गुजरात हाईकोर्ट ने विकलांग कार्पस की संयुक्त कस्टडी पिता और बड़ी बेटी को सौंपी

Update: 2022-02-12 13:30 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने एक अजीबोगरीब मामले में कार्पस की बड़ी बेटी और उनके पिता को कार्पस की संयुक्त कस्टडी साझा करने की अनुमति दी है क्योंकि कार्पस ने अपनी याददाश्त को 95 प्रतिशत तक खो दिया है और उनकी पत्नी की आत्महत्या करने से मृत्यु हो चुकी है।

जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस मौना भट्ट की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि कार्पस की दूसरी बेटी के बालिग होने के बाद, उसके पास भी कार्पस की संयुक्त कस्टडी होगी और यदि तब तक कार्पस पूरी तरह से ठीक हो जाता है और उसे चिकित्सकीय सहायता की जरूरत नहीं रहती है तो भी वे उसकी देखभाल करना जारी रख सकते हैं।

इस मामले में मृतका कृपा पटेल ने एक रिट याचिका दायर की थी, जिसकी शादी कार्पस चिराग पटेल से हुई थी।

एक बड़ी दुर्घटना के कारण, कार्पस ने अपनी याददाश्त को 95 प्रतिशत तक खो दिया है। इस कारण उसे चार महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा और अंततः वह अपने माता-पिता के साथ रहने लगा। याचिकाकर्ता(मृतका कृपा पटेल) ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस)याचिका दायर कर कहा था कि उसके पति को उसके माता-पिता(प्रतिवादी नंबर 4 और 5) ने गलत तरीके से अपनी कस्टडी में रखा हुआ है,इसलिए उन्हें रिहा करवाया जाए। गुजरात हाईकोर्ट ने मध्यस्थता के माध्यम से इस विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के कई प्रयास किए।

हालांकि, इस याचिका के लंबित रहने के दौरान, याचिकाकर्ता ने अक्टूबर 2021 में आत्महत्या कर ली। जिसके बाद, अदालत ने दोनों बेटियों के माता-पिता की संपत्तियों के विवरण और कार्पस के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी।

प्रतिवादी नंबर 4 ने न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया और कहा कि याचिका ''भ्रामक और गलत'' थी क्योंकि कार्पस को उसके माता-पिता द्वारा सर्वाेत्तम स्वास्थ्य देखभाल, शारीरिक सहायता और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त, इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर नहीं की जा सकती है क्योंकि कार्पस को अवैध कस्टडी में नहीं रखा गया है। वह मानसिक रूप से बीमार या विकलांगों की कस्टडी को नियंत्रित करने वाले विशेष कानूनों के अनुसार अपने माता-पिता के साथ रह रहा है।

प्रतिवादी ने इस आरोप का खंडन किया कि उसने याचिकाकर्ता यानी उनकी बहू और अपनी पोतियों को कार्पस से मिलने नहीं दिया था। इसके विपरीत, प्रतिवादी ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास इस संकट के समय में कार्पस की देखभाल करने के लिए वित्तीय सहायता या अपेक्षित मैनपावर नहीं थी।

याचिका के जवाब में दायर हलफनामे को ध्यान में रखते हुए, बेंच ने कहा कि दोनों बेटियों को दादा-दादी के खर्च पर पढ़ाया जा रहा है क्योंकि उनकी मां का निधन हो गया है। वे भी दादा-दादी के साथ रह रही हैं। इसके अलावा, कार्पस का पूरा ध्यान रखा जा रहा है और बेटियों ने अपने दादा-दादी के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की है।

इसके अतिरिक्त, 21 वर्ष की बड़ी बेटी ने दादा के साथ पिता की संयुक्त कस्टडी साझा करने पर कोई आपत्ति  व्यक्त नहीं की और छोटी बेटी भी बालिग होने पर अपने पिता की कस्टडी में भाग लेगी।

विवाद के इस सौहार्दपूर्ण समाधान की सराहना करते हुए, अदालत को आश्वासन दिया गया है कि दोनों पोतियों के नाम उनकी स्वर्गीय मां के स्वामित्व वाली सभी संपत्तियों, कार्पस-पिता द्वारा स्वयं-अर्जित संपत्तियों और याचिकाकर्ता-कार्पस की संयुक्त संपत्तियों में जोड़ दिए जाएंगे।

अदालत ने संपत्ति के दस्तावेजों में नामों के म्यूटेशन की इस प्रक्रिया को 10 सप्ताह के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया है।

तद्नुसार याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि,

''दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस याचिका के माध्यम से शुरू की गई यात्रा अंततः एक सुखद अंत के साथ समाप्त हो गई है, हालांकि निश्चित रूप से इस पर दुर्भाग्य के निशान लग गए क्योंकि इस प्रक्रिया में याचिकाकर्ता ने अपना जीवन समाप्त कर लिया।''

केस का शीर्षक- कृपा चिराग पटेल बनाम गुजरात राज्य

केस नंबर- आर/एससीआर.ए/9944/2019

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