बच्चे के भरण-पोषण में विफल रहने पर अधीनस्थ अधिकारी के खिलाफ जिला कलेक्टर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकते हैं: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2023-01-18 09:01 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु में पुदुकोट्टई से पोन्नेरी में वैवाहिक विवाद को ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पिता, जो ग्राम प्रशासन अधिकारी के रूप में कार्यरत है, अपनी 10 वर्षीय बेटी को अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहा है।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने मुलाक़ात के अधिकार के बावजूद उसे इस तरह का भुगतान करने का निर्देश देते हुए जिला कलेक्टर को यह भी निर्देश दिया कि अगर वह इस तरह के अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान करने में विफल रहता है तो अधिकारी के खिलाफ सेवा नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए।

अवयस्क बालिका को अंतरिम भरण-पोषण के भुगतान में प्रतिवादी की ओर से किसी भी विफलता की स्थिति में याचिकाकर्ता संबंधित जिला कलेक्टर को शिकायत प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है, जिसके तहत प्रतिवादी ग्राम प्रशासनिक अधिकारी (VAO) के रूप में काम कर रहा है। ऐसी परिस्थितियों में संबंधित जिला कलेक्टर तमिलनाडु सरकारी सेवक आचरण नियमों के तहत कदाचार का कार्य करने के लिए प्रतिवादी के खिलाफ उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए बाध्य है।

अदालत ने कहा कि पिता प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते और कमाने वाला सदस्य होने के नाते बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, जब मां बेरोजगार है।

अभिभावक और प्रतिपाल्य अधिनियम के तहत पिता प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते ऐसी परिस्थितियों में भी, जहां वैवाहिक विवाद या मुलाक़ात के अधिकार के लिए भरण-पोषण का भुगतान करके अपनी नाबालिग बेटी या बेटे को बनाए रखने के लिए बाध्य है। ऐसे अधिकार विभिन्न अन्य तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए स्थापित किए जाने हैं।

भरण-पोषण के भुगतान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अदालत ने कहा कि महिलाओं और बच्चों को बेसहारा और आवारगी में भटकने से रोकने के लिए संविधान ने भरण-पोषण को सामाजिक न्याय के उपाय के रूप में माना।

इससे पहले, ट्रांसफर के लिए इसी तरह की याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने कहा था कि जब माता-पिता अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर नहीं कर रहे हैं, तब भी यह अदालत का कर्तव्य है कि वह बच्चे के हितों की रक्षा करे और भरण-पोषण की अनुमति दे। अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पति इस दायित्व से इस आधार पर नहीं बच सकता है कि पत्नी शिक्षित है और खुद का भरण-पोषण कर सकती है।

वर्तमान मामले में अदालत ने यह देखते हुए ट्रांसफर की अनुमति दी कि याचिकाकर्ता बेरोजगार है और 10 साल के बच्चे की देखभाल कर रही है। इस तरह उसके लिए पुदुकोट्टई में केस लड़ना मुश्किल है।

वर्तमान मामले में मामले के ट्रांसफर पर विचार किया जाना है, क्योंकि याचिकाकर्ता बेरोजगार है और 10 साल की बच्ची की देखभाल कर रही है। वह चेन्नई में अपने माता-पिता के साथ रह रही है। ऐसा होने पर प्रतिवादी द्वारा दायर तलाक के मामले को उस स्थान पर ट्रांसफर किया जाना है, जहां याचिकाकर्ता रहती है।

केस टाइटल: एम महालक्ष्मी बनाम एम विजयकुमार

साइटेशन: लाइवलॉ (पागल) 17/2023

केस नंबर : Tr.C.M.P.No.567 of 2022

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