'जिला अदालतों को ऐसे आदेश पारित नहीं करने चाहिए, जिससे न्यायपालिका की बदनामी हो': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID टीकाकरण सेवा चलाने वाले सीएमओ के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर रोक लगाई

Update: 2021-05-14 05:23 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जो टीकाकरण सेवाएं चला रहा था, के खिलाफ एक न्याय‌िक अधिकारी के आदेश पर दर्ज एफआईआर पर रोक लगा दी है। मुख्य‌‌ चिकित्सा अधिकारी पर कथित रूप से झूठा चिकित्सा प्रमाण पत्र जारी करने का आरोप था।

जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजीत सिंह की खंडपीठ ने पूरे राज्य के जिला न्यायालयों के सभी न्यायाधीशों से "अधिक सावधान" रहने और ऐसे आदेश पारित करने से, विशेष रूप से महामारी के दौर में, खुद को रोकने का आग्रह किया है, ‌जिससे राज्य की न्यायिक प्रणाली की बदनामी हो सकती है।

न्यायिक अधिकारी ने डॉ हरगोविंद सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था, जो COVID-19 महामारी के दौरान टीकाकरण सेवाएं चलाने वाले सीएमओ हैं, जिन्होंने कथित तौर पर एक विधायक को झूठा चिकित्सा प्रमाणपत्र जारी किया था, ताकि वह अदातल में अपने खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले में शारीरिक उपस्थिति से बच सके।

डिवीजन बेंच ने इस कार्रवाई को दो बिंदुओं पर विकृत पाया:

(i) ट्रायल जज ने बिना किसी आधार के मेडिकल रिपोर्ट को झूठा घोषित कर दिया;

(ii) विधायक की व्यक्तिगत उपस्थिति का ट्रायल जज का आग्रह महामारी के मद्देनजर हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप नहीं था।

पीठ ने फैसले की शुरुआत में कहा, "हमें इसे दर्ज करने का खेद है। क्या हम यह कह सकते हैं कि असंवेदनशील न्यायिक अधिकारी, जिसने इस एफआईआर दर्ज करने निर्देश दिया है, जो इसके आदेश के अनुरूप नहीं है, इस न्यायालय की न्यायिक जांच में टिक नहीं सकता है?"

पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल से अनुरोध किया कि वह संबंधित न्यायिक अधिकारी को याद दिलाएं कि भविष्य में ऐसे आदेश पारित करते समय COVID-19 महामारी पर हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करें।

बेंच ने कहा, "अगर हम यहां उल्लेख नहीं करते हैं कि रजिस्ट्रार जनरल ने पहले से ही उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे कि वे COVID-19 महामारी के मद्देनजर अभियुक्तों या पक्षों की व्यक्तिगत उपस्थिति पर जोर न दें, फिर भी आरोपी विधायक को तलब किया गया, हालांकि उन्होंने रिपोर्ट भेजी कि वह कोरोना पॉजिटिव हैं, जिस पर ट्रायल जज ने भरोसा नहीं किया और उस रिपोर्ट को बिना किसी आधार के गलत माना, और याचिकाकर्ता/ मुख्य चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। "

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की प्रस्तुतियों पर भी ध्यान दिया कि रिपोर्ट, जिसे न्यायिक अधिकारी ने गलत माना था, इसे यूपी सरकार की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था और यह जज द्वारा सत्यापित किया जा सकता था।

हाईकोर्ट ने सभी प्रस्तुतियों के मद्देनजर डॉ. हरगोविंद और अन्य सह-अभियुक्तों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी।

केस शीर्षक: डॉ. हरगोविंद सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य।

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