गुजरात हाईकोर्ट विचार करेगा कि क्या धारा 375 आईपीसी में वैवाहिक बलात्कार का अपवाद पत्नी के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (14 दिसंबर) को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 375 बलात्कार को अपराध बनाती है। हालांकि, इसके अपवाद 2 में उस व्यक्ति को छूट दी गई है जो अपनी पत्नी का बलात्कार करता है यदि उसकी उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस नीरल आर मेहता की खंडपीठ ने कहा कि,
"यही समय है जब एक रिट कोर्ट यह विचार करे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद -2 स्पष्ट रूप से मनमाना कहा जा सकता है, और एक महिला के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की इच्छा के अधीन बनाता है। वर्तमान मुकदमे में कई अन्य बड़े मुद्दे उठाए गए हैं जिन पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता है।"
रिट याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता को मनमाना, अनुचित और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करने वाला मानते हुए चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया है कि छूट 2 महिला के शारीरिक निजता और यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की मर्जी के अधीन बनाती है।
रिट याचिका में आगे तर्क दिया गया है कि अपवाद आच्छादन के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके तहत शादी के बाद महिला अपना अलग अस्तित्व खो देती है और उसे अपने पति की संपत्ति के रूप में माना जाता है। याचिका में तर्क दिया गया कि उपरोक्त सिद्धांत भारतीय संविधान के साथ असंगत है जो महिलाओं को पुरुषों के समान मानता है और "विवाह को दो समान लोगों के बीच यूनियन के रूप में मानता है न कि पत्नी पर पति की जागीर के रूप में।"
याचिका में कहा गया है,
"अपवाद 2 के पीछे का सिद्धांत हमारी संवैधानिक नैतिकता के साथ असंगत है और पत्नी के प्राकृतिक अंतर्निहित अधिकारों का उल्लंघन है जिसमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, यौन स्वायत्तता और शारीरिक अखंडता का अधिकार, प्रजनन विकल्पों का अधिकार निजता का अधिकार शामिल है, और यहां तक कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, ऐसे अधिकार जो संविधान द्वारा अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 आदि के तहत मौलिक अधिकारों के रूप में गारंटीकृत और संरक्षित हैं और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में मान्यता प्राप्त हैं।
याचिका में यह प्रस्तुत किया गया है कि वैवाहिक बलात्कार को दिए गए अपवाद ने पीड़ितों- पत्नी और एक महिला जो पत्नी नहीं है, के बीच एक कृत्रिम भेद पैदा किया है। जबकि बलात्कार के खिलाफ कानूनी सुरक्षा महिलाओं को उपलब्ध है, विवाहित महिला को अपने पति के खिलाफ इस सुरक्षा का आनंद नहीं मिलता है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि जहां पति अपनी पत्नी के साथ आप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए दंडित होने के लिए उत्तरदायी है, वहीं उसे बलात्कार के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है। याचिका में आगे कहा गया है कि धारा विवाहित और अलग हो चुकी महिलाओं, 15 वर्ष से अधिक आयु की महिलाएं के बीच मनमाने ढंग से भेद पैदा करती है; और इस प्रकार मनमानी और असंवैधानिक हैं।
इन प्रस्तुतियों के आलोक में, हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह उचित समय है कि एक रिट कोर्ट इस बात पर विचार करे कि क्या आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को स्पष्ट रूप से मनमाना कहा जा सकता है
आदेश में निर्देश दिया गया है कि एटॉर्नी जनरल और गुजरात राज्य को नोटिस जारी किया जाए।
केस शीर्षक: जयदीप भानुशंकर वर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
कोरम: जस्टिस जेबी पर्दीवाला, जस्टिस नीरल आर मेहता
याचिकाकर्ता: सलिल ठाकोर