट प्रतियां) दाखिल करने और 19 अक्टूबर को प्रस्तुत करने के लिए भी कहा।
राखी सिंह (प्रतिवादी संख्या 1) की ओर से वकील सौरभ तिवारी और वकील आर्य सुमन पांडे पेश हुए।
आपको बात दें, पिछले महीने वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिलाओं (वादी) द्वारा दायर एक मुकदमे की स्थिरता को चुनौती देने वाली अंजुमन समिति की याचिका (आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर) को खारिज कर दिया था। अब, इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका इसी आदेश को चुनौती दे रही है।
इसके बाद, मस्जिद समिति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उसी आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान याचिका दायर की।
पिछले महीने जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश ने अपने आदेश में कहा था कि वादी के मुकदमे को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम 1995 और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जैसा कि अंजुमन मस्जिद समिति (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा दावा किया जा रहा था।
क्या है पूरा मामला?
वादी (हिंदू महिला उपासक) ने अनिवार्य रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने का अधिकार मांगा है। अंजुमन कमेटी (जो वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा उसी सूट की स्थिरता को चुनौती दी गई थी। अंजुमन कमेटी ने कहा था कि हिंदू उपासकों का मुकदमा कानून (पूजा के स्थान अधिनियम, 1991) द्वारा वर्जित है।
वादी ने दावा किया है कि वर्तमान मस्जिद परिसर कभी एक हिंदू मंदिर था और इसे मुगल शासक औरंगजेब द्वारा तोड़ कर दिया गया था और उसके बाद, वर्तमान मस्जिद संरचना का निर्माण किया गया था।
उनके मुकदमे को चुनौती देते हुए, अंजुमन मस्जिद कमेटी ने अपनी आपत्ति और आदेश 7 नियम 11 सीपीसी आवेदन में तर्क दिया था कि वाद विशेष रूप से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा प्रतिबंधित है।
पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की हिंदू महिला उपासकों द्वारा दायर मुकदमे पर रोक के रूप में लागू होने के संबंध में न्यायालय ने विशेष रूप से माना कि चूंकि हिंदू उपासक दावा करते हैं कि 15 अगस्त, 1947 के बाद भी (जो कि पूजा स्थल अधिनियम के तहत प्रदान की गई कट ऑफ तिथि है), हिंदू देवताओं की पूजा उनके द्वारा मस्जिद के अंदर की जा रही थी। इसलिए, इस मामले में इस अधिनियम की कोई प्रयोज्यता नहीं होगी।
कोर्ट ने आगे कहा था,
"वर्तमान मामले में, वादी विवादित संपत्ति पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और भगवान हनुमान की पूजा करने के अधिकार की मांग कर रहे हैं, इसलिए, इस मामले को तय करने का अधिकार सिविल कोर्ट के पास है। इसके अलावा, वादी की दलीलों के अनुसार, वे 1993 तक लंबे समय से विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान, भगवान गणेश की लगातार पूजा कर रहे थे। 1993 के बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य के नियामक के तहत वर्ष में केवल एक बार उपरोक्त देवताओं की पूजा करने की अनुमति दी गई थी। इस प्रकार वादी के अनुसार, उन्होंने 15 अगस्त, 1947 के बाद भी नियमित रूप से विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान की पूजा की। वादी के मुकदमे को अधिनियम की धारा 9 द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है।"
केस टाइटल - प्रबंधन समिति अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी