'दिलचस्प रूप से विचित्र': सिस्टर अभया मर्डर केस में कॉन्वेंट की गरीब कुक ओर से सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे के पेश होने पर सीबीआई कोर्ट की टिप्पणी
सिस्टर अभया हत्या मामले में गवाह रहीं कॉन्वेंट कुक आचम्मा ने बहुत ही महंबा मुकदमा लड़ा। उन्होंने नार्को-एनालिसिस टेस्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, जबकि उनकी तनख्वाह बहुत ही कम थी। विशेष सीबीआई कोर्ट ने सिस्टर अभया मामले में दिए फैसले में कुक आचम्मा के मुकदमे को 'दिलचस्प रूप से विचित्र' करार दिया है।
विशेष सीबीआई कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि आचम्मा ने अभियोजन पक्ष के सुझाव से इनकार नहीं किया कि वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, "यकीनन भारत के सबसे महान जीवित वकील", उसके लिए पेश हुए। उसने स्वीकार किया कि उसके मुकदमे का खर्च कॉन्वेंट वहन कर रहा है और उसे बारीकियों की जानकारी नहीं है।
विशेष सीबीआई जज के सनीलकुमार ने 299 पेज के फैसले में नोट किया है, "... यह दिलचस्प रूप से विचित्र तथ्य है कि PW11, अचम्मा, सेंट पायस एक्स कॉन्वेंट हॉस्टल की एक मामूली तनख्वाह पाने वाली कुक, ने नार्को एनालिसिस टेस्ट की संवैधानिक वैधता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज खटखटाया और बहुत दूर नई दिल्ली में एक महंगा मुकदमा लड़ा।
जब अभियोजन पक्ष ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी ओर से पेश वकील श्री हरीश साल्वे हैं, जो यकीनन भारत के सबसे महान जीवित वकील हैं, उसने इससे इनकार नहीं किया। उसने स्वीकार किया कि उसके मुकदमे का खर्च कॉन्वेंट द्वारा दिया जा चुका है और बारीकियों की जानकारी नहीं है।"
जिरह के दरमियान, सीबीआई अभियोजक नवास ने अचम्मा से पूछा था कि क्या वह हरीश साल्वे को जानती है, जो लाखों रूप फीस लेते हैं। वह नार्को-एनालिसिस और ब्रेनमैपिंग टेस्ट कराने के खिलाफ दायर याचिका में उसकी ओर से पेश हुए हैं।
उसने जवाब दिया था, "मुझे वकीलों के नाम नहीं पता। मुझे कुछ नहीं पता।"
नार्को-विश्लेषण के खिलाफ मामला
2009 में, इस मामले के तीन गवाहों, सिस्टर शर्ली, अचम्मा और थ्रेसिअम्मा ने संयुक्त रूप से केरल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें सीबीआई द्वारा उनके नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
24 जून, 2009 को, हाईकोर्ट के जज जस्टिस एम ससीधरन नांबियार की एकल पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि "जांच एजेंसी को कानून के तहत सभी रास्ते का पता लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वे सच तक पहुंच सकें।"
सिस्टर शर्ली, अचम्मा और थ्रेसिअम्मा ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे एसएलपी के प्रवेश के चरण में उनकी ओर से उपस्थित हुए। 13 अगस्त, 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया और गवाहों के नार्को एनालसिस के आदेश पर रोक लगा दी।
उक्त एसएलपी के लंबित होने के ही दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई, 2010 को सेल्वी और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य में फैसला सुनाते हुए माना कि किसी व्यक्ति का जबरन नार्को-एनालिसिस या ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं कराया जाना चाहिए।
दो साल बाद, 30 अक्टूबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने सेल्वी मामले की आधिकारिक घोषणा के आधार पर सिस्टर शर्ली, अचम्मा और थ्रेसिअम्मा द्वारा दायर याचिका को अनुमति दी।
अचम्मा की गवाही
अचम्मा, जिनकी अभियोजन गवाह 11 (पीडब्लू 11) के रूप में जांच की गई थी, उन्होंने कहा कि फादर थॉमस कोट्टूर और फादर जोश पूथ्रिक्कयिल को सेंट पायस एक्स कॉन्वेंट हॉस्टल में आने की आदत थी और इस तरह के मौकों पर उसे शानदार व्यंजन पकाने के लिए कहा जाता था। उसने बताया कि कॉन्वेंट पर कुत्तों का पहरा रहता था। कोर्ट ने कहा कि भयावह रात को किसी ने भी भौंकने की अवाज सुनने के बारे में नहीं बताया। 26/27-3-1992 की रात कुत्तों क्यों नहीं भोंके, इस सवाल का जवाब पीडब्लू 11 के स्पष्टीकरण में मिलता है कि कुत्ते नियमित आगंतुकों को देखकर नहीं भौंकते थे।
उसने पुलिस को बताया था कि अभया की मौत की सुबह कॉन्वेंट की रसोई में उसने कुछ गड़बड़ी देखी थी। उसने बताया कि काम करने की जगह पर एक इलेक्ट्रिक लाइट जल रही थी और दरवाजा, जिसे उसने पिछली रात अंदर से बंद किया था, उस पर बाहर से कुंडी लगी थी। दरवाजे के पल्लों के बीच, एक नन का कपड़ा फंसा था। रसोई के फर्श पर एक कुल्हाड़ी पड़ी मिली थी।
हालांकि, जांच में उसने रसोई में गड़बड़ी के बारे में पुलिस को दिए गए प्रारंभिक बयान की पुष्टि करने से इनकार कर दिया। इसलिए, उसे शत्रुतापूर्ण घोषित कर दिया गया। लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा जिरह में, उसने स्वीकार किया कि उसने पुलिस को सही बयान दिया है। इसलिए, अदालत ने उसकी गवाही को स्वीकार कर लिया।
"यहां, गवाह ने न केवल स्वीकार किया कि उसने पुलिस को ऐसा बयान दिया था, बल्कि बाद में उसने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि उसने पुलिस को जो बताया था, वह सच है। जब यह गवाह, जिसने शपथ ली है, कोर्ट में कहता है कि उसने पुलिस को एक विशेष बयान दिया है और बाद में वह इस तरह के बयान की पुष्टि करती है कि यह पूरी तरह से सच है, तो इससे बहुत फर्क पड़ता है।"
हालांकि, उसने कई पहलुओं पर अभियोजन पक्ष से शत्रुता की, लेकिन उसने स्वीकार किया कि मृत्यु से पहले के दिनों में सिस्टर अभया बहुत खुश थी।
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी गवाह को शत्रुतापूर्ण घोषित किया जाता है, तो भी सबूतों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए और प्रासंगिक बयान, जिनकी पुष्टि की जा सकती है, उन्हें स्वीकार किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन के मामले को कमजोर करने के लिए 'व्यवस्थित और संगठित प्रयास' किए गए। न्यायालय ने पाया कि केरल पुलिस के दो अधिकारी, एसपी केटी माइकल और डीवाईएसपी के सैम्युएल ने सबूतों को नष्ट करने में लिप्त थे। सेंट पायस एक्स कॉन्वेंट हॉस्टल के रहवासियों सहित सभी गवाह बिना किसी कारण के शत्रुतापूर्ण हो गए।
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि कोट्टूर 1992 में बिशप ऑफ कोट्टायम डायोसिस (नानाया) के सचिव थे।
कोर्ट ने कहा, "इसलिए, यह मान लेना उचित है कि A1 (कोट्टूर) के पास डायोसिस के अपार संसाधनों पर नियंत्रण था, और वह पुजारियों, ननों और आम लोगों की आदेश दे सकता था।"
23 दिसंबर को सीबीआई अदालत ने 28 साल पुराने सिस्टर अभया हत्या मामले में फादर थॉमस एम कोट्टूर और सिस्टर सेफी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा कि हत्या, दोषियों के बीच अवैध संबंध को छुपाने के मकसद से की गई थी।