'शांति, प्रगति और सुशासन सुनिश्चित करें': 58 वकीलों, शोधकर्ताओं ने राष्ट्रपति से लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 के मसौदे को वापस लेने का आग्रह किया

Update: 2021-07-08 12:52 GMT

58 वकीलों और शोधकर्ताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 (LDAR) के मसौदे को वापस लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने पत्र लिखकर केंद्र शासित प्रदेश के नागरिकों के हित और भलाई की अपील की है।

पत्र में लिखा गया है, "मसौदा LDAR लक्षद्वीप की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय वास्तविकताओं से असंबद्ध है। हम पाते हैं कि LDAR का मसौदा न केवल सुशासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और सामान्य कल्याण के संरक्षण और प्रचार के घोषित उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहता है, बल्कि इनके खिलाफ जाता है और इन विशेष द्वीपों पर भूमि हथियाने और पारिस्थितिक विनाश में मदद करेगा।"

पत्र LDAR के मसौदे से उत्पन्न होने वाली चिंताओं की तीन-सूत्रीय सूची प्रस्तुत करता है: (ए) संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन; (बी) द्वीप के प्रथागत कानूनों की अनदेखी और संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों का उल्लंघन (रिपोर्ट संख्या 231); (सी) सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और जस्टिस रवींद्रन आयोग की सिफारिशों के तहत तैयार एकीकृत द्वीप प्रबंधन योजनाओं (आईआईएमपी) को ओवरराइड करना।

मसौदा LDAR 2021 भारत के संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत अधिनियमित लक्षद्वीप में कस्बों के विकास के लिए एक प्रस्तावित विनियमन है। अनुच्छेद 240 के तहत, राष्ट्रपति के पास केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप की शांति, प्रगति और अच्छी सरकार के लिए नियम बनाने की शक्ति है।

पत्र इस बात पर जोर देता है कि द्वीपवासियों की आजीविका सीधे लैगून और रीफ इकोस‌िस्टम के स्वास्थ्य पर निर्भर है। इसमें उल्लेख किया गया है कि LDAR के मसौदे द्वारा प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण प्रावधान भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनस्‍थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के अनुसार निष्पक्षता, पारदर्शिता और आजीविका पुनर्वास की भावना के खिलाफ है।

पत्र में आगे कहा गया है कि मसौदे में तर्कसंगतता और गैर-मनमानेपन के कानूनी सिद्धांतों का भी उल्लंघन किया गया है।

पत्र में लक्षद्वीप पंचायतों की शक्तियों को खत्मकर और एक अलग योजना प्राधिकरण बनाकर स्थानीय समुदाय की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने पर भी सवाल उठाया गया है।

पत्र में लिखा गया है, "मसौदा LDAR लक्षद्वीप में भूमि के स्वामित्व और उपयोग पर नियंत्रण को केंद्रीकृत करता है, पारंपरिक कानूनों और कानूनी बहुलवाद की अनदेखी करता है, जो द्वीपों में शासन को आकार देते हैं। इसके अतिरिक्त, LDAR 2021 का मसौदा योजना और विकास के मामलों में निर्वाचित प्रतिनिधियों या लक्षद्वीप के संसद सदस्य से परामर्श न करके प्रथम दृष्टया संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों का उल्लंघन करता है ( रिपोर्ट संख्या 231, 15.03.2021 को प्रस्तुत)।"

पत्र में केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और अन्य बनाम सीशेल्स बीच रिजॉर्ट और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा स्थापित जस्टिस आरवी रवींद्रन समिति की रिपोर्ट का उल्लेख है। इस मामले में, न्यायालय ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था और भारत सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप को इन्हें एकीकृत द्वीप प्रबंधन योजना (IIMP) में जोड़ने का निर्देश दिया था। पत्र में कहा गया है कि LDAR, 2021 का मसौदा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत तैयार किए गए IIMP की अनदेखी और ओवरराइड करता है।

समूह ने भारत के राष्ट्रपति से द्वीपों के सतत विकास के लिए सुप्रीम कोट द्वारा नियुक्त जस्टिस रवींद्रन समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।

"भारत के समुदायों के लिए आजीविका सुरक्षा और सतत विकास को सुरक्षित करने के लिए काम कर रहे शोधकर्ताओं और वकीलों के एक समूह के रूप में, हम सम्मानपूर्वक आपसे अनुरोध करते हैं कि शांति, प्रगति और सुशासन सुनिश्चित करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्तियों और कर्तव्यों के माध्यम से इस मसौदा कानून को वापस लेने के लिए कहें।"

हाल ही में, केरल उच्च न्यायालय ने लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 (LDAR) के मसौदे को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे अभी भी प्रशासक द्वारा सक्रिय रूप से विचार कर रहे हैं, और इसलिए उनकी वैधता की परीक्षा पूरी तरह से समय से पहले है। याचिका में कहा गया है कि LDAR अनुसूचित जनजातियों से संबंधित द्वीपों के स्वामित्व वाली संपत्ति की छोटी जोत को हटाने या हड़पने का अधिकार देता है।

पत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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