"पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज किया गया मरने से पहले दिया गया बयान स्वीकार्य": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या मामले में उम्रकैद की सजा बरकरार रखी

Update: 2022-02-10 02:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक हत्या के मामले में एक दोषी की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी। यह मामला वर्ष 2002 से पहले का है। कोर्ट ने कहा कि इस बात पर कोई रोक नहीं कि पुलिसकर्मी मृत्युकालिक बयान (मरने से पहले दिया गया बयान) दर्ज नहीं कर सकते और इस तरह दिया गया मृत्युकालिक बयान (Dying declaration) साक्ष्य में भी स्वीकार्य है।

जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विकास बुधवार की खंडपीठ ने आगे कहा कि जांच अधिकारी द्वारा की गई जांच में कुछ खामियां हो सकती हैं, लेकिन यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि अपीलकर्ता दोषी नहीं हैं, क्योंकि वहां दस्तावेजी साक्ष्य मौजूद हैं। उक्त दस्तावेज साबित करते हैं कि अपीलकर्ताओं ने मृतक की हत्या की है।

जानिए साक्ष्य विधि में मरने से पहले दिए गए बयान का महत्व

शिकायतकर्ता द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर 15 फरवरी, 2002 को एफआईआर दर्ज की गई। इसमें आरोप लगाया गया कि सुबह सात बजे वह अपने भाई लाठेरू राम (मृतक) के साथ खेत में गया। अचानक दोनों अपीलकर्ता आ पहुंचे और उन्होंने गालियां दीं। उन्होंने पुरानी रंजिश के कारण शिकायतकर्ता और उसके भाई को जान से मारने की धमकी दी।

इसके बाद अपीलकर्ताओं ने अपनी देशी पिस्तौल निकाल ली। उन्होंने शिकायतकर्ता और उसके भाई को मारने के इरादे से उन पर गोली चला दी। हालांकि शिकायतकर्ता गोली से बच गया, लेकिन उसके भाई को पेट और बाएं हाथ पर गोली लगी। गोली लगते ही वह बेहोश हो गया और नीचे गिर गया।

गंभीर अवस्था में पहले उसके घर लाया गया। इसके 20-25 मिनट के इंतजार के बाद वे सभी एक जीप में थाने के लिए रवाना हुए। थाने में उन्होंने आठ बजे एफआईआर दर्ज की गई।

रिकॉर्ड में यह आया कि पीडब्लू-7 सब-इंस्पेक्टर इंद्रप्रकाश ने मृत्यु से पहले का बयान दर्ज किया और उनके अनुसार, मृतक ने अपराध के कमीशन के संबंध में अपीलकर्ताओं का नाम लिया था।

बाद में मृतक को सुल्तानपुर के जिला अस्पताल भेजा गया, क्योंकि उसकी हालत काफी गंभीर थी। इसमें उसने सुबह 09:45 बजे दम तोड़ दिया।

जांच पूरी करने के बाद जांच अधिकारी ने आरोपी प्रेमनाथ यादव और संजय यादव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34, 504, 506 आईपीसी और यूपी गैंगस्टर अधिनियम एवं असामाजिक (रोकथाम) अधिनियम, 1986 की धारा 3(1) के तहत आरोप तय किए। जांच के बाद उक्त अपराधों के अंतर्गत उन्हें दोषी करार दिया गया।

इस प्रकार, अपीलकर्ताओं ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश गैंगस्टर, सुल्तानपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 11.09.2015 के खिलाफ तत्काल अपील की।

प्रस्तुतियां

अपीलकर्ताओं द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि पुलिस कर्मियों द्वारा वर्तमान मामले में मृत्यु से पहले दिया गया बयान दर्ज किया। इसके अलावा डॉक्टर से फिटनेस का प्रमाण पत्र भी प्राप्त नहीं किया गया।

इस संबंध में यह तर्क दिया गया कि इस तथ्य के संबंध में एक त्रुटि है कि क्या मृत्यु से पहले दिया गया बयान दर्ज किया गया या नहीं जैसा कि अपीलकर्ताओं के वकील के अनुसार, मृतक की स्थिति गंभीर थी और हो सकता है कि मृत्युकालिक बयान की रिकॉर्डिंग से पहले ही उसकी मृत्यु पहले हुई हो।

न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियां

अदालत ने कहा कि मृतक को 15.02.2022 को सुबह 08:00-08:10 बजे पुलिस स्टेशन लाया गया और मेडिको-लीगल रिपोर्ट सुबह 09:20 बजे और 09:20 से 09:45 बजे के बीच तैयार की गई थी। पुलिस कर्मियों द्वारा मृत्युकालिक बयान दर्ज किया गया, जब मृतक ने अपराधी अपीलकर्ताओं का नाम लिया था।

गौरतलब है कि कोर्ट का मत है कि मृत्युकालिक बयान दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट के आने या डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेने के लिए इंतजार करने के लिए समय बहुत कम था, क्योंकि पीडब्ल्यू -7 ने  डॉक्टर का इंतजार किया। मजिस्ट्रेट के आने के बाद उस समय तक मृत्युकालिक बयान दर्ज करने में बहुत देर हो चुकी होती।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने कहा:

"इस न्यायालय को एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा, क्योंकि यह न्यायालय  मृत्युकालिक बयान दर्ज करनेवाले व्यक्ति के इरादों को नहीं जा सकता। फिर वह मृत्युकालिक बयान दर्ज करने के लिए निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति था। फिर भी वहां यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि अपीलकर्ताओं के साथ पीडब्लू-7 की कोई दुश्मनी थी। मृत्यु के प्रश्न पर बचाव पक्ष द्वारा कोई जिरह भी नहीं की गई है... मृत्युकालिक बयान को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि इसे पुलिस कर्मियों द्वारा दर्ज किया गया है या फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं किया गया।"

इसके साथ ही कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि जांच में कुछ खामियां थीं, क्योंकि अदालत ने कहा कि जांच अपने आप में बरी होने का आधार नहीं हो सकती। यह अदालत का कानूनी दायित्व है कि वह अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों की जांच करे। इस तरह की चूक यह पता लगाने के लिए सावधानीपूर्वक की जाती है कि उक्त साक्ष्य विश्वसनीय है या नहीं।

अदालत ने अंत में अपील खारिज करते हुए कहा,

"विशेष रूप से मृतक का  मृत्युकालिक बयान पीडब्ल्यू-1 (शिकायतकर्ता) के बयान के साथ-साथ प्रासंगिक तथ्य यह है कि अपीलकर्ता यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सके कि वे घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे और वे इसके लाभ के हकदार हैं।  अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों से उनका उद्देश्य साबित हुआ, क्योंकि इसने अपराध के कमीशन के लिए उत्प्रेरक के रूप में भी काम किया।"

केस का शीर्षक - प्रेम नाथ यादव और अन्य बनाम यू.पी. राज्य

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