[ज्ञानवापी एएसआई सर्वे पर रोक] "राष्ट्रीय महत्व का मामला": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई डीजी को 10 दिन में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को कहा

Update: 2022-08-31 08:51 GMT

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Kashi Vishwanath Temple-Gyanvapi Mosque) के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के समक्ष चल रही सुनवाई में हाईकोर्ट ने कल राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे को 'स्केची' बताया और अतिरिक्त सचिव (गृह) यू.पी. सरकार को दस दिनों के भीतर मामले में अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को कहा।

मामले को 'राष्ट्रीय महत्व' बताते हुए जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ ने महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली को निर्देश दिया कि वह इस मामले में अपना व्यक्तिगत हलफनामा दस दिनों के भीतर दाखिल करें।

उच्च न्यायालय द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद में कार्यवाही पर रोक लगाने के बाद पिछले साल केंद्र सरकार और राज्य सरकार से हलफनामा मांगा गया था, वाराणसी कोर्ट के एक विवादास्पद आदेश को प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिया गया था, जिसने परिसर के पुरातात्विक सर्वे का आदेश दिया था। सर्वे के मदद से यह पता लगाने का निर्देश दिया था कि क्या 17वीं शताब्दी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के लिए एक हिंदू मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ा गया था।

अब यूपी सरकार और डीजी, एएसआई से हलफनामा मांगते हुए कोर्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 12.09.2022 को दोपहर 2:00 बजे सूचीबद्ध किया।

परिसर के एएसआई सर्वेक्षण पर रोक लगाने वाले अंतरिम आदेश को 30 सितंबर, 2022 तक बढ़ा दिया गया है।

दूसरी ओर, भगवान विश्वेश्वर के नेक्स्ट फ्रेंड (उनके वकील) और मामले में प्रतिवादी में से एक ने सोमवार को तर्क दिया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधान पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं, हालांकि, वही वाराणसी अदालत के मामले में लागू नहीं होगा क्योंकि वादी ने जगह के परिवर्तन की मांग नहीं की है, बल्कि यह विवादित स्थान को मंदिर के रूप में निर्धारित करने की मांग की है।

आगे यह तर्क दिया गया कि विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र एक मंदिर है जो प्राचीन काल से आज तक अस्तित्व में है, इसलिए सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन के बेहतर निर्णय के लिए सबूत का नेतृत्व किया जाना चाहिए।

पूरा मामला

अंजुमन इंताज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी ने वर्ष 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति और 5 अन्य लोगों द्वारा वाराणसी कोर्ट के समक्ष दायर किए गए मुकदमे को चुनौती दी है, जिसमें उस हिंदू भूमि की बहाली का दावा किया गया है जिस पर ज्ञानवापी मस्जिद है।

अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद वाराणसी ने भी वाराणसी की अदालत के समक्ष कार्यवाही को चुनौती दी है जिसमें पिछले साल एक एएसआई सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था और हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में उसी आदेश पर रोक लगा दी थी।

इससे पहले, प्रतिवादी ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ता [अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी] ने शुरू में आदेश VII नियम 11 (डी) सीपीसी के तहत वादी (स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति की) को खारिज करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। हालांकि, उन्होंने काफी समय तक उस पर दबाव नहीं डाला और उपरोक्त आवेदन पर दबाव डालने के बजाय, उन्होंने वादी में लिखित बयान दाखिल करने का विकल्प चुना।

प्रतिवादी के वकील द्वारा आगे यह तर्क दिया गया कि वाद में दलीलों के आधार पर, वाराणसी कोर्ट द्वारा मुद्दों को तय किया गया था।

वकील ने यह भी कहा कि विचाराधीन संपत्ति, यानी भगवान विश्वेश्वर का मंदिर प्राचीन काल से, यानी सतयुग से अब तक अस्तित्व में है।

उनका आगे यह निवेदन था कि स्वयंभू भगवान विशेश्वर विवादित ढांचे में स्थित है, और इसलिए, विवादित भूमि स्वयं भगवान विशेश्वर का एक अभिन्न अंग है।

माजिद समिति द्वारा दिए गए इस तर्क पर कि वाद को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों द्वारा प्रतिबंधित किया गया था, इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।

प्रतिवादियों ने तर्क दिया है कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त, 1947 के दिन के समान ही रहा, इसलिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते।

याचिकाकर्ता के वकील - ए.पी.सहाय, ए.के. राय, डी.के.सिंह, जी.के.सिंह, एम.ए. कादिर, एस.आई. सिद्दीकी, सैयद अहमद फैजान, ताहिरा काज़मी, वी.के.सिंह और विष्णु कुमार सिंह

प्रतिवादी के वकील - ए.पी. श्रीवास्तव, अजय कुमार सिंह, सी.एस.सी., आशीष कृष्ण सिंह, बख्तियार यूसुफ, हरे राम, प्रभाष पांडे, आरएस मौर्य, राकेश कुमार सिंह, वीकेएस चौधरी, विनीत पांडे और विनीत संकल्प

केस टाइटल - अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद वाराणसी बनाम ए.डी.जे. वाराणसी एंड अन्य [Matter Under Article 227 No. 3341 of 2017]

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