'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के चक्कर में न पड़ें': केरल हाईकोर्ट ने बच्चों को जबरदस्ती वैक्सीन लगाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में राज्य भर में बच्चों के कथित जबरदस्ती वैक्सीनेशन को रोकने की मांग की गई थी। याचिका में पाया गया कि याचिकाकर्ता ने सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर अदालत का रुख किया था।
जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा नाबालिगों के जबरदस्ती वैक्सीनेशन का कोई विशेष उदाहरण दर्ज करने में विफल रहने के बाद दिलचस्प टिप्पणियों के साथ याचिका खारिज कर दी।
खंडपीठ ने कहा,
इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर न जाएं। आप यहां काल्पनिक कारण से आए हैं। हम इस विषय में लोगों के दिमाग में शंका पैदा नहीं होने देंगे।
अदालत एडवोकेट टी माधवानुनी के माध्यम से दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। इसमें आरोप लगाया गया कि स्कूल जाने वाले बच्चों को COVID-19 की वैक्सीन लगाया जाएगा, क्योंकि एर्नाकुलम जिला कलेक्टर ने हाल ही में स्कूलों में वैक्सीनेशन शिविर आयोजित करने का निर्णय लिया है।
सुनवाई के दौरान, सरकारी एडवोकेट बिजॉय चंद्रन ने प्रस्तुत किया कि अधिकारियों का इरादा केवल प्रत्येक माता-पिता को गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूलों को फिर से खोलने से पहले अपने बच्चों को वैक्सीन लगाने के लिए कहना है। 'जबरदस्ती वैक्सीनेशन' के लिए कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किए गए हैं। कोर्ट ने इस सबमिशन को रिकॉर्ड कर लिया।
कोर्ट ने कहा,
"यह प्रासंगिक है कि याचिकाकर्ता द्वारा इस संबंध में किसी भी खास घटना का उल्लेख नहीं किया गया। वह सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त की गई कुछ सूचनाओं पर आधारित लगता है। किसी भी मेनलाइन मीडिया ने किसी भी बच्चे को उनकी इच्छा के विरुद्ध वैक्सीन लगाए जाने की सूचना नहीं दी है। हमें नहीं लगता कि याचिकाकर्ता के अनुमान के अनुसार कोई कार्रवाई करनी चाहिए, खासकर छुट्टी की बैठक के दौरान।"
चूंकि याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि उसकी आशंका जिला कलेक्टर के निर्णय के कारण स्कूल जाने वाले बच्चों का वैक्सीनेशन चल रही गर्मी की छुट्टी के अंत से पहले सुनिश्चित करने के कारण उत्पन्न हुई, अदालत ने नोटिफिकेशन देखा। हालांकि, बेंच ने यह मानने का कोई कारण नहीं पाया कि इस तरह के वैक्सीनेशन के लिए माता-पिता की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।
कोर्ट ने इस संबंध में कहा,
"जिला कलेक्टर के आदेश ने हर माता-पिता को अपने बच्चों का वैक्सीनेशन कराने के लिए कहा। इसका मतलब यह नहीं है कि वह उन्हें जबरदस्ती लगाया जाएगा। इसमें यह नहीं कहा गया कि लोग जबरदस्ती अपने बच्चों को वैक्सीन लगवाएं?"
कोर्ट ने यह भी "दिलचस्प" पाया कि याचिकाकर्ता ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के डॉ. जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ के फैसले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया कि किसी को जबरदस्ती वैक्सीन नहीं लगाया जा सकता।
पीठ ने कहा कि यह निर्णय यह भी मानता है कि बच्चों का वैक्सीनेशन करने का केंद्र का निर्णय विशेषज्ञ निकायों की वैश्विक वैज्ञानिक सहमति के अनुरूप है और इस तरह के विशेषज्ञ राय का अनुमान लगाना किसी भी अदालत के दायरे से बाहर है।
यह पाते हुए कि किसी भी माता-पिता ने अपने बच्चे को जबरदस्ती वैक्सीन लगाने के लिए अधिकारियों द्वारा किसी भी कार्रवाई की शिकायत करने के लिए अब तक अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था, और सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के आलोक में जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया।
केस शीर्षक: थम्पी बनाम केरल राज्य