अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं है कि कोई मनमाने और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने की हद तक जा सकता है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यूट्यूबर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार (09 अक्टूबर) एक यूट्यूबर को, जिस पर एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी के खिलाफ अपने चैनल पर अपमानजनक सामग्री अपलोड करने का आरोप है, अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि "हालांकि भारत के प्रत्येक नागरिक के पास अपने विचार को व्यक्त करने का अधिकार है लेकिन फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कोई मनमाना और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाने की हद तक जा सकता है।"
जस्टिस एचएस मदान याचिकाकर्ता कपिल देव की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 504, 506, 509 आईपीसी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत प्राथमिकी संख्या 0200दर्ज की गई है।
पृष्ठभूमि
मामले के तहत, सुश्री निहारिका भारद्वाज, मेजर रैंक की एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी द्वारा एक शिकायत दर्ज कराई गई। उन्होंने आरोप लगाया कि यू-ट्यूब चैनल, 'साबका सैनिक संघर्ष समिति' के एडमिन, याचिकाकर्ता/अभियुक्त कपिल देव ने अपने चैनल पर 15.4.2020 को शाम 7:00 बजे, उनके नाम और प्रतिष्ठा को खराब करने के इरादे से, एक झूठा और गलत वीडियो अपलोड किया था।
जैसा कि शिकायत में कहा गया, याचिकाकर्ता/अभियुक्त कपिल देव (जो खुद को 'वक्ता' कहते हैं), एक कुख्यात व्यक्ति है और भारतीय सेना की इकाइयों के खिलाफ अपने घृणास्पद भाषणों के माध्यम से, असंतोष और दरार पैदा करने का प्रयास किया।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि अभियुक्तकी आधिकारिक दस्तावेजों और सैन्य प्रतिष्ठानों की गतिविधियों के प्रतिबंधित वीडियो हासिल कर रहा है, यह सुरक्षा का गंभीर उल्लंघन है और इससे राष्ट्रीय हितों को भी खतरा है।
शिकायतकर्ता ने कहा कि वीडियो ने उन्हें गंभीर मानसिक आघात दिया और परेशान हुई। वीडियो अपलोड होने के तुरंत बाद उन्हें पिता, ससुर, भाई और अन्य करीबी रिश्तेदारों से फोन आए, जिन्होंने आरोपों के बारे में पूछताछ की।उन्होंने शिकायतकर्ता की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने याचिकाकर्ता/ आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
एफआईआर दर्ज होने के बाद मामले में जांच शुरू हुई। गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर, याचिकाकर्ता ने अंबाला सत्र न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, हालांकि न्यायालय ने उसे खरिज कर दिया।
याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वह अदालत के निर्देशों के अनुसार जांच में सहयोग कर रहा है; जांच एजेंसी ने उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया है... याचिकाकर्ता को वीडियो फिल्म पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा की गई सार्वजनिक टिप्पणियों के कारण परेशान नहीं किया जा सकता है, इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत दी जाए।
न्यायालय के अवलोकन
न्यायालय का विचार था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप काफी गंभीर हैं, जिन्होंने शिकायतकर्ता के सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति को निशाना बनाया है। शिकायतकर्ता भारतीय सेना में मेजर रैंक पर देश की सेवा कर चुकी हैं और एक सैन्य इकाई के कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी हैं।
न्यायालय ने कहा, "प्रतिष्ठा और सम्मान पर ऐसे अतिक्रमण को आम आदमी भी हल्के ढंग से नहीं लेगा।"
अदालत ने टिप्पणी की, "याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ मात्र से यह पता लगाया जा सकता है कि यू-ट्यूब पर वीडियो अपलोड करने की पूरी कार्रवाई की योजना कैसे बनाई गई थी और कैसे उसे क्रियान्वित किया गया था, इस तरह के कृत्यों में शामिल व्यक्ति और ऐसा करने के पीछे वास्तविक मकसद क्या था। याचिकाकर्ता पर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित गुप्त दस्तावेजों हासिल करने के गंभीर आरोप हैं। इस मामले की भी जांच किए जाने की आवश्यकता है।"
इसके अलावा, अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता जांच में शामिल हो गया है और मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह अग्रिम जमानत की रियायत का हकदार है।
न्यायालय ने अंत में कहा कि पूरी और प्रभावी जांच के लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। यदि मामले में जांच एजेंसी को याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ करने से रोका जाता है तो यह जांच में कई ढीले सिरे और अंतराल छोड़ देगा, जिससे जांच प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
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