माता-पिता से अपेक्षित है कि उन प्राइवेट स्कूलों को किश्तों का भुगतान करें, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद फीस स्ट्रक्चर का सेटलमेंट किया हैः राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2022-03-07 10:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर ने पाया कि माता-पिता से यह अपेक्षित था कि वे आवश्यक शुल्क या कम से कम कुछ किश्तों का भुगतान करें, यदि उनके बच्चे उन निजी स्कूलों में नामांकित हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फीस स्ट्रक्चर का सेटलमेंट किया है।

इस मामले में याचिकाकर्ता प्रतिवादी संख्या एक-कैम्ब्रिज कोर्ट हाईस्कूल के छात्र हैं। प्रतिवादी स्कूल ने कथित तौर पर याचिकाकर्ताओं को 03.03.2022 से शुरू होने वाली प‌रीक्षाओं में शामिल होने से वंचित कर दिया है। उनके माता-पिता ने अधिकारियों को कई अभ्यावेदन दिए और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार फीस तय करने का अनुरोध किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। बताया गया कि जिला शिक्षा अधिकारी ने प्रतिवादी स्कूल से स्पष्टीकरण भी मांगा है, लेकिन उनके द्वारा ऐसी कोई सूचना नहीं दी गई है।

जस्टिस अशोक कुमार गौर ने कहा,

"बच्चों या उनके माता-पिता, यदि उन्होंने निजी स्कूलों में दाखिला लिया है और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद फीस संरचना, स्कूल द्वारा तय की जाती है तो माता-पिता से यह उम्मीद की जाती थी कि आवश्यक शुल्क या कम से कम कुछ किश्तों का उन्हें भुगतान करना चाहिए।"

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं और उनके माता-पिता ने शैक्षणिक सत्र 2021-2022 के लिए किसी भी शुल्क का भुगतान नहीं किया है और आगे कुछ मामलों में शैक्षणिक सत्र 2020-2021 के लिए भी शुल्क का भुगतान नहीं किया गया है।

अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं के वकील की दलील को स्वीकार करने से डरती है कि भले ही बच्चों या उनके माता-पिता द्वारा वास्तविक कारणों से शुल्क का भुगतान नहीं किया गया हो, फिर भी वे परीक्षा लिखने के हकदार हैं।

स्थगन आवेदन को खारिज करते हुए और यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में कोई मामला नहीं बनता है, अदालत ने प्रतिवादी के वकील से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि इंडियन स्कूल जोधपुर और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों को छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं या शारीरिक कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश दिया और कहा कि किसी भी छात्र को किश्तों सहित पैसे/बकाया/बकाया शुल्क का भुगतान नहीं करने के कारण कक्षाओं में भाग लेने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि माता-पिता द्वारा वार्षिक शुल्क जमा करने की कठिनाई पर भी प्रबंधन द्वारा मामला-दर-मामला आधार पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

प्रतिवादी के वकील ने न्यायालय के समक्ष एक चार्ट पेश किया जिसमें विभिन्न याचिकाकर्ताओं का विवरण दिया गया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अधिकांश याचिकाकर्ताओं ने शैक्षणिक सत्र 2021-2022 के लिए कोई शुल्क नहीं दिया है और कुछ मामलों में, शैक्षणिक सत्र 2020-2021 के लिए भी शुल्क का भुगतान नहीं किया गया है।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि कुछ मामलों में याचिकाकर्ता 26.10.2021 तक कक्षाओं में उपस्थित हुए हैं और अभी तक उनके द्वारा कोई शुल्क नहीं दिया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि परीक्षा अनुसूची बहुत पहले घोषित की गइ्र है और रिट याचिका आखिरी वक्त में दायर की गई है ताकि अदालत द्वारा सहानुभूति की आड़ में उन्हें परीक्षा लिखने की अनुमति मिल सके।

इसके अलावा, प्रतिवादी के वकील ने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि निर्णय में निर्दिष्ट किश्तों के भुगतान की अंतिम तिथि पहले ही समाप्त हो चुकी है और अभी भी माता-पिता द्वारा बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बकाया देय राशि की वसूली के लिए स्कूल प्रबंधन उचित कार्रवाई करे।

उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा रिट याचिका में मांगी गई प्रार्थना जैसे कक्षाओं में भाग लेना और बिना शुल्क दिए परीक्षा लिखना इस स्तर पर अंतिम राहत देने जैसा होगा।

केस शीर्षक: मिस इशिता जैन बनाम कैम्ब्रिज कोर्ट हाई स्कूल

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