डीके बसु दिशानिर्देशों का उल्लंघनः मद्रास हाईकोर्ट ने 2017 में वकील की गिरफ्तारी के मामले में डीजीपी और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ स्वतःसंज्ञान अवमानना कार्यवाही शुरू की

Update: 2022-11-15 15:00 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को वर्ष 2017 में एक वकील को गिरफ्तार करते समय डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों का प्रथम दृष्टया उल्लंघन करने के लिए पुलिस महानिदेशक और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ (स्वतःसंज्ञान लेते हुए) अवमानना की कार्यवाही शुरू की है।

राजारथिनम, वकील (अब मृतक) ने दावा किया कि पुलिस बिना किसी वैध दस्तावेज के आधी रात को उसके घर में दाखिल हुई और उसे जबरदस्ती पुलिस स्टेशन ले गई। उसने आरोप लगाया कि उसकी बेटी पास के कमरे में सो रही थी और पुलिसकर्मी ने उक्त कमरे को खोलने का प्रयास किया। जब उसकी पत्नी ने अपने मोबाइल फोन से घटना की तस्वीरें लेने की कोशिश की तो उसका मोबाइल फोन भी उससे छीन लिया गया।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि संबंधित मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट से पुलिस की अत्यधिकता और उनके द्वारा कथित रूप से किए गए उल्लंघन के कार्य के बारे में पता चला है। यह भी कहा कि पुलिस अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई शुरू करते समय संविधान के अनुच्छेद 14,16,19 और 21 के तहत उल्लिखित मौलिक अधिकारों के दायरे को समझें।

प्रत्येक नागरिक को संविधान के तहत सुनिश्चित किए गए मौलिक अधिकारों के मामले में कानून लागू करने वाले प्राधिकरण द्वारा की गई अवैधता का गंभीर असर होगा। पुलिस अधिकारियों द्वारा शक्ति के अत्यधिक प्रयोग को हल्के में या नरमी से नहीं लिया जा सकता है। यह बड़े पैमाने पर जनता के लिए अपूरणीय पूर्वाग्रह पैदा करेगा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करेगा।

पीठ ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को पूरा करने में की गई अत्यधिक देरी पर भी निराशा व्यक्त की। 

मामले को लंबे समय तक लंबित रखने से, सक्षम अधिकारी यह राय नहीं बना सकते हैं कि वे मुद्दों को दबा सकते हैं। सार्वजनिक प्राधिकरणों से अपेक्षा की जाती है कि वे कानून के तहत आवश्यक रूप से समय पर और तेजी से कार्य करें। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों/कानून के शासन का उल्लंघन करने वाले सक्षम अधिकारियों/पुलिस अधिकारियों पर अपेक्षित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए आगे की कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि निष्क्रियता के परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र में सिस्टम पर विश्वास खत्म हो जाएगा।

उसकी गिरफ्तारी के बाद, राजारथिनम को एक वरिष्ठ वकील के माध्यम से मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जिसे पुलिस स्टेशन का दौरा करने के लिए एक एडवोकेट कमीश्नर के रूप में नियुक्त किया गया था। एडवोकेट कमीश्नर द्वारा देखी गई घटना को मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था और याचिकाकर्ता को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसको आई चोटों का इलाज किया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि डीके बसु के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था और पुलिसकर्मियों ने पूरी तरह से कानून के शासन का उल्लंघन किया था और कदाचार और हिंसा की थी।

हालांकि संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था, परंतु बाद में निलंबन के आदेश को रद्द कर दिया गया और उन्हें बहाल कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि अधिकारियों में से एक को उसके खिलाफ शुरू की गई लंबित जांच का कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना सेवा से सेवानिवृत्त होने की अनुमति दे दी गई।

अदालत इस बात से संतुष्ट हुई कि डीके बसु के तहत उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था। इसलिए कोर्ट ने अधिकारियों के खिलाफ स्वतःसंज्ञान लेते हुए अवमानना ​की​कार्यवाही शुरू करना उचित समझा।

कोर्ट ने कहा कि,

''सक्षम पुलिस अधिकारी व्यापक शक्तियों से लैस हैं और वे समाज में एक स्पेशल स्टे्टस का आनंद ले रहे हैं। उनके कर्तव्य और जिम्मेदारियां प्रकृति में कठिन हैं। इस प्रकार, कोई भी अवैधता या कानून के शासन का उल्लंघन, अगर कानून लागू करने वाले प्राधिकरण द्वारा किया जाता है, तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि इस तरह की अवैधताएं नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रही हैं।''

केस टाइटल- एस राजारथिनम (मृतक) व अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य व अन्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एमएडी) 463

केस संख्या- डब्ल्यू.एम.पी.संख्या-37619/2017 व डब्ल्यू.पी.संख्या-33916/2017

याचिकाकर्ता के लिए वकील- मैसर्स टी.फेन वाल्टर एसोसिएट्स के लिए श्री एम.राधाकृष्णन

प्रतिवादियों के लिए वकील- श्री पी. कुमारसैन, अतिरिक्त महाधिवक्ता साथ में श्री एस.राजेश, सरकारी वकील व श्री जी. सरवनन पेश हुए

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