विवाहेतर संबंध इस नतीजे पर पहुंचने का आधार नहीं कि महिला अच्छी मां साबित नहीं होगी और उसे बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2021-06-02 05:35 GMT

Punjab & Haryana High court

पुरुष प्रधान समाज में महिला के नैतिक चरित्र के बारे में टीका टिप्पणी करना आम बात बताते हुए तथा चार साल की बच्ची की कस्टडी मां के हक में मंजूर करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल में इस प्रकार टिप्पणी की है :

"यह भी मान लेने पर कि महिला का विवाहेतर संबंध है या रहा है तो भी इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वह महिला अच्छी मां नहीं है और उसके बच्चे की कस्टडी उसे नहीं दी जानी चाहिए।''

न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल की एकल बेंच उस मां की ओर से दायर याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसने अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी लेने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट आदेश जारी करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा कि महिला का पति इन आरोपों को साबित कर पाने में असफल रहा है कि उसकी पत्नी का अपने रिश्तेदार से विवाहेतर संबंध था।

कोर्ट ने कहा,

"याचिका में केवल दावे को छोड़कर कोर्ट के समक्ष कोई भी समर्थित दस्तावेज नहीं रखा गया है।"

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा कि आधुनिक समय में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं कि सिंगल पैरेंट्स द्वारा लालन-पालन किये गये बच्चे आज जिम्मेदार वयस्क बन गये हैं और विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण के कार्य में सहयोग कर रहे हैं।

कोर्ट के समक्ष मामला

कोर्ट ने नोटिस किया कि दोनों पक्ष (पति/पिता - पत्नी/मां) कैरियर की बेहतर संभावनाओं की तलाश में आस्ट्रेलिया गये थे और वे आस्ट्रेलिया में काम कर रहे थे। बच्ची का जन्म आस्ट्रेलिया में हुआ था और शुरुआत के वर्षों में उसका लालन-पालन वहीं हुआ था।

कोर्ट ने कहा कि मां आस्ट्रेलिया की स्थायी निवासी है और वह 70 हजार आस्ट्रेलियाई डॉलर प्रतिवर्ष कमा रही है तथा आस्ट्रेलियाई अधिकारियों द्वारा बच्चों की देखभाल के लिए उसे अच्छी खासी रकम भी मिलेगी।

बच्ची के मां और पिता (पत्नी एवं पति) के बीच वैवाहिक विवाद शुरू हुआ था, जिसकी वजह से उनके बीच अलगाव पैदा हुआ तथा महिला ने आस्ट्रेलिया के फेडरल सर्किट कोर्ट में 2019 में तलाक की याचिका दायर की थी। हालांकि तलाक पर अंतिम निर्णय लेने से पहले उसके पति ने वादा किया था कि वह भविष्य में अपने व्यवहार में सुधार करेगा। इस प्रकार, वे फिर से एक साथ रहने लगे।

एक साथ रहने के क्रम में वे जनवरी 2020 में भारत पहुंचे और उसके बाद पति ने कथित तौर पर बच्ची का पासपोर्ट रख लिया और बच्ची को अपने घर ले गया तथा पत्नी को धमकी देना शुरू कर दिया।

इसके बाद, अपनी सुरक्षा की आशंका के मद्देनजर वह (पत्नी) आस्ट्रेलिया लौट गयी, जहां उसने फेडरल सर्किट कोर्ट में अपनी नाबालिग बच्ची की कस्टडी के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने अप्रैल 2020 में एक अंतरिम आदेश भी पारित किया, जिसमें पति को उस बच्ची को आस्ट्रेलिया वापस भेजने का निर्देश दिया गया था।

इस बीच, महिला ने बच्ची की कस्टडी के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट का आदेश

कोर्ट ने कहा कि आस्ट्रेलियाई कोर्ट का भी आदेश है और बच्ची पांच वर्ष की आयु से छोटी भी है, वह आस्ट्रेलियाई नागरिक है तथा याचिकाकर्ता आस्ट्रेलिया में सुव्यवस्थित तरीके से रह रही है, ऐसे में कोर्ट का मानना है कि यह बच्ची के हित और कल्याण की दृष्टि से सबसे अच्छा होगा कि उसकी कस्टडी याचिकाकर्ता-मां को सौंप दी जाये।

परिणामस्वरूप याचिका स्वीकार कर ली गयी तथा यह आदेश दिया गया कि बच्ची की कस्टडी याचिकाकर्ता-मां को सौंपी जाये। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता-मां आस्ट्रेलिया में रह रही है, इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया :

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता बच्ची की कस्टडी लेने के लिए जब तक भारत लौटती है तब तक पति यह सुनिश्चित करेगा कि बच्ची प्रत्येक मंगलवार, शुक्रवार और रविवार को भारतीय समयानुसार अपराह्न एक बजे या आपसी सहमति से तय समय के अनुरूप वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये याचिकाकर्ता से जुड़ेगी।"

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता के भारत आने और COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन करने पर, प्रतिवादी संख्या- 4 द्वारा बच्ची की कस्टडी याचिकाकर्ता को सौंप दी जायेगी।"

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