संजीव भट्ट को जेल ट्रांसफर की मांग करने का कोई अधिकार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट ने पति के पालनपुर जेल से स्थानांतरण के खिलाफ पत्नी की याचिका खारिज की
गुजरात हाईकोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने मांग की कि उनके पति को पालनपुर जेल से किसी अन्य जेल में ट्रांसफर या बेदखल न किया जाए। न्यायालय ने कहा कि भट्ट को जेल ट्रांसफर की मांग करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है।
भट्ट को जामनगर सेशन जज ने 20.06.2019 को एक कथित हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई और वह जामनगर जेल में बंद हैं। इसी दौरान NDPS मुकदमे में बनासकांठा सेशन कोर्ट ने 27.03.2024 को पूर्व आईपीएस अधिकारी को संबंधित अपराधों के लिए दोषी ठहराया।
उपरोक्त NDPS मुकदमे के दौरान भट्ट पालनपुर जेल में बंद थे अब उनकी पत्नी को आशंका है कि प्रतिवादी प्राधिकारी उनके पति को पालनपुर जेल से किसी अन्य जेल में ट्रांसफर करने का प्रयास कर रहे हैं। इसे देखते हुए भट्ट की पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया।
इस बीच राज्य सरकार ने कहा कि गृह विभाग द्वारा जेलों और कैदियों के वर्गीकरण से संबंधित जारी सरकारी अधिसूचना के अनुसार आवेदक को जामनगर सेशन कोर्ट द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा भुगतने के लिए राजकोट केंद्रीय कारागार में रखा जाना अनिवार्य है। इसलिए राज्य सरकार ने तर्क दिया कि भट्ट को राजकोट केंद्रीय कारागार में रखा गया।
राज्य सरकार ने कहा कि हत्या के दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर राजकोट केंद्रीय कारागार में हिरासत में रखे जाने की यह आवश्यकता राज्य सरकार की नीति के अनुरूप है। इसलिए याचिकाकर्ता को अपने पति के जेल स्थानांतरण की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। राज्य सरकार ने आगे कहा कि गृह विभाग द्वारा जारी परिपत्र और वर्गीकरण के अनुसार जामनगर जिले के कैदी भी राजकोट केंद्रीय कारागार में बंद हैं।
जस्टिस हसमुख डी. सुथार ने अपने आदेश में कहा,
"इस न्यायालय का यह सुविचारित मत है कि याचिकाकर्ता के पति को जेल ट्रांसफर की मांग करने का पूर्ण अधिकार नहीं है। यदि हम याचिकाकर्ता के एडवोकेट द्वारा दिए गए तर्कों को स्वीकार करते हैं तो भी अपील लंबित रहने तक कैदी का स्थानांतरण नहीं किया जाना चाहिए। अतः उपरोक्त के मद्देनजर नियम 9 याचिकाकर्ता के पति के लिए कोई सहायता प्रदान नहीं करेगा। यह निर्विवाद तथ्य है कि आज याचिकाकर्ता का पति विचाराधीन कैदी नहीं है और न ही न्यायिक हिरासत में है। हिरासत का स्थान प्रशासन द्वारा हिरासत प्राधिकारी के चयन का विषय है। दोषसिद्धि दर्ज होने के बाद यह राज्य का कर्तव्य है और राज्य को यह निर्णय लेना होता है कि दोषियों को कहां हिरासत में रखा जाए। अभिलेख में प्रस्तुत नीति के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति को जामनगर के जिला एवं सेशन कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया। इसलिए उन्हें राजकोट केंद्रीय कारागार में हिरासत में रखा जाना आवश्यक है और उन्हें राजकोट जेल में रखा गया है।"
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति को दो अपराधों में दोषी ठहराया गया- एक आईपीसी की धारा 302 के तहत और दूसरा, NDPS अपराध। अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि हत्या के अपराध में दोषसिद्धि दर्ज की गई, याचिकाकर्ता का पति NDPS मामले में भी विचाराधीन कैदी हैं, इसलिए उसे पालनपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया।
अदालत ने कहा कि NDPS मामले में मुकदमा समाप्त होने के बाद भट्ट को हत्या के दोषी ठहराए जाने के लिए आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए पालनपुर जेल से राजकोट जेल वापस स्थानांतरित कर दिया गया।
"अतः उपरोक्त तथ्यों पर विचार करते हुए सजा लगातार सुनाई गई, उन्होंने अपील दायर की। इसलिए याचिकाकर्ता के पति के प्रति किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह का प्रश्न ही नहीं उठता... उपरोक्त तथ्यों पर विचार करते हुए राज्य के आदेश में कोई मनमानी या दुर्भावना नहीं दिखाई देती। इसके अलावा हिरासत का स्थान राज्य का प्रशासनिक विकल्प है और दोषी के मौलिक अधिकारों के किसी भी उल्लंघन के अभाव में साथ ही जेल प्राधिकरण भी अनुशासन और शांति बनाए रखने और कैदी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं, अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका प्रबंधन और प्रशासन राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है और वे कारागार अधिनियम, 1894 और समय-समय पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए इसके नियमों और विनियमों द्वारा शासित होते हैं। दोषी/कैदी को किसी विशेष स्थान या जेल में रहने या हिरासत में रखने की मांग करने का कोई पूर्ण अधिकार नही है।"
अदालत ने कहा कि भट्ट को पालनपुर जिला जेल से किसी अन्य जेल में ट्रांसफर या बेदखल न करने की मांग वाली प्रार्थना पर विचार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा,
"उपरोक्त कारणों टिप्पणियों और राज्य सरकार के प्रासंगिक नीतिगत निर्णयों के आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए किसी भी निर्देश को पारित करने का कोई मामला नहीं बनता है।"