जब आपराधिक षडयंत्र किसी अनुसूचित अपराध से जुड़ा न हो तो प्रवर्तन निदेशालय आईपीसी की धारा 120बी का इस्तेमाल कर पीएमएलए लागू नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत दंडनीय आपराधिक षडयंत्र का अपराध धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत केवल तब अनुसूचित अपराध माना जाएगा, जब कथित षडयंत्र पीएमएलए की अनुसूची में विशेष रूप से शामिल अपराध करने की ओर निर्देशित हो।
कोर्ट ने कहा,“धारा 120-बी के तहत दंडनीय अपराध तभी अनुसूचित अपराध बनेगा, जब कथित षडयंत्र अनुसूची में विशेष रूप से शामिल अपराध के लिए हो। उस आधार पर, हमने कार्यवाही रद्द कर दी है।''
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील में यह फैसला सुनाया, जिसने पीएमएलए के तहत उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए स्पेशल जज, बैंगलोर के समक्ष लंबित मामले में कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
विधेय अपराध में धारा 143, 406, 407, 408, 409, 149 आईपीसी के तहत दर्ज की गई एफआईआर दर्ज की गई थी। पीएमएलए केवल उन अपराधों से पैदा "अपराध की आय" के संबंध में लागू किया जा सकता है, जिनका उल्लेख अधिनियम की अनुसूची में किया गया हो। हालांकि वर्तमान मामले में अपराध "अनुसूचित अपराध" नहीं थे, प्रवर्तन निदेशालय ने आईपीसी की धारा 120बी (जो एक अनुसूचित अपराध है) का इस्तेमाल करके पीएमएलए लागू किया था।
पिछले हफ्ते एक विशेष पीठ, जिसने विजय मदनलाल चौधरी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर आवेदनों पर सुनवाई की थी, उसने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि जब आपराधिक षडयंत्र किसी अनुसूचित अपराध से जुड़ा नहीं होता तो ईडी आईपीसी की धारा 120 बी लागू नहीं कर सकता है।
वर्तमान मामले में एलायंस यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति के खिलाफ 7 मार्च, 2022 को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दायर एक शिकायत के कारण विवाद पैदा हुआ है। ईडी ने याचिकाकर्ता पर पीएमएलए की धारा 44 और 45 के तहत आरोप लगाया है, जिसमें धारा 3 सहपठित धारा 8(5) और 70 के तहत परिभाषित अपराधों का हवाला दिया गया है, जो पीएमएलए की धारा 4 के तहत दंडनीय हैं।
आरोपों के मुताबिक, 2014 से 2016 तक एलायंस यूनिवर्सिटी के वीसी के रूप में अपने कार्यकाल के दरमियान मधुकर अंगुर (अभियुक्त नंबर एक ) की परिचित अपीलकर्ता ने बिना किसी विचार के एक दिखावटी और नाममात्र बिक्री विलेख निष्पादित करने का षडयंत्र रचा, जिसमें एलायंस यूनिवर्सिटी से संबंधित संपत्तियां शामिल थीं। आगे यह दावा किया गया कि उसने आरोपी नंबर एक को विश्वविद्यालय से निकाले गए पैसे को छुपाने के लिए अपने बैंक खातों का उपयोग करने में मदद की।
आरोपों पर संज्ञान लेते हुए विशेष न्यायाधीश ने मामले को आगे बढ़ाया. जवाब में, याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।
हालांकि हाईकोर्ट ने विजय मदनलाल चौधरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के फैसले पर भरोसा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस्तेमाल किया गया वाक्यांश "कोई भी व्यक्ति" है, न कि "कोई आरोपी"। इसलिए, अधिनियम के तहत कार्यवाही के अधीन होने के लिए किसी को मुख्य अपराध में आरोपी बनाने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि प्रक्रिया या गतिविधि में सहायता करना भी मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का एक हिस्सा है। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
केस टाइटलः पावना डिब्बुर बनाम प्रवर्तन निदेशालय
साइटेशनः Crl. A. No. 002779/ 2023