दमोह हिजाब विवादः स्कूल प्रिंसिपल को जमानत; शर्तें-छात्रों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर न करें, तिलक/कलावा लगाने की अनुमति दें, कोई इस्लामी शिक्षा नहीं
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते दमोह के गंगा जमना स्कूल हिजाब विवाद के सिलसिले में गिरफ्तार एक महिला प्रिंसिपल और दो अन्य आरोपियों को सशर्त जमानत दे दी। कोर्ट ने आरोपियों को निर्देश दिया है कि वह गैर-हिंदू लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर न करें।
जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की पीठ ने उन्हें यह भी निर्देश दिया कि वे अन्य धर्मों के छात्रों को अपने धर्म की आवश्यक चीजें जैसे कलावा पहनने और माथे पर तिलक लगाने से न रोकें।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश सरकार दमोह स्थित स्कूल पर लगे आरोप कि स्कूल प्रबंधन गैर-मुस्लिम छात्रों (हिंदू और जैन) को हिजाब पहनने के लिए मजबूर कर रहा है, की जांच कर रही है। मौजूदा मामला इस साल मई में तब सामने आया, जब स्कूल परिसर के बाहर स्टेट बोर्ड एग्जाम के टॉपर्स की तारीफ में एक पोस्टर चिपकाया गया, जिसमें गैर-मुस्लिम लड़कियों की हिजाब पहने तस्वीरें को दिखाया गया था।
इसके बाद, स्कूल प्रबंधन को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि वे छात्राओं को ड्रेस के साथ सिर पर स्कार्फ (हिजाब) पहनने के लिए मजबूर कर रहे थे और जब उन्होंने इसे नहीं पहना, तो उन्हें इसके लिए उन पर दबाव बनाया।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि स्कूल प्रबंधन उर्दू को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ा रहा था और स्कूल में मुस्लिम आस्था से जुड़ी प्रार्थनाएं पढ़ी और पढ़ाई जा रही थीं।
प्रबंधन पर यह भी आरोप लगाया गया कि हिंदू और जैन धर्म से जुड़े छात्र माथे पर तिलक नहीं लगा सकते और कलाई पर कलावा नहीं बांध सकते। अगर कोई ऐसा पहनता है, तो शिक्षक उसे जबरन रोकते हैं।
जांच में उपलब्ध सामग्री के आधार पर, प्रिंसिपल आसफा शेख, शिक्षक अनस अतहर और चपरासी रुस्तम अली और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ धारा 295 ए, 506 और 120 बी आईपीसी, किशोर न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और 87 और मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
हालांकि आरोपियों की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि हिजाब पहने छात्राओं की तस्वीरें दिखाती हैं कि हेडस्कार्फ स्कूल प्रबंधन ने अनिवार्य किया है, न कि वर्तमान आवेदकों की ओर से ऐसा किया गया है। यह तर्क दिया गया कि वर्तमान आवेदक प्रिंसिपल और शिक्षक हैं और वे केवल स्कूल प्रबंधन की ओर से जारी निर्देशों का पालन करते हैं।
दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी छात्रों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं कर सकता या उन्हें तिलक या कलावा पहनने से नहीं रोक सकता।
दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि इस मामले में जांच के बाद आवेदकों, जो प्रिंसिपल, शिक्षक और चपरासी हैं, के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है और मुख्य आरोप स्कूल प्रबंधन के खिलाफ हैं।
न्यायालय ने कहा कि मामले की सुनवाई में काफी समय लगेगा, इसलिए मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त किए बिना उन्हें निम्नलिखित शर्तों के अधीन जमानत दी जाती है-
(i) आवेदक उस घटना को दोबारा नहीं दोहराएंगे..
(ii) वे दूसरे धर्म के छात्रों को अपने धर्म की आवश्यक चीजें जैसे कलावा पहनने और माथे पर तिलक लगाने से नहीं रोकेंगे।
(iii) वे अन्य धर्म के छात्रों को ऐसी किसी भी सामग्री या भाषा को पढ़ने/अध्ययन करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे जो मध्य प्रदेश शिक्षा बोर्ड ने निर्धारित या अनुमोदित नहीं की है।
(iv) वे अन्य धर्मों के छात्रों को कोई धार्मिक शिक्षा या इस्लामी आस्था से संबंधित सामग्री प्रदान नहीं करेंगे और वे केवल किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 53 (1) में निहित आधुनिक शिक्षा प्रदान करेंगे।
(v) अन्य धर्म यानी हिंदू और जैन आदि की छात्राओं को स्कूल परिसर या कक्षाओं में कहीं भी हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
केस टाइटलः आसफा शेख बनाम मध्य प्रदेश राज्य और संबंधित मामला