घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत आकस्मिक दौरे के स्थानों पर दायर नहीं की जा सकती, इन्हें अस्थायी या स्थायी निवास के स्थान पर दायर किया जाना चाहिएः बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकायत उस स्थान पर दर्ज नहीं की जा सकती है, जहां महिला केवल आकस्मिक (कभी-कभी) रूप से आती-जाती है और घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 27 के तहत कार्यवाही उसके अस्थायी या स्थायी निवास के स्थान पर ही शुरू की जानी चाहिए।
अदालत ने 'अस्थायी निवास' की व्याख्या की है, जिसके अर्थ में एक ऐसा स्थान जहां एक पीड़ित व्यक्ति ने अस्थायी रूप से अपना घर बनाने का फैसला किया है न कि एक लॉज या गेस्ट हाउस, जहां छोटी यात्राओं के दौरान निवास किया जाता है।
न्यायमूर्ति एसके शिंदे ने एक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को बरकरार रखा है,जिसमें धारा 27 के तहत अधिकार क्षेत्र के अभाव में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत एक महिला की तरफ से दायर आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया था क्योंकि दोनों पक्ष हैदराबाद के स्थायी निवासी हैं।
अदालत ने महिला के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उसे सितंबर में हैदराबाद से 'भागने' के लिए मजबूर किया गया था और चूंकि उसने मुंबई में पुलिस के पास अक्टूबर, 2021 में दो गैर-संज्ञेय शिकायतें दर्ज की थी,इसलिए घरेलू हिंसा की शिकायत को भी मुंबई में दायर करना उचित था।
कोर्ट ने माना कि महिला मुंबई में ''अस्थायी रूप से'' नहीं रह रही है,इसलिए यहां कार्रवाई का कोई कारण नहीं था। वहीं आवेदन और दस्तावेजों के तथ्यों से संकेत मिलता है कि आवेदक की मुंबई की यात्रा एक 'आकस्मिक यात्रा' थी और उसका यहां पर किसी विशेष स्थान पर रहने का निश्चित इरादा नहीं है।
''इसलिए, मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को गलत या अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल न करने का दोष नहीं दिया जा सकता है। वास्तव में, यदि आवदेकों की मांग पर अधिनियम की धारा 27 के तहत किए गए प्रावधान का उदार आशय रखा गया तो यह कानून की कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है, क्योंकि पीड़ित व्यक्ति कोई भी ऐसा स्थान चुन सकता है, जहां वह आकस्मिक या कभी-कभी आता-जाता हो।''
अदालत ने शरद कुमार पांडे बनाम ममता पांडे और रवींद्र नाथ साहू व अन्य बनाम श्रीमती सुशीला साहू 2016 के मामलों में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों पर बहुत अधिक भरोसा किया। जिनमें दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि अस्थायी निवास में एक लॉज या छात्रावास या केवल घरेलू हिंसा का मामला दायर करने के उद्देश्य से किसी स्थान पर रहना शामिल नहीं है और आगे यह भी कहा गया है कि निवास प्राप्त करने की तिथि से लेकर धारा 12 के तहत दायर आवेदन का निपटारा होने तक यह अस्थायी निवास भी एक निरंतर निवास होना चाहिए।
कोर्ट ने रमेश मोहनलाल भूटाडा बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य 2011 के मामले में दिए गए फैसले पर भी भरोसा किया,जिसमें आकस्मिक यात्रा बनाम अस्थायी यात्रा की व्याख्या की गई है।
मामले के तथ्य
महिला की शिकायत के मुताबिक इस कपल ने 1993 में हैदराबाद में शादी की थी। पति और बेटे द्वारा उसके साथ की गई यातना को सहन करने में असमर्थ रहने पर महिला 27 सितंबर, 2021 को मुंबई आई और बॉम्बे-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के एक होटल में अतिथि के रूप में रुकी और बाद में होटल ग्रैंड हयात में शिफ्ट हो गई।
उसने 6 और 7 अक्टूबर को बीकेसी पुलिस थाने में एनसी दायर कर आरोप लगाया कि उसका शारीरिक रूप से लगातार पीछा किया जा रहा है। 12 अक्टूबर को उसने बांद्रा में मजिस्ट्रेट की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें डीवी अधिनियम की धारा 18 और 19 को लागू करते हुए पति और बेटे के खिलाफ उनकी साझा गृहस्थी के संबंध में रोक लगाने के आदेश दिए जाने की मांग की थी।
एक अलग आवेदन में उसने डीवी अधिनियम की धारा 23 (2) के तहत एकतरफा यानी एक्स-पार्टी सुरक्षा और निवास का आदेश देने की मांग की। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 23 अक्टूबर को राहत देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद उसने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने के लिए आर्टिकल 226 और धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि मुंबई में दायर की गई दो पुलिस शिकायतें अदालत की स्थानीय सीमा के भीतर डीवी का गठन करती हैं और इसलिए सुनवाई योग्य हैं। वहीं मजबूर करने वाली परिस्थितियों में महिला को अपना साझा घर छोड़ना पड़ा है। इसके अलावा, हैदराबाद में उसे राहत मिलने की संभावना नहीं थी क्योंकि उसका पति एक प्रभावशाली व्यक्ति है।
इसके विपरीत पति ने तर्क दिया कि यह दिखाने के लिए उचित सामग्री होनी चाहिए कि पत्नी मुंबई में रह रही है और वह सिर्फ कुछ दिनों के लिए वहां नहीं आई थी।
कोर्ट का निष्कर्ष
अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया महिला सुशिक्षित और आर्थिक रूप से मजबूत है और उसकी पृष्ठभूमि को देखते हुए यह स्वीकार करना मुश्किल होगा कि वह हैदराबाद में सुरक्षा आदेश नहीं मांग सकती थी या उसे हैदराबाद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और या वह मुंबई में रहने का इरादा रखती है।
''इसके विपरीत घटनाओं के कालक्रम से पता चलता है कि आवेदक ने मामला दायर करने और मजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र प्राप्त करने के इरादे से कार्रवाई का कारण बनाया है।''
कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज करते हुए यह भी कहा कि महिला वर्ष 1993 में अपनी शादी होने के बाद से 26-27 सितंबर 2021 तक लगातार हैदराबाद में रह रही थी और इस साल सितंबर तक वह घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई भी कदम उठाने में विफल रही है।
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