पारिवारिक न्यायालय को पक्षकारों को कोर्ट काउंसलर के पास भेजते समय लंबी अवधि के लिए स्थगन नहीं देना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-08-03 09:34 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पारिवारिक अदालत को किसी वैवाहिक विवाद के पक्षकारों को समझौते की संभावना तलाशने के लिए कोर्ट काउंसलर के पास भेजते समय लंबी अवधि के लिए स्थगन नहीं देना चाहिए।

जस्टिस नवीन चावला ने पारिवारिक अदालत में लंबित एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई 18 अक्टूबर तक स्थगित करते हुए कहा,

“भले ही आदेश में दर्ज है कि पारिवारिक न्यायालय के समक्ष विभिन्न प्रकृति के लगभग 4000 वैवाहिक मामले लंबित हैं, फिर भी इतने लंबे स्थगन की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट को नियमित आधार पर कोर्ट काउंसलर के समक्ष होने वाली याचिका/परामर्श कार्यवाही पर नजर रखनी होती है और अगर कोर्ट मामले को इतनी लंबी तारीख के लिए स्थगित कर देता है तो ऐसी निगरानी नहीं हो सकती है।

अदालत पति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें परिवार अदालत के समक्ष अपनी तलाक की याचिका को समयबद्ध तरीके से शीघ्र निपटाने की मांग की गई थी।

पति की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि पारिवारिक अदालत ने सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने की संभावना तलाशने के लिए पक्षकारों को कोर्ट काउंसलर के पास भेजा था और आगे की कार्यवाही 18 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी थी।

यह तर्क दिया गया कि पक्षों के बीच विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान की कोई संभावना नहीं थी और इसलिए, इतनी लंबी तारीख के लिए स्थगन की आवश्यकता नहीं थी।

पत्नी की ओर से पेश वकील ने कहा कि फैमिली कोर्ट में लंबित मामले की सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने पर कोई आपत्ति नहीं है।

जस्टिस चावला ने पक्षकारों की सुनवाई करते हुए कहा, "अन्यथा भी मुझे लगता है कि विद्वान पारिवारिक न्यायालय को, पक्षों को कोर्ट काउंसलर के पास भेजते समय इतनी लंबी अवधि के लिए स्थगन नहीं देना चाहिए।"

अदालत ने मामले को 08 अगस्त के लिए स्थगित करते हुए पारिवारिक अदालत से अनुरोध किया कि वह किसी भी पक्ष को कोई अनुचित स्थगन न दे और उसके समक्ष मामले के शीघ्र निर्णय के लिए प्रयास करे।


केस टाइटल : रविंदर सिंह भसीन बनाम कंवलजीत कौर और अन्य।

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