हर गर्भवती महिला सम्मान की हकदार, कस्टडी में जन्म देना मां और बच्चे दोनों के लिए आघात होगा : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती विचाराधीन कैदी को तीन महीने की अंतरिम जमानत देते हुए कहा है कि हर गर्भवती महिला मातृत्व के दौरान गरिमा की हकदार है और जल्द ही यह महिला अपने बच्चे को जन्म देने वाली है।
जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने यह भी कहा कि एक महिला की गर्भावस्था एक विशेष परिस्थिति है जिसकी हिरासत में बच्चे को जन्म देने के रूप में सराहना की जानी चाहिए, क्योंकि यह न केवल मां के लिए एक आघात होगा बल्कि बच्चे पर भी हमेशा के लिए प्रतिकूल प्रभाव पैदा करेगा,जब भी उससे उसके जन्म के बारे में पूछा जाएगा।
कोर्ट ने कहा,
''प्रत्येक गर्भवती महिला मातृत्व के दौरान भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठापित सम्मान की हकदार है। न्यायालय से एक बच्चे के हित पर ध्यान देने की अपेक्षा की जाती है, जिसे जेल से उजागर होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जब तक याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने में कोई गंभीर खतरा न हो।''
अदालत आईपीसी की धारा 363, 367, 368, 326,307, 506,34 और 120बी के तहत दर्ज एफआईआर के मामले में एक महिला आरोपी द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी। जिसने छह महीने की अंतरिम जमानत दिए जाने की मांग की थी।
एफआईआर एक घायल पीड़ित के बयान पर दर्ज की गई थी, जिसने अपनी पत्नी/पीड़िता के माता-पिता की सहमति के खिलाफ उससे शादी कर ली थी। हालांकि, यह आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता की पत्नी के परिवार के सदस्यों ने पीड़ित और उसकी पत्नी का अपहरण कर लिया और उसकी बेरहमी से पिटाई करने के बाद, उसके निजी अंग को कुल्हाड़ी से काट दिया गया और उस पर चाकू से भी वार किए गए थे।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता को एक नाले में फेंक दिया गया था, जहां से उसे उसके भाई ने बचाया था और उसे एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था।
राज्य ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि एक महिला विचाराधीन कैदी की गर्भावस्था खुद एक आधार ऐसा नहीं है जिसके आधार पर एक जघन्य अपराध में शामिल एक आरोपी को जमानत दी जा सके। खासतौर पर ऐसे मामले में जहां पीड़ित की सुरक्षा और जीवन के लिए उच्च सुरक्षा जोखिम है।
जेल अधीक्षक से प्राप्त मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट को अवगत कराया गया कि जेल डिस्पेंसरी में डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध नहीं है और याचिकाकर्ता को डिलीवरी के लिए दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल रेफर किया जा रहा है।
न्यायालय ने माना कि सीआरपीसी की धारा 437(1) का परंतुक यह प्रावधान करता है कि मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध के आरोपित व्यक्ति को जमानत पर रिहा न किया जाए,लेकिन यह शर्त लागू नहीं होगी, यदि ऐसा व्यक्ति सोलह वर्ष से कम आयु का है या एक महिला या बीमार या ऐसी शर्तों के अधीन अशक्त है,जो लगाई जा सकती हैं।
कोर्ट ने कहा,
''यह भी ध्यान देना उचित होगा कि दिल्ली जेल नियमों,2018 के नियम 1459 में भी यह प्रावधान है कि जहां तक संभव हो (बशर्ते कैदी के पास उपयुक्त विकल्प हो) अस्थायी रिहाई (या आकस्मिक अपराधी के मामले में सजा का निलंबन) की व्यवस्था होगी ताकि एक कैदी को जेल के बाहर एक अस्पताल में बच्चे को देने में सक्षम बनाया जा सके। केवल जब किसी विशेष महिला कैदी के मामले में उच्च सुरक्षा जोखिम होता है, तभी जेल के बाहर बच्चे को जन्म देने की सुविधा से इनकार किया जाएगा।''
तदनुसार, अदालत ने याचिकाकर्ता को तीन महीने की अंतरिम जमानत दे दी।
केस टाइटल- काजल बनाम राज्य (दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 790
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