गुजरात हाईकोर्ट ने पीएम मोदी डिग्री मानहानि मामले में ट्रायल पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर अरविंद केजरीवाल को अंतरिम राहत देने से इनकार किया
गुजरात हाईकोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को उनकी उस याचिका पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिसमें उनकी पुनर्विचार याचिका का निपटारा नहीं होने तक (मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के समन जारी करने के आदेश को सत्र अदालत चुनौती दी गई), गुजरात यूनिवर्सिटी द्वारा दायर आपराधिक मानहानि शिकायत की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी।
जस्टिस समीर जे दवे की पीठ ने अरविंद केजरीवाल के वकील सीनियर एडवोकेट मिहिर जोशी और पीपी मितेश अमीन की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया।
अहमदाबाद की एक मेट्रोपॉलिटन अदालत ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र के संबंध में विवाद के संबंध में उनके (केजरीवाल और सिंह) कथित अपमानजनक बयानों पर गुजरात यूनिवर्सिटी द्वारा दायर मानहानि मामले में दोनों (केजरीवाल और सिंह) को 11 अगस्त के लिए तलब किया था।
इससे पहले 5 अगस्त को सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट अहमदाबाद ने उनकी पुनर्विचार याचिका का निपटारा होने तक मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
इस आदेश को चुनौती देते हुए आप के दोनों नेताओं ने अब गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने पुनर्विचार याचिका पर शीघ्र सुनवाई के लिए अदालत से निर्देश देने का भी अनुरोध किया।
बेंच के सामने दी गईं दलीलें
सीनियर एडवोकेट जोशी ने तर्क दिया कि चूंकि यह समन मामला है और ऐसे मामलों में आम तौर पर व्यक्तिगत उपस्थिति की छूट होती है और वह भी तब जब कोई संवैधानिक पदाधिकारी शामिल हो। आगे यह तर्क दिया गया कि जब गुजरात यूनिवर्सिटी/शिकायतकर्ता ने वकील को शामिल करने के लिए समय मांगा (केजरीवाल और सिंह की सत्र अदालत में पुनर्विचार याचिका में), तो उन्हें 20 दिनों का समय दिया गया, लेकिन जब इस आधार पर हमने अदालत से पूछा मजिस्ट्रेट की अदालत में मामला टालने पर इसे खारिज कर दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि देरी के लिए शिकायतकर्ता (गुजरात यूनिवर्सिटी) जिम्मेदार है, न कि केजरीवाल। इसलिए सत्र न्यायालय में उनकी पुनर्विचार याचिका (केजरीवाल और सिंह को जारी किए गए समन को चुनौती देने वाली) को नुकसान नहीं उठाना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया कि चूंकि उन्होंने सत्र न्यायालय के समक्ष पेश होने के लिए समन जारी करने वाले मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी है, इसलिए सत्र न्यायालय को पुनर्विचार याचिका के निपटारे तक मानहानि मामले में कार्यवाही पर रोक लगा देनी चाहिए।
हालांकि, पीठ ने इस मामले में पेश होने के लिए केजरीवाल द्वारा अदालत को दिए गए हलफनामे का जिक्र करते हुए कहा कि वह केजरीवाल ही हैं, जिन्होंने पेश होने का वादा किया और इसलिए अब उन्हें अदालत के सामने पेश होने से बचना नहीं चाहिए।
इसके जवाब में सीनियर वकील जोशी ने कहा कि देरी के लिए केजरीवाल नहीं बल्कि शिकायतकर्ता/गुजरात यूनिवर्सिटी जिम्मेदार है। इसलिए (मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के समक्ष वकील के माध्यम से) उपस्थित होने का वचन देना उन्हें पुनर्विचार याचिका दायर करने से वंचित नहीं करता है। ऐसी परिस्थितियों में कार्यवाही पर (सत्र न्यायालय द्वारा) रोक लगा दी जानी चाहिए।
दूसरी ओर, लोक अभियोजक मितेश अमीन ने कहा कि चूंकि दोनों (केजरीवाल और सिंह) ने शपथ पत्र दायर करके अदालत को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित रहने का आश्वासन दिया, इसलिए उन्हें अपने वचन का सम्मान करना चाहिए।
इन दलीलों की पृष्ठभूमि में अदालत ने गुजरात यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी किया और केजरीवाल और सिंह को किसी भी अंतरिम राहत से इनकार कर दिया।