मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के खिलाफ एस. गुरुमूर्ति द्वारा दिए गए अपमानजनक भाषण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए याचिका डाली गई
मद्रास हाईकोर्ट ने न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक भाषण देने के लिए साप्ताहिक तमिल पत्रिका 'तुगलक' के संपादक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू किया।
14 जनवरी को पत्रिका के वार्षिक कार्यक्रम के दौरान गुरुमूर्ति ने कथित तौर पर कहा था कि,
"अधिकांश न्यायाधीश बेईमान और गुणहीन होते हैं और राजनेताओं के पैरों में गिरकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद प्राप्त करते हैं।"
अधिवक्ता पी. पुगलन्थी ने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया था कि,
"गुरुमूर्ति का भाषण जनता के मन में न्यायपालिका के सम्मान को कम करने के उनके इरादे को उजागर करता है।"
आगे कहा गया कि,
"प्रतिवादी ने अपने भाषण के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि बहुत से न्यायाधीशों ने राजनेताओं के पैरों में गिर के अपने पद को प्राप्त किया है और इसलिए वे भ्रष्ट राजनेताओं के प्रति सहानुभूति रखेंगे। उनके भाषण से यह साफ है कि विश्व में राजनेताओं द्वारा नियुक्त किए गए न्यायाधीशों के हाथों में न्याय नहीं होगा। प्रतिवादी द्वारा जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इससे स्पष्ट है कि लोगों का न्यायपालिका को प्रति विश्वास खत्म हो जाएगा और इसका नतीजा यह होगा कि कानून के शासन को नाश हो जाएगा।"
एस के सरकार बनाम विनय चंद्र मिश्रा AIR 1981 SCC 723 मामले के फैसले को दोहराया गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि,
"न्यायालय, एडवोकेट जनरल की सहमति के बिना अपने विवेक से इस मामले में दायर की गई याचिका में दिए गए सूचना के आधार पर मामले का स्वत: संज्ञान ले सकता है।"
इसी बीच, अधिवक्ता एस. दोरीसामी ने महाधिवक्ता विजय नारायण को पत्र लिखकर अवमानना की दीक्षा के लिए कोंट्रेक्ट ऑफ कोर्ट्स अधिनियम, 1971 की धारा 15 (b) के तहत सहमति मांगी।
अपने पत्र में दोरीसामी ने कहा है कि,
"गुरुमूर्ति के झूठे, निंदनीय और बेईमान भाषण ने लोगों के न्याय के प्रशासन प्रति विश्वास को कम कर दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट अपमान और अनादर किया गया है, जो कि आपराधिक अवमानना है।"
इस मामले में न्यायमूर्ति कर्णन का विरोध करते हुए वकील ने कहा,
"यह अफ़सोस की बात है कि महाधिवक्ता ने अब तक अवमानना करने वाले के खिलाफ सही समय में अवमानना की याचिका पर कार्यवाही की हो।"
आगे कहा कि,
"तमिलनाडु की सरकार एस. गुरुमूर्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अनिच्छुक है, क्योंकि वह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की एक मजबूत सहयोगी है। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक पार्टी को एस.गुरुमूर्ति से डर लगता है क्योंकि गुरूमूर्ति आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) प्रति सहानुभूति रखते हैं और भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के राजनीतिक सलाहकार हैं। चूंकि मेरी न्यापालिका की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में बड़ी दिलचस्पी है, इसलिए मैं माननीय मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना करने वाले के खिलाफ न्यायालयों के अधिनियम की अवमानना जनरल की धारा 15 (b) के तहत आपराधिक अवमानना करार देते हुए कार्यवाई करने की मांग करते हूं।"
अपने पत्र में, दोरीसामी ने गुरुमूर्ति द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत ठहराते हुए कहते हैं कि;
"गुरूमूर्ति के अनुसार हाईकोर्ट के अधिकांश न्यायाधीश मेरिट रहित होते हैं और उन्हें अवैध तरीके से न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है। यह न्यायाधीशों के खिलाफ एक गलत और तुच्छ कथन है। मद्रास उच्च न्यायालय के लगभग सभी न्यायाधीश अपनी योग्यता के आधार पर नियुक्त किए जाते हैं। केनल उनके नाम मद्रास उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा चुने गए थे और इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास भेज दिया जाता है। फिर उनके नाम कानून मंत्रालय के पास भेज दिए जाते हैं । कानून मंत्रालय ने इन नामों को इंटेलिजेंट ब्यूरो के पास भेजता है, फिर इंटेलिजेंट ब्यूरो प्रत्येक उम्मीदवारों की ईमानदारी और योग्यता की गहन जांच करता है। इस जांच के दौरान यदि रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि किसी उम्मीदवार की मेरिट सही नहीं है , तो उसका नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस कर दिया जाता है।"
आगे कहा कि,
"कोलेजियम प्रणाली के आने के बाद, सरकार के परामर्श से "संवैधानिक आवश्यकता को पूरा कर लिया गया है। यह परामर्श केवल औपचारिक है। इस प्रकार किसी भी राजनेता के लिए उच्च न्यायालय की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने का कोई मौका नहीं है। ईमानदारी के साथ केवल मेधावी व्यक्तियों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुना जाता है।"
'द हिंदू' की एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुमूर्ति ने पहले ही खेद व्यक्त चुके हैं और स्पष्ट रूप से कहा है कि उनकी टिप्पणी बिल्कुल अनायास ही थी। उन्होंने एक उत्तेजक सवाल का जवाब देते हुए इस तरह की बातें कह दी थी।
यह पहला मौका नहीं है जब गुरुमूर्ति घिनौनी टिप्पणी करने की वजह से खबरों में आए हों। दो साल पहले उन्हें न्यायमूर्ति एस मुरलीधर के खिलाफ अपने ट्वीट के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अवमानना कार्यवाही का सामना करना पड़ा था। हालांकि, डिवीजन बेंच के समक्ष बिना शर्त माफी मांगने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था।
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