गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात आतंकवाद नियंत्रण अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जमानत खारिज की, 'संगठित अपराध' की व्याख्या की
गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात कंट्रोल ऑफ टेररिज्म एंड आर्गनाइज्ड एक्ट, 2015 के तहत एक आरोपी को यह कहते हुए कि जमानत देने से इनकार कर दिया कि वह हाईवे पर चोरी में शामिल 'संगठित अपराध सिंडिकेट' का हिस्सा है।
अधिनियम की धारा 2(1)(f) के तहत परिभाषित 'संगठित अपराध सिंडिकेट' का अर्थ दो या दो से अधिक व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जो अकेले या सामूहिक रूप से संगठित अपराध की गतिविधियों में लिप्त एक सिंडिकेट या गिरोह के रूप में कार्य करता है।
जस्टिस एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने 'संगठित अपराध' को ऐसी निरंतर गैरकानूनी गतिविधि के रूप में समझाया, जिसमें हिंसा, धमकी, डर, जबरदस्ती, या अन्य गैरकानूनी साधनों के जरिए, अपने लिए आर्थिक लाभ/अनुचित आर्थिक या अन्य लाभ या किसी अन्य व्यक्ति के लिए ऐसा लाभ पाने के मकसद से या उग्रवाद को बढ़ावा देने मकसद से लिप्त रहा जाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल हिंसक गतिविधि आदि में लिप्तता या तो आर्थिक लाभ के लिए या अन्य लाभ के लिए या एक व्यक्ति के रूप में उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए या अकेला या संयुक्त रूप से 'संगठित अपराध सिंडिकेट' के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से.. उक्त गतिविधि को 'संगठित अपराध' की परिभाषा के दायरे में लाने के लिए पर्याप्त होगा।
मौजूदा मामले में, अदालत ने कहा कि जमानत मांग रही आरोपी वाहन चोरी, शस्त्र अधिनियम के उल्लंघन, निषेध अधिनियम के उल्लंघन आदि जैसे संगठित अपराधों में शामिल गिरोह का सदस्य है।
कोर्ट ने कहा,
"विभिन्न अपराधों में कम से कम 20 सदस्य शामिल हैं। आवेदक की मिलीभगत का पता तभी चल सकता है जब सिंडिकेट के अन्य सदस्यों को पकड़ लिया जाए और उनकी जांच की जाए। प्रथम दृष्टया, जांच से पता चलता है कि आवेदक सिंडिकेट की एक सदस्य है, जो राज्य के विभिन्न राजमार्गों से अन्य आरोपियों द्वारा लूटे गए चोरी के सामानों को निस्तारित करती है..उसकी भूमिका धारा 2(1)(ए) की आवश्यकता को पूरा करती है..।
पृष्ठभूमि
आवेदक के खिलाफ पांच एफआईआर दर्ज की गयी है। उस पर आरोप था कि वह एक "संगठित अपराध सिंडिकेट" की सदस्य थी, जो रात में अहमदाबाद-राजकोट और अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्गों सहित कुछ अन्य सड़कों पर गुजरने वाले वाहनों का पीछा करते और रेकी करते थे।
तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ पांच एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिन्हें एक साथ जोड़ा गया था, जिसके लिए अलग से सुनवाई होगी। इसलिए, उसे अधिनियम के तहत मुकदमे की कठोरता से पीड़ित नहीं किया जाना चाहिए।
प्रतिवादी का तर्क है कि अपराधों के लिए 20 अन्य आरोपी व्यक्ति थे। आवेदक एक संगठित अपराध सिंडिकेट का हिस्सा है। उसने एक सह-आरोपी के साथ पुलिस अधिकारियों के साथ मारपीट भी की थी। 9 वाहन को जब्त किया गया था, जिनमें से एक उसका था। वह सीधे संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़ी हुई थी। वह 93 अपराधों में शामिल थी, जबकि उसका भाई 68 में शामिल था।
जजमेंट
जस्टिस सुपेहिया ने अनुच्छेद 20(2) के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक कानून (2015 अधिनियम) में यह प्रावधान रहेगा, न्यायालय इसके परिणामों को इस रूप व्यक्त या आलोचना नहीं कर सकता कि यह संविधान के अनुच्छेद 20(2) के प्रावधानों के आलोचना में या विरोध में हैं, विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 439 के प्रावधान के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय..।
बेंच ने प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाला कि ऐसा लग रहा था कि आवेदक 20 आरोपी व्यक्तियों के एक सिंडिकेट का हिस्सा है। इसने प्रसाद श्रीकांत पुरोहित बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य [(2015) 7 एससीसी 440] का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 ['मकोका'] के समसामयिक प्रावधानों की व्याख्या की थी। जस्टिस सुपेहिया ने कहा कि जांच जारी है। इसलिए, उसी दिन अपराधों का पंजीकरण अधिनियम के तहत दर्ज अपराध को कम नहीं कर सकता है और यह जमानत देने पर एक वास्तविक कारण नहीं हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की "संगठित अपराध" की परिभाषा से सहमत होते हुए, बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि प्रथम दृष्टया , एफआईआर और चार्जशीट की सामग्री से पता चलता है कि आवेदक एक संगठित अपराध सिंडिकेट में काम कर रहा थी।
अंत में, बेंच ने समझाया कि अधिनियम की धारा 20 (4) के तहत, यह मानने के लिए उचित मानदंड होने चाहिए कि आरोपी दोषी नहीं था। हालांकि, आवेदक की भूमिका को देखते हुए, पीठ प्रथम दृष्टया इस दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं हो सकती थी कि आवेदक दोषी नहीं था। तदनुसार, आवेदन खारिज कर दिया गया।
केस शीर्षक: बिलकिस बानू (बिलकिस बानो) हनीफखान @ कालो मुन्नो अमीरखान जटमालेक बनाम गुजरात राज्य
केस नंबर: आर/सीआर.एमए/12478/2021