बाल श्रम : अपराध स्वीकार कर ले तो भी आरोपी पर नरमी दिखाने का कोई कारण नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

Update: 2019-10-03 03:51 GMT

बॉम्बे हाइकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई आरोपी अपना गुनाह क़बूल कर लेता है तो भी अदालतों को यह अधिकार नहीं है कि वह उसे न्यूनतम से कम सज़ा सुनाए जो क़ानून के माध्यम से निर्धारित किया गया है। अदालत ने राज्य सरकार की इस बारे में याचिका स्वीकार कर ली है जिसमें यलप्पा खोट नामक एक व्यक्ति पर ₹1200 के जुर्माने को बढ़ाने का आग्रह किया गया है, क्योंकि उसने 12 साल के एक बच्चे को बुनाई कारख़ाने में नौकरी पर रखा था।

न्यायमूर्ति एसएस जाधव ने जून में इस बारे में फ़ैसला दिया था, जिसको अब उपलब्ध कराया गया है। अदालत ने राज्य की दलील इस बारे में सुनी जिसमें एक प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आरोपी यलप्पा पर मात्र ₹1200 का जुर्माना लगाया था। यह आदेश 18 साल पहले 15 अक्टूबर 2001 को सुनाया गया था।

पृष्ठभूमि

इस मामले में शिकायतकर्ता सरकार का एक श्रम अधिकारी था, जिसने 27 नवंबर 1997 को प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करायी थी। उसने अपनी शिकायत में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उसने संबंधित क्षेत्र में बाल श्रम पर सर्वेक्षण किया था और उसी दौरान उसने पाया कि 12 साल के महेश मैकरी आरोपी की बुनाई फ़ैक्ट्री में बुनाई का काम कर रहा है। शिकायतकर्ता ने कहा कि इस तरह फ़ैक्ट्री के मालिक ने बाल और किशोर श्रम (रोक एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 की धारा 3 का उल्लंघन किया जो इस अधिनियम की धारा 14(1) के तहत दंडनीय है।

अदालती कार्यवाही के दौरान आरोपी ने ग़लती स्वीकार की और न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उस पर ₹1200 का जुर्माना लगाया जो उसने जमा करा दिया। इसके बाद राज्य ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अब अपील की है।

फ़ैसला

राज्य के एपीपी वाईएम नखवा ने दलील दी कि मजिस्ट्रेट आरोपी पर न्यूनतम जुर्माना लगाने पर विफल रहा जिसकी वजह से राज्य को अपील दायर करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि यद्यपि मजिस्ट्रेट ने इस आधार पर सिर्फ़ ₹1200 का जुर्माना लगाया कि आरोपी ने गुनाह क़बूल कर लिया था। उन्होंने कहा कि यह क़ानून कहता है कि अगर किसी व्यक्ति को धारा 3 के तहत दोषी पाया जाता है तो उस पर लगने वाला जुर्माना ₹20,000 से कम नहीं होगा और यह ₹50,000 तक जा सकता है।

यह कहते हुए कि जुर्माने की राशि न्यूनतम से कम नहीं हो सकता है, अदालत ने कहा,

"यद्यपि आरोपी ने अपराध स्वीकार कर लिया है, उसके प्रति नरमी दिखाने का कोई कारण नहीं है और अदालत को न्यूनतम से कम जुर्माना लगाने का इसलिए अधिकार नहीं है क्योंकि उसने जुर्म क़बूल कर लिया है। सज़ा सुनाने का अधिकार अदालत को है और वह ….क़ानून के अनुरूप न्यूनतम से कम सज़ा नहीं सुना सकती। इसलिए अपील को स्वीकार किया जाता है"।

इस तरह अदालत ने जेएमएफसी के आदेश को निरस्त कर दिया और आरोपी को जुर्माने की शेष राशि ₹18,800 जमा कराने को कहा। 



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