दयनीय शारीरिक स्थिति के अलावा, वह एक मनोवैज्ञानिक रोगी भी हैः दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली के खंभे से गिरने के बाद विकलांग हुए व्यक्ति को 20 लाख का मुआवजा दिया
दिल्ली हाईकोर्ट ने मेसर्स बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल) में इलेक्ट्रीशियन के रूप में नौकरी करते हुए वर्ष 2014 में बिजली के खंभे से गिरने के बाद बिस्तर पर पड़े/विकलांग हुए एक व्यक्ति को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
मौद्रिक राहत के अलावा, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश दिया है कि वह इस 28 वर्षीय व्यक्ति को 100 प्रतिशत स्थायी विकलांगता वाला व्यक्ति मानता रहे और निम्न लाभ प्रदान करें-
1. विकलांगता पेंशन
2. आजीवन मुफ्त बस और रेलवे पास
3. जब तक संबंधित डॉक्टरों की राय में यह आवश्यक माना जाता है, तब तक मुफ्त फिजियोथेरेपी और पेशेवर थेरेपी।
4. सरकारी योजनाओं, नियमों और अधिसूचनाओं के तहत (जो समय-समय पर उसके लिए लागू हो) उसकी पात्रता के अनुसार अन्य सभी प्रकार की राहत, सहायता और मदद प्रदान की जाए।
कोर्ट ने आगे यह भी निर्देश दिया है कि पीड़ित के नाम पर उसके पैतृक गाँव उत्तर प्रदेश में एक दुकान खोली जाए, जो उसे मिले मुआवजे में से पीड़ित के पिता या उसके परिवार के किसी अन्य जिम्मेदार सदस्य द्वारा उसके नाम पर व उसके लिए चलाई जाए।
मामले की पृष्ठभूमिः
याचिकाकर्ता केहर सिंह ने अपने बेटे भारत सिंह की ओर से यह याचिका दायर की थी, जो लगभग 21 साल की उम्र में एक दुर्घटना का शिकार हो गया था, जिससे वह 100 प्रतिशत स्थायी रूप से विकलांग हो गया है।
मेसर्स ब्रायन कंस्ट्रक्शन कंपनी (ब्रायन), जो कि एक एकल स्वामित्व वाली कंपनी है और बिजली वितरण नेटवर्क के संबंध में बीआरपीएल द्वारा सौंपे गए मरम्मत और रखरखाव कार्यों को पूरा करने में लगी हुई है। ब्रायन के लिए काम करते हुए भारत को एक दुर्घटना का सामना करना पड़ा , जिसके कारण वर्तमान याचिका दायर की गई है।
2014 में, ब्रायन के साथ एक इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए, भारत को एक बिजली के खंभे में आई एक खराबी को सुधारने का काम सौंपा गया था, जो नई दिल्ली के बिजवासन में एक फार्महाउस में बिजली की आपूर्ति में उतार-चढ़ाव का कारण बन रहा था। बिजली के खंभे पर कार्य करते समय वह गिर गया क्योंकि वह जिस खंभे पर चढ़ा था, वह टूट कर गिर गया।
न्यायालय ने अपने आदेश के माध्यम व सभी पक्षों के उचित सहयोग से समय-समय पर भारत के लिए कुछ तत्काल राहत, पुनर्वास, देखभाल और कल्याण प्रदान किए हैं।
कोर्ट का निष्कर्षः
मामले की सुनवाई करते हुए, अदालत ने अनुरक्षणीयता, दायित्व पर परस्पर विवाद, अंशदायी लापरवाही, सख्त दायित्व, मुआवजे की गणना आदि के मुद्दों पर विचार किया।
मामले की अनुरक्षणीयता के संबंध में, यह नोट किया गया कि न्यायिक उदाहरणों की एक अटूट रेखा है जिससे यह स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता के लिए पास उपलब्ध सार्वजनिक कानून के उपाय के जरिए इस अदालत पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र में वर्तमान दावे पर विचार करने और निर्णय लेने पर कोई रोक या निषेध नहीं है।
यह नोट किया गया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ब्रायन के लिए काम कर रहा था और उसे बीआरपीएल के स्वामित्व वाले बिजली के खंभे पर कुछ मरम्मत का कार्य करने का काम सौंपा गया था;वह खंभा भारत का वजन लेने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं था या जमीन में सुरक्षित रूप से लगाया नहीं गया था और इस तरह वह गिर गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत को गंभीर चोटें आईं।
यह भी स्पष्ट है कि कार्य करने के लिए खंभे पर चढ़ने का निर्देश दिए जाने से पहले भारत को कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराया गया था। इस प्रकार, वर्तमान मामले को पूरी तरह से रेस इप्सा लोक्विटुर के सिद्धांत द्वारा कवर किया गया है, जिसके तहत बीआरपीएल और ब्रायन की ओर से की गई पूर्व-दृष्टया लापरवाही स्थापित करने के लिए किसी विस्तृत सबूत की आवश्यकता नहीं है।
आगे यह भी कहा गया कि जहां तकबीआरपीएल और ब्रायन के बीच परस्पर विवाद, या यहां तक कि इन पक्षों के बीच दायित्व के बंटवारे का संबंध है, तो यह सब तथ्य पीड़ित को ''उचित और पर्याप्त मुआवजा'' देने से अदालत का ध्यान भंग नहीं कर सकते हैं।
केवल इसलिए कि एक से अधिक प्रतिवादी एक दूसरे पर दोष या दायित्व थोपने का प्रयास कर रहे हैं, यह याचिकाकर्ता के बेटे के न्यायसंगत दावे को नहीं हराएगा। ऐसी परिस्थितियों में वास्तव में, दोनों प्रतिवादियों को संयुक्त रूप से और गंभीर रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा, जिसमें उन्हें भुगतान किए गए मुआवजे के पूरे या किसी हिस्से को एक दूसरे से वसूल करने की स्वतंत्रता दे दी जाएगी।
कोर्ट ने उसकी वास्तविक स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए ओपन कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से भारत के साथ बातचीत भी की।
भारत की दयनीय शारीरिक स्थिति के अलावा, इस अदालत के सामने यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत एक मनोवैज्ञानिक रोगी है, कम से कम इसलिए नहीं कि इस अदालत के साथ बातचीत के दौरान, वह कई मौकों पर कमजोर पड़ गया।
कोर्ट को उन गंभीर चुनौतियों से भी अवगत कराया गया, जिनका भारत अपने दैनिक जीवन में सामना कर रहा है। वह अपने किसी भी दैनिक कार्य को स्वयं करने में असमर्थ है और उसे जागने से लेकर बिस्तर पर जाने तक सभी दैनिक दिनचर्या के लिए शारीरिक रूप से समर्थन की आवश्यकता है, क्योंकि वह खड़े होने या चलने में या बिना किसी सहारे और सहायता के कुर्सी पर बैठने में भी असमर्थ है।
चिकित्सकीय राय के अनुसार, भारत की मनोवैज्ञानिक स्थिति, उसके मानसिक अवसाद और चिंता का स्तर ''असामान्य श्रेणी'' में आ गया है।
इन टिप्पणियों के आलोक में, अदालत ने माना कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपनी सभी सीमाओं और प्रतिबंधों के साथ भारत को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक राहत देने के लिए अच्छी तरह से और पूरी तरह से सशक्त है ताकि भारत अपने शेष प्राकृतिक जीवन को गरिमा और आत्म-मूल्य के साथ जी सके।
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