COVID-19: दिशानिर्देशों को हल्के में नहीं लेना चाहिए, पुलिस-लोगों के बीच टकराव की अनुमति नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

Update: 2021-03-02 05:00 GMT

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते राज्य सरकार को यह देखने के लिए निर्देश दिया कि COVID-19 दिशानिर्देशों और सुरक्षा सावधानियों को हल्के में ना लिया जाए।

महत्वपूर्ण रूप से, मुख्य न्यायाधीश थोट्टाथिल बी. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि पुलिस और लोगों के बीच टकराव की स्थिति पैदा न होने दी जाए, क्योंकि इससे मानव अधिकारों के उल्लंघन की स्थितियाँ पैदा होती हैं और इस तरह के पहलुओं पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।

COVID-19 दिशानिर्देशों के प्रवर्तन के संबंध में दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए, न्यायालय ने रेखांकित किया कि लोगों द्वारा पालन किए जाने हेतु तीन सिद्धांत हैं, जो निम्नलिखित हैं: -

  • सामाजिक दूरी बनाए रखना,
  • मास्क पहने हुए रहना और
  • हाथों को साफ करना।

इसके अलावा, अदालत ने टिप्पणी की,

"हमारे मन में स्पष्ट है कि संविधान के भाग- IV A में निहित मौलिक कर्तव्यों के संदर्भ में नागरिकों की सामाजिक जिम्मेदारी को उन्हे जन हित  के लिए निभाना चाहिए"

न्यायालय ने आगे जारी रहते हुए कहा,

"इसमें मास्क का उपयोग शामिल है, स्वच्छता प्रक्रिया का पालन करना और न केवल स्वयं के लाभ के लिए सुरक्षित दूरी रखना, बल्कि परिजनों के लाभ, पड़ोस और समाज में बड़े पैमाने पर लाभ के लिए ऐसा करना चाहिए।"

इसके अलावा, अदालत ने यह भी देखा कि,

"पुलिस और लोगों के बीच टकराव को होने नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे मानव अधिकारों के उल्लंघन की स्थितियों पैदा होती हैं और इस तरह के पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए।"

इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी देखा कि समय बीतने के साथ, यह इस तथ्य की न्यायिक सूचना ले सकता है कि कई सेक्टर खुल गए हैं।

"न्यायालय भी खुल गए हैं। रेलवे क्षेत्र, मेट्रो रेलवे, मॉल, सिनेमा हॉल आदि को अब खोलने की अनुमति दी जा रही है। जाहिर है, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी दिशानिर्देशों और सुरक्षा सावधानियों को हल्के में लिया जाना चाहिए", अदालत ने टिप्पणी की।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार के पास न केवल पुलिसिंग शक्ति है, बल्कि नागरिकों की निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में एक सलाहकार की भूमिका भी है।

अंतिम रूप से, उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय का विचार था कि राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ स्थायी वकील के अनुरोध पर तत्काल रिट याचिका का निपटान किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा सामने लाई गई आशंकाओं का अधिकारियों द्वारा उचित संज्ञान लिया जाए ताकि सरकार की कार्रवाई भी, रिट याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

इस प्रकार, इस तरह के निर्देशों के साथ रिट याचिका का निपटारा किया गया।

ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Tags:    

Similar News