तलाक- राजस्थान हाईकोर्ट ने 6 महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करने से इनकार करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज किया
राजस्थान हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली कोर्ट ने किसी भी दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करने की मांग करते हुए पक्षकारों की तरफ से दायर आवेदन को खारिज करने में अवैधता की है, खासकर जब पक्षकारों ने पहले ही शपथ पत्र के माध्यम से कहा है कि वे दोनों जुलाई, 2018 से अलग-अलग रह रहे हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी के तहत 26.04.2022 को प्रदान किए गए छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करने या इससे छूट देने के लिए दोनों पक्षकारों ने फैमिली कोर्ट के समक्ष एक संयुक्त आवेदन दायर किया था, हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष इस तथ्य को साबित करने के लिए दस्तावेज पेश करने में विफल रहे हैं कि वे दोनों जुलाई, 2018 से अलग-अलग रह रहे हैं।
जस्टिस विजय बिश्नोई ने रिट याचिका को अनुमति देते हुए और फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को खारिज करते हुए कहा,
''मौजूदा मामले में, जब पार्टियों/पक्षकारों ने पहले ही शपथ पत्र के माध्यम से कहा है कि वे दोनों जुलाई, 2018 से अलग-अलग रह रहे हैं, उसके बाद भी निचली अदालत ने दस्तावेजी सबूतों के अभाव में छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करने की मांग करते हुए पक्षकारों की तरफ से दायर आवेदन को खारिज करने में अवैधता की है।''
अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी (2) के तहत निर्दिष्ट छह महीने की वैधानिक अवधि को भी माफ कर दिया है।
इसके अलावा, अदालत ने पक्षकारों को 24.05.2022 को फैमिली कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया है। वहीं फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह कानून के मुताबिक तलाक का डिक्री पारित करे।
तथ्य
पक्षकारों ने अधिनियम 1955 की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से तलाक की मांग करते हुए एक संयुक्त आवेदन दायर किया है। आवेदन के अनुसार पक्षकारों का विवाह दिनांक 07.02.2013 को ग्राम बोटा (रघुनाथगढ़), जिला पाली में संपन्न हुआ था। आवेदन में उल्लेख किया गया है कि दोनों पक्षकार काफी समय तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे, लेकिन बाद में उनके बीच मतभेद शुरू हो गए और जुलाई 2018 से दोनों अलग-अलग रहने लगे। अब उनके लिए पति-पत्नी के रूप में साथ रहना संभव नहीं है।
दोनों पक्षों के एक हलफनामे द्वारा समर्थित आवेदन के अनुसार वे दोनों जुलाई, 2018 से अलग रह रहे हैं और तब से उनके बीच कोई संबंध नहीं है। यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने पहले ही प्रतिवादी को भरण-पोषण या एलिमनी की राशि का भुगतान कर दिया है और प्रतिवादी द्वारा यह सहमति व्यक्त की गई है कि वह भविष्य में याचिकाकर्ता पर किसी और राशि का दावा नहीं करेगी। आवेदन 19.02.2022 को निचली अदालत में दायर किया गया था और मामले में अगली तारीख 20.08.2022 तय की गई है। फैमिली कोर्ट ने किसी भी दस्तावेजी सबूत के अभाव में छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करने के लिए पक्षकारों की तरफ से दायर आवेदन को खारिज कर दिया है। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता-पति द्वारा एक रिट याचिका दायर की गई है।
पक्षकारों के एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों ने शपथ पत्र के माध्यम से कहा है कि वे जुलाई, 2018 से अलग रह रहे हैं और ऐसी परिस्थितियों में, उपरोक्त तथ्य को साबित करने के लिए किसी दस्तावेजी सबूत को पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) 8 एससीसी 746 मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया।
याचिकाकर्ता-पति की ओर से एडवोकेट प्रवीण व्यास पेश हुए जबकि प्रतिवादी-पत्नी की ओर से एडवोकेट कनिष्क सिंघव उपस्थित हुए।
केस का शीर्षक- राजू सिंह बनाम ट्विंकल कंवर
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (राज) 160
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