5 साल से कम उम्र के बच्चे का पिता कानूनी अभिभावक ऐसे बच्चे को मां की कस्टडी से लेना आईपीसी की धारा 361 के तहत अपहरण नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2023-03-10 10:06 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि पिता प्राकृतिक और कानूनी अभिभावक होने के नाते उसके द्वारा 5 साल से कम उम्र के अपने बेटे को उसकी मां से दूर करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 361 के तहत अपराध नहीं है।

जस्टिस इलेश जे वोरा की एकल न्यायाधीश पीठ ने आवेदकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए कहा,

"भारतीय दंड संहिता की धारा 361 के तहत अपराध गठित करने के लिए कानूनी संरक्षकता से व्यक्ति का अपहरण होना चाहिए। यहां आवेदक स्वयं नाबालिग का कानूनी अभिभावक है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसने अपनी पत्नी से अपने ही बेटे की कस्टडी प्राप्त करके भारतीय दंड संहिता की धारा 361 के तहत अपराध किया।

आवेदक-पति की पत्नी द्वारा आईपीसी की धारा 452, धारा 363 और धारा 114 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। उसके पति और उसके ड्राइवर के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने अवैध रूप से घर में प्रवेश किया और उसकी सहमति के बिना उसकी वैध कस्टडी से लगभग 3 साल की उम्र के उसके नाबालिग बेटे को उठा लिया और इस तरह अपहरण और घर में जबरन घुसने का अपराध किया।

आवेदकों को गिरफ्तार किया गया और उपरोक्त अपराधों के लिए चार्जशीट दायर की गई।

उक्त चार्जशीट को रद्द करने की मांग के लिए आवेदकों ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

आवेदक के वकील एम.यू. वोरा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि आवेदक बच्चे का पिता है, जो बच्चे की कानूनी कस्टडी का हकदार है। इसलिए मां से बच्चे को दूर ले जाने का उसका कार्य आईपीसी की धारा 361 का दायरा कानूनी अभिभावक से अपहरण के अपराध के दायरे में नहीं आता।

राज्य के लिए एपीपी वी.सी. शाह ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों ने संज्ञेय अपराध का खुलासा किया। इसलिए अदालत को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां मौजूद नहीं हैं।

अदालत ने कहा कि पिता या किसी अन्य व्यक्ति को छोड़कर, जिसे सक्षम न्यायालय के आदेश के आधार पर कानूनी अभिभावक के रूप में नियुक्त किया गया, पत्नी किसी भी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कानूनी संरक्षक हो सकती है।

अदालत ने कहा,

"पिता प्राकृतिक और वैध अभिभावक होने के नाते उसके द्वारा 5 साल से कम उम्र के अपने बेटे को उसकी मां से हटाना अधिनियम की धारा 361 के तहत अपराध नहीं है। परिणाम में इसलिए यह स्पष्ट है कि भले ही सभी आरोप लगाए गए हों। एफआईआर को सच माना जाता है और पूरी तरह से स्वीकार किया जाता है, आवेदकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363 और धारा 452 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

अदालत ने आगे कहा कि आवेदकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना और कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

तदनुसार, अदालत ने आवेदकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर और अन्य परिणामी कार्यवाही रद्द कर दिया।

केस टाइटल: मौनीश दिनकर शॉ और अन्य बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

कोरम: जस्टिस इलेश जे वोरा

Tags:    

Similar News