गुजरात हाईकोर्ट ने 100 हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन करने के आरोपी की अग्रिम जमानत खारिज की

Update: 2022-04-09 16:29 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने 37 हिंदू परिवारों और 100 हिंदुओं ‌का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने के आरोप में एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत खारिज कर दी है। मामले में यह भी आरोप था कि आवेदक ने हिंदू परिवारों को वित्तीय सहायता का लालच दिया और सरकारी पैसे से बने एक मकान को इबादतगाह में बदल दिया।

जस्टिस बीएन करिया ने कहा,

"अभियोजन की ओर से पेश रिकॉर्ड से प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि मौजूदा अपीलकर्ता ने बल प्रयोग या प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से किसी भी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास किया है.....। न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत सामग्री के साथ-साथ ऊपर चर्चा किए गए कारणों को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय अपीलकर्ता को अग्रिम जमानत पर रिहा करने की प्रार्थना को स्वीकार करने का इच्छुक नहीं है.."

आवेदक पर धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 4 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 153(बी)(1)(सी), 506(2) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यह भी आरोप लगाया गया था कि आवेदक ने हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत किया है और जब अन्य व्यक्ति हिंदू धर्म में वापसी का प्रयास किया तो उन्हें आवेदक द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई।

मामले में जांच अधिकारी ने आईपीसी की धारा 466, 467, 468 और 471 और अत्याचार अधिनियम की धारा 3 (2) (5-ए) को जोड़ते हुए एक रिपोर्ट दर्ज की। यह भी कहा गया था कि कई सह-आरोपी फरार थे और आवेदक को रिहा करने से जांच पर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

तदनुसार विशेष न्यायालय ने इन अपराधों पर संज्ञान लेते हुए दिसंबर 2021 के एक आदेश के तहत आवेदक की जमानत अर्जी खारिज कर दी। इससे असंतुष्ट होकर आवेदक ने अत्याचार अधिनियम की धारा 14 ए के तहत अग्रिम जमानत के लिए अपील दायर की।

आवेदक ने तर्क दिया कि कथित अपराध 15 साल पहले दो अन्य आरोपियों द्वारा किया गया था। इसके अलावा, वर्तमान आवेदक के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं थे। उन्हें पुलिस अधिकारियों से कई फोन आए थे और उन्होंने जांच में उनका विधिवत सहयोग किया था।

इसके अतिरिक्त, धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3 ए के तहत, पीड़ित व्यक्ति का रक्त संबंधी ही एफआईआर दर्ज करा सकता है। इस मामले में शिकायतकर्ता का धर्म परिवर्तन करने वालों से कोई संबंध नहीं था। इसके अतिरिक्त, एक इस्लामी विद्वान के रूप में आवेदक के उपदेश भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के अनुसार थे। मामले में सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) और अन्य (2020) 5 एससीसी एक पर भरोसा रखा गया।

प्रतिवादियों ने कहा कि आवेदक के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और उन्होंने एक विशेष धर्म की भावनाओं को आहत करने की कोशिश की थी। उन्होंने दूसरे समुदाय के सदस्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करके अपराध करने में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी।

कोर्ट ने मुख्य रूप से देखा कि अग्रिम जमानत देना विवेक का मामला है और इसमें मामले के तथ्यों के आधार पर विशेष शर्तें लागू करना शामिल है।

हाईकोर्ट ने आवेदक की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी की कि आवेदक और अन्य आरोपियों ने विभिन्न परिवारों को धर्मांतरण के लिए लुभाने के लिए एयर कूलर, वाटर कूलर, लॉरी, नमाज के लिए चटाई और अन्य सामग्री दी थी। मामले में अन्य आरोपियों ने चिकित्सा सहायता प्रदान की थी और व्यक्तियों को परिवर्तित करने में मदद की थी। इसके अलावा, कई अपमानजनक बयानों के साथ-साथ दूसरे समुदाय के लोगों को धमकी भी दी गई थी।

ऐसे में कोर्ट ने जमानत अर्जी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

केस शीर्षक: वरयावा अब्दुल वहाब महमूद बनाम गुजरात राज्य

केस नंबर: R/CR.A/92/2022

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