अनुशासनात्मक प्राधिकरण सरकारी अधिकारी को उसकी गलती पर लोकयुक्त की ओर से सिफारिश किए गए दंड से कम दंड दे सकता हैः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि लोकायुक्त ने किसी अधिकारी पर उचित जांच के बाद विशेष दंड लगाने की सिफारिश की हो, इसके बावजूद उसी अधिकारी पर कम जुर्माना लगाने की अनुशासनात्मक प्राधिकारी की शक्ति समाप्त नहीं हो जाती है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कर्नाटक लोकायुक्त की ओर से छह सितंबर, 2021 को परित एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसके जरिए दूसरे प्रतिवादी (चंद्रशेखर) पर जुर्माना लगाया गया था, जो विशेष दंड लगाने के लिए उसकी ओर से की गई सिफारिश से कम था।
खंडपीठ ने कहा,
"अनुशासनात्मक प्राधिकरण की विवेक की शक्ति केवल इसलिए नहीं छीनी जा सकती, क्योंकि लोकायुक्त ने विशेष दंड लगाने की सिफारिश की है।"
चंद्रशेखर पर वर्ष 2009 में 700 रुपये की रिश्वत स्वीकार करने का कथित आरोप था। उन्हें इस मामले में इस आधार पर बरी कर दिया गया था कि उनके पास रिश्वत मांगने या स्वीकार करने के लिए कोई काम लंबित नहीं था।
इसके साथ ही, कर्नाटक लोकायुक्त अधिनियम, 1984 की धारा 12 की उप-धारा 3 के तहत एक रिपोर्ट तैयार की गई और सरकार को प्रस्तुत की गई, कर्नाटक सिविल सेवा (सीसीए) नियमों के नियम 14ए के तहत लोकायुक्त को विभागीय जांच सौंपने की मांग की गई। सरकार ने 22.07.2011 के आदेश के जरिए लोकायुक्त को जांच सौंप दी।
लोकायुक्त ने जांच की और माना कि दूसरे प्रतिवादी के खिलाफ आरोप साबित होते हैं और उसी के अनुसार उसने एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें दूसरे प्रतिवादी के खिलाफ सेवा से अनिवार्य सेवानिवृत्ति के दंड को लागू करने की सिफारिश की गई।
इस तरह के दंड की सिफारिश प्राप्त होने पर, अनुशासनात्मक प्राधिकारी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के बजाय याचिकाकर्ता के ग्रेड में प्रत्यावर्तन का प्रस्ताव दिया।
लोकायुक्त की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि "एक बार सिफारिश हो जाने के बाद, दंड में कमी केवल कानून के अनुसार ही हो सकती है। इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया है कि दूसरे प्रतिवादी के खिलाफ दंड को घटाया क्यों गया है।
सरकार ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि "अनुशासनात्मक प्राधिकरण के पास दंड या अन्यथा कार्यवाही का विवेकाधिकार है और याचिकाकर्ता-लोकायुक्त को दंडकर्ता अनुशासनात्मक प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ पीड़ित व्यक्ति नहीं माना जा सकता।"
अदालत ने WP No 12733/2021 में अपने निर्णय का संदर्भ दिया, जिसे 25 जनवरी 2022 को निस्तारित किया गया था, जिसमें यह माना गया था कि लोकायुक्त के पास मंत्रिमंडल के फैसले को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।
इस प्रकार लोकायुक्त द्वारा दायर की गई याचिका को लोकस की कमी के कारण खारिज कर दिया था, क्योंकि वे पीड़ित नहीं हैं और न ही पीड़ित व्यक्ति हो सकते हैं।
जिसके बाद यह माना गया कि "इस न्यायालय द्वारा पारित पूर्वोक्त आदेश और अधिनियम के वैधानिक ढांचे के आलोक में, अनुशासनात्मक प्राधिकरण की विवेकाधिकार का प्रयोग करने की शक्ति को केवल इसलिए नहीं हटाया जा सकता है क्योंकि लोकायुक्त द्वारा विशेष दंड की सिफारिश की जाती है।
केस टाइटल: कर्नाटक लोकायुक्त और कर्नाटक राज्य और अन्य।
केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 7122 ऑफ 2022।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कार) 90